विरासत दिवस पर निकली विरासत यात्रा

 विरासत दिवस पर निकली विरासत यात्रा



उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल। लेक सिटी में गुरुवार को विभिन्न संगठनों सामाजिक संस्थाओं विद्यालयों और महाविद्यालयों की ओर से विश्व विरासत दिवस धूमधाम से मनाया गया।

भूपाल नोबल्स पब्लिक स्कूल में गुरुवार को विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन संपन्न हुए। प्राचार्या डॉ. सीमा नरूका ने बताया कि भारतीय संस्कृति एवं ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण हेतु सरकार द्वारा चलाई गई मुहिम के अंतर्गत प्रति वर्ष धरोहर दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में विद्यार्थियों ने भाषण, कविता, लोकगीत, नृत्य एवं नुक्कड़ नाटक, पोस्टर मैकिंग में अपनी कला के माध्यम से भारतीय विरासत एवं धरोहर की जानकारी देते हुए उनके संरक्षण का संदेश दिया। नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ने की यह मुहिम सराहनीय है। संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष कर्नल प्रो शिव सिंह सारंगदेवोत ने अपने सन्देश में कहा की किसी भी देश के लिए उसकी धरोहर उसकी अमूल्य संस्कृति होती है। किसी भी देश की पहचान, वहां की सभ्यता की जानकारी इन धरोहरों से ही पता चलती है । 


प्रताप गौरव शोध केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक सहित्य संस्थान तथा इतिहास संकलन समिति उदयपुर जिला इकाई के संयुक्त तत्वावधान में ‘विरासत यात्रा’ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विरासत यात्रा को हरी झण्डी जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति डाॅ. एस.एस. सारंगदेवोत ने दिखाई। उन्होंने कहा कि भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए इस प्रकार के आयोजनों की महती आवश्यकता है। विरासत यात्रा का आयोजन और इसके लिए स्मारकों व स्थलों का चयन भी उनके महत्व को देखकर किया गया है। इन धरोहरों के संरक्षण के लिए इतिहासविदों व पुराविदों को तुरंत प्रयास शुरू करने होंगे।

प्रताप गौरव शोध केन्द्र के अधीक्षक डाॅ. विवेक भटनागर व इतिहासकार डाॅ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित ने बताया कि बेड़वास की नन्द बावड़ी उदयपुर से चित्तौड़ जाने के मार्ग पर थी। इसका निर्माण महाराणा राजसिंह के शासन में पंचोली फतहचंद 1668 ईस्वी (वि.सं. 1725) में बेड़वास में करवाया। इस बावड़ी के साथ एक हवेली, सराय, और करीब 7 बीघा में एक बाग भी विकसित किया गया। इस बावड़ी पर लगे अभिलेख को डोलो गजाधर ने 1673 ईस्वी में उकेरा। अभिलेख में बताया गया है कि महाराणा राज सिंह ने 1673 ईस्वी में इस बावड़ी का पानी पिया। साथ बावड़ी को बनवाने वाले पंचोली फतहचंद का सम्मान भी किया। वर्तमान में बावड़ी जीर्णशीर्ण है। इसका मंदिर व सराय अब उपलब्ध नहीं है, वहीं बाग अतिक्रमण का शिकार होकर गायब हो गया है। इस स्थल को संरक्षण की दरकार है।

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