श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला में समाहित है भगवत दर्शन : साध्वी श्री वैष्णवी भारती जी*

 *श्री कृष्ण की प्रत्येक लीला में समाहित है भगवत दर्शन : साध्वी श्री वैष्णवी भारती जी*


विवेक अग्रवाल

उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 28 दिसंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने पांचवे दिवस की सभा में भगवान की लीलाओं का वर्णन किया। कालिया मर्दन की लीला से प्रेरित किया कि प्रभु ने यमुना जल को स्वच्छ रखने की सीख प्रदान की। वेद्व्यास जी ने लिखा कि प्रभु यमुना में कूदे तो उस समय वह मतवाले गज की तरह प्रतीत हो रहे थे। हाथी जब मदमस्त होता है तो उस के सिर से रस प्रवाहित होता है। उससे वह विनाश करता है। परंतु प्रभु उस गजराज की तरह हैं, जो मद का प्रयोग विनाश के लिये नहीं अपितु शौर्य के लिये करते हैं। ये उनका शौर्य है जो कंस का वध कर मथुरा उग्रसेन को दी। भौमासुर के बाद उसके पुत्र भगदत को सिंहासन पर बिठाया। ठीक ऐसे ही आज हमारे सैनिक भाई सीमा की रक्षा कर रहे हैं। ये कार्य शौर्य से कम नहीं। गीता में कहा गया है जो देश के लिए शहीद होगा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। देश की रक्षा का कार्य हिंसा नहीं अपितु शौर्य का कार्य है।

गोर्वधन लीला के रहस्य को हमारे समक्ष बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। नंद बाबा व गांव की ओर से इन्द्रयज्ञ की तैयारियां चलते देख कर भगवान श्रीकृष्ण उनसे प्रश्न पूछते हैं। उनको गोवर्धन पर्वत तथा धरती का पूजन करने हेतु उत्साहित करते हैं। प्रभु का भाव यह था कि जो धरती, वनस्पति और जल के द्वारा हमारा पोषण कर रही है, उसकी वंदना और पूजा करनी चाहिए। धरती का प्रतीक मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की गई। छप्पन व्यंजनों का भोग भगवान को दिया गया। इन्द्र के अभिमान को ठेस लगी तो उसने सात दिन तक मूसलाधार बारिश के द्वारा गोकुल के लोगों को प्रताड़ित करने का प्रयास किया। परंतु भगवान ने अपनी कनिष्ठिका के ऊपर धारण कर सभी की रक्षा की। यदि आप भागवत महापुराण का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि प्रभुु ने नंदबाबा सहित ग्रामनिवासियों को कर्म के सिद्धांत का विवेचनात्मक ढंग से वर्णन किया। कर्म ही मनुष्य के सुख, दुख, भय, क्षेम का कारण है। अपने कर्मानुसार मानव जन्म लेता है और मृृृत्यु को प्राप्त होता है। कर्म ही ईश्वर है। हम सभी नारायण के अंश हैं। हम कर्म को यश प्राप्ति के लिये नहीं करते। हम कर्म की उपासना करते हैं। कर्म ही हमारी पूजा है। ‘कर से कर्म करो विधि नाना। चित्त राखो जहां दया निधाना’।।* यह दोहा सुनने में जितना सरल है व्यवहारिक जीवन में उसे उतारना उतना ही कठिन है। यदि एक पूर्ण गुरु का सानिध्य प्राप्त हो जाये तो वो घट में ही स्थित प्रभु का दर्शन करवाते हैं। साथ ही साथ श्वांसों में चल रहे हरि के शाश्वम नाम को प्रकट भी करते हैं। यूं तो संसार में भगवान के अनेकों नाम प्रचलित हैं। परंतु मोक्ष का मार्ग भीतरी नाम ही प्रशस्त करता है। राजीव द्विवेदी- अतिरिक्त जिला अधिकारी, श्रीमती प्रज्ञा केवलरमानी- निदेशक देवस्थान विभाग, जगदीश राज श्रीमाली- पूर्व राज्यमंत्री आदि अन्य गणमान्य जन व कथा यजमानों ने दीप प्रज्वलन कर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त किया।

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