श्याम ए गजल में बंधा गजलों का समा मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए देर लगी आने में तुमको नींद ना आए
श्याम ए गजल में बंधा गजलों का समा
मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आए
देर लगी आने में तुमको नींद ना आए
विवेक अग्रवाल
उदयपुर 14 दिसंबर। उदयपुर की ग़ज़ल अकादमी द्वारा गुरुवार को सरदारपुरा स्थित कुंभा भवन में को “शाम-ए-ग़ज़ल” कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में इन्दौर, मध्यप्रदेश के पं. गौतम काले ने ग़ज़ल गायन से शाम को सुरमयी बना दिया। उ. बिस्मिल्लाह ख़ान युवा पुरस्कार एवं एकलव्य पुरस्कार से सम्मानित पं. गौतम काले ने एक के बाद एक ग़ज़लें प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राग मियां मल्हार में बद्ध मेहंदी हसन की ग़ज़ल “एक बस तू ही” से पूर्व जब राग के स्वर छेड़े तो श्रोताओं के मुख से वाह-वाही का सिलसिला बन चला, यह समा ग़ज़ल के दौरान समय-समय पर कर्तल ध्वनि से सराबोर होता रहा। बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी, मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी जैसी प्रसिद्ध ग़ज़लों की सुमधुर प्रस्तुति ने समा बांध दिया।
संगीत मार्तण्ड पं. जसराज के शिष्य पं. गौतम काले के संगीतमय प्रदर्शन से सभागार गूंजायमान हो गया।
बहादुर शाह ज़फर की लिखी “चुरा ली गर किसी की चीज़ तो क्या” जैसी दुर्लभ ग़ज़ल भी प्रस्तुत की जो उन्होंने उनके पिता डॉ. किशोर काले से सीखी। साथ ही पं. काले ने कुछ कम प्रचलित ग़ज़लें जैसे मेरे अपने मुझे मिट्टी में मिलाने आये, देर लगी आने में तुमको, नींद न आये तमाम रात, मुस्कुरा-मुस्कुरा आदि की प्रस्तुति से भी श्रोताओं को लुभाया। कार्यक्रम में उदयपुर शहर के कई गणमान्य नागरिक मधुलिका सिंह मेवाड़ , अब्दुल रहमान खान , डॉ अमित खंडेलवाल, डॉ नितिन कौशिक, एडवोकेट कंचन सिंह हिरण,उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था के सचिव डॉक्टर देवेंद्र सिंह हिरण ने गजल अकादमी की रूपरेखा से सभी को अवगत कराया । अकादमी के अध्यक्ष डॉ जे के तालिया,ने सभी का स्वागत किया। ग़ज़ल अकेडमी के संरक्षक डॉ प्रेम भंडारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। तबले पर अजय राठौड़ व कीबोर्ड पर विकास कुमार ने संगत की। मंच का संचालन श्रीमती शालिनी भटनागर ने किया।
मुख्यत: शास्त्रीय गायन में पारंगत पं. गौतम काले ने श्रोताओं की फरमाईश पर मेवाती धराने की बारीकियों से अवगत कराते हुये बताया कि पं. जसराज जी ने शास्त्रीय गायन के साथ में साहित्यिक पक्ष की प्रबलता पर ज़ोर दिया। साथ ही श्रोताओं के निवेदन पर मेवाती घराने की गायन प्रथा की प्रथम प्रस्तुति राग भैरव में मध्यलय ख़याल “हर-हर शिव शंकर” और राग शुद्ध कल्याण के ख़याल “पियरवा मोरा रे” और सधी हुये आलाप व तानें जब पं. काले के कण्ठ से निकलीं तो ग़ज़लों के कार्यक्रम में शास्त्रीय गायन का रस घुल गया।
उन्होंने श्रोताओं द्वारा आकस्मिक बताये चार शब्दों से उसी समय संगीत की रचना कर दी। अंत में “रंजिश ही सही” , “शोला था जल बुझा हूँ” से शाम-ए-ग़ज़ल का समापन किया।
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