मानव को संस्कारवान बनाती है भागवत : साध्वी वैष्णवी भारती

 *मानव को संस्कारवान बनाती है भागवत : साध्वी वैष्णवी भारती





उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 25 दिसंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से ज्ञान की धारा श्रीमद्भागवत कथा साप्ताहिक ज्ञानयज्ञ के द्वितीय दिवस में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने ध्रुव प्रसंग का व्याख्यान किया। उन्होने बताया कि बालक ध्रुव की माता सुनीति उन्हें संस्कारवान बनाती हैं।  

आज संस्कार विहीनता के वातावरण में पल रही युवा पीढी़ की यही दशा है। जिस प्रकार मिठाई से मिठास, इक्षुदण्ड से रस, दुग्ध से घी निकाल लेने से ये निःसार, तेजहीन हो जाते हैं। वैसे ही मानव के जीवन से संस्कार नहीं तो वह तेजहीन हो जाता है। इन संस्कारों के अभाव में युवा वर्ग पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर रहा है। भारतीय परंपराओं का उपहास करना और उन्नति के नाम पर नैतिकता का परित्याग करना उनके जीवन की उपलब्धि बन गयी है। फिल्मी सितारे, मॉडल आदि को उन्होने जीवन का आदर्श बनाया है। इन में से किसी का परिधान इनको भाता है, तो किसी की चाल-ढाल। स्मरण रहे युवाओं द्वारा चुने इन आदर्शों ने व्यक्तिगत कितनी भी प्राप्तियां कर ली हों, पर उनके त्याग, सेवा व परोपकार के कोई बड़े आदर्श स्थापित नहीं किये। उनकी नकल करने से हमारे परिधान, चाल-ढाल में परिवर्तन अवश्य आ सकता है। किंतु बाहरी चमक दमक से बात नहीं बनती। इस से चिंतन बदल सकता है, चरित्र नहीं। संस्कारों की आवश्यकता है जो विश्व रूपी बगिया को सरस, सुंदर, सुरभिमय बना सकें। क्योंकि जहां संस्कार हैं वहां उच्च, श्रेष्ठ समाज की परिकल्पना साकार होती है। भक्त ध्रुव की माँ ने उन्हें प्रभु की ओर बढ़ने को प्रेरित किया। परंतु ध्रुव और प्रहलाद के देश में ही बालकों से मजदूरी करवायी जाती है। हमें कूडे के ढेरों से सामान उठाते, कारखानों में काम करते, कार साफ करते, होटलों में छोटू दिखायी दे ही जाते हैं। जिन से उनका बचपन छीन लिया जाता है। कंधों पर स्कूल का बैग नहीं अपितु कूडे का बोझा लाद दिया जाता है। भारत के भविष्य के जो कोहिनूर हैं, उन से क्यों बचपन छीना जा रहा है। कारण है जाग्रति का अभाव। मानव भीतर से नहीं जागा तो वो शोषित होता रहेगा। शोषण करने वालों में भी संवेदना, मानवीयता का अभाव रहेगा। ऐसे ही जाग्रति का संदेश दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान का प्रकल्प है- मंथन। जो अभावग्रस्त बालकों के लिए संपूर्ण विकास शिक्षा का अवसर प्रदान कर रहा है। शिक्षा और दीक्षा से ही बालकों को सशक्त बनाया जा सकता है। ताकि वे स्वयं अपनी प्रतिभा को पहचानें। समाज का व स्वयं का उत्थान कर सकें। 

साध्वी जी ने जड़भरत प्रसंग को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जड़भरत जीे ने एक हिरण के शावक की रक्षा की, परंतु स्वयं उस के मोह पाश में बंध गये। कहते हैं कि नाव जल में रहे तो ठीक है। यदि जल नाव में भीतर आ जाए तो समस्या है। ठीक ऐसे ही हमारे महापुरूषों ने समझाया है यदि संसार में रहना है तो कमल के फूल की तरह बनो। उस का संबंध सीधा सूर्य के प्रकाश से रहता है। हमारा मन भी यदि भगवान से जुड़ जाए तब हम मोह से मुक्त रह सकते हैं। अर्जुन के मोह-ग्रस्त हो जाने का प्रस्तुतिकरण किया गया। उन्होने बताया आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति अर्जुन की तरह अपने जीवन के कुरुक्षेत्र में अवसाद में डूब जाता है। उसके हाथ से साहस का गांडीव छूटने लगता है, विश्वास की नींव कमजोर होने लगती है। ऐसे में श्री कृष्ण जैसे सशक्त आश्रय की आवश्यकता है। उनके द्वारा दिये ब्रह्मज्ञान की भी अनिवार्यता है। स्मरण रखें जहां श्री कृष्ण का ज्ञान है, वहां वे स्वयं हैं। जहां वे हैं वहां विजय है।

कथा के मुख्य अतिथि माननीय गुलाबचंद जी कटारिया, राज्यपाल असम द्वारा दीप प्रज्वलित किया गया। कथा के यजमान, व नगर के गणमान्य जन के साथ साथ क्षेत्रवासियों ने भी कथा का आनंद लिया।

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