साझे हित और परंपराओं से ही बनेगी पर्यावरणीय चेतना-डॉ राजेन्द्र सिंह
तीन दिवसीय अन्तरार्राष्ट्रीय जल सम्मेलन का हुआ समापन
साझे हित और परंपराओं से ही बनेगी पर्यावरणीय चेतना-डॉ राजेन्द्र सिंह
उदयपुर 23 नवम्बर। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं विश्व जन आयोग स्वीडन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन का समापन बुधवार को विद्यापीठ के एग्रीकल्चर महाविद्यालय के सभगार में हुआ। समारेाह का शुभारंभ मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पानी वाले बाबा डॉ राजेंद्र सिंह, कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, पद्मश्री लक्ष्मण सिंह, पद्मश्री उमाशंकर पाण्डे्य, कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर, डॉ. युवराज सिंह राठौड़, रमेश शर्मा, पुर्तकाल की बारबरा बोरी, यूएसए की टीना, फिल्म निर्माता वीेकी राणावत, केमरून के कॉनकानको, डॉ. इंद्रा खुराना ने मॉ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ राजेन्द्र सिंह ने कहा कि नदियां और तालाब , समाज और सृष्टि की साझा है। इन्हें साझे हित में उपयोगी बनाकर इनकी सुरक्षा ,संरक्षा और संवर्धन को सुनिश्चित किया जा सकता है। समाज और समुदायों को इनसे जुड़ी नितियों का साझेदार बनाकर इनके प्रति चेतना का वातावरण निर्मित करने की दिशा में किए जा रहे कार्यों को नई गति दी जानी चाहिए, जिससे न केवल प्राकृतिक तत्वों के संरक्षण के नए रास्ते खुलेंगे बल्कि भारतीय मूल्य आधारित दर्शन को आधुनिकीकरण के दौड़ में उलझी युवा पीढ़ी से रूबरू भी करवाया जा सकेगा। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि शिक्षा और विद्या के आपसी जुड़ाव होने की स्थिति में ही विज्ञान आध्यात्म के साथ जुड़कर सनातन व सतत विकास के रास्ते पर आगे बढता है। प्रकृति की दृष्टि और दर्शन आधारित सोच से ही जल तथा पर्यावरण संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है और इस विश्व जल सम्मेलन ने हम सभी को ये दिशा प्रदान की है। भारतीय ज्ञान व्यवस्था को आधार बना कर विश्व भर में धरती को पानीदार बनाने की कोशिशें हमे धरती मां के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति न केवल सचेत करती है वरन दायित्वों को पूर्ण करने की दृष्टि भी प्रदान करती है। विश्वभर से आए जलयोद्वाओं के अनुभवों ने एक बार पुनः भारतीय बौद्विक क्षमताओं और सनातन परंपराओं की प्रांसगिकता सिद्व की है। भविष्य में पृथ्वी में पर्यावरणीय संतुलन के लिए युवाओं को अपनी सनातनी परंपराओं की जड़ों की ओर लौटना होगा।
कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने पर्यावरणीय मुददों तथा जागरूकता में निहित धार्मिक विचारधाराओं की गहरी सोच और प्रासंगिकता को रेखांकित किया। साथ ही मेवाड़ में भूगर्भीय जल की स्थिति और उसके संभावित समाधानों पर विचार साझा किया। उन्होंने कहा कि ग्रंथों में पेड़ों को हमारी धार्मिक भावनाओं के साथ जोड़ा गया है जिसे युवाओं में जागृत करने की जरूरत है। केमरून के कॉनकानको ने प्रकृति, आध्यात्म और विश्वबंधुत्व के आपसी संबधों को बताया। वैचारिक पवित्रता के साथ पर्यावरणीय पवित्रता के रूहानी रिश्ते की पाकीजगी को साझा किया। पद्मश्री लक्ष्मण सिंह ने अनुशासन और सरल सहज जीवन शैली की बात की। पद्मश्री उमाशंकर ने जल स्त्रोतों केे भारतीय ज्ञान नदीसुत्रम और मेघमाला से ज्ञान प्राप्ती की बात कही। टीना और बारबरा ने भारतीय ज्ञान को पर्यावरणीय चेतना के रूप में आत्मासात करने के साथ साथ विश्वभर में इसके प्रसार की बात की।
कार्यक्रम के दौरान द्वितिय विश्व जल सम्मेलन के विचार मंथन के बाद सामने आए मूल विचारों को उदयपुर घोषणा पत्र-2 के रूप में पेश किया गया, जिसका वाचन अमेरिका की टीना और विनोद ने किया। कार्यक्रम संयोजक डॉ युवराज सिंह ने बताया कि तीन दिनों में आयोजित अलग अलग तकनीकी सत्रों में देश विदेश से आए 100 से अधिक विषय विशेषज्ञों ने जल प्रबंधन, संरक्षण और पुर्नउद्वार से जुड़े तथ्यों, स्थितियों और समस्या समाधान पर विचार मंथन किया। साथ ही आगामी कार्ययोजनाओं पर भी विचार किया गया। डॉ सिंह ने बताया कि कॉफ्रेंस में अमरीका, नोर्थ अमेरिका, ऐशिया, युरोप , अफ्रीका ,स्वीडन, कनाड़ा, इजिप्ट, पुतर्गाल, लिथूनिया, आस्ट्रेलिया, नेपाल सहित भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, लद्वाक, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक , राजस्थान के विभिन्न राज्यों के प्रतिभागियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, डीन प्रो. गजेन्द्र माथुर, प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. युवराज सिंह राठौड़, डॉ. शैलेन्द्र मेहता, डॉ. अमिया गोस्वामी, डॉ. अपर्णा श्रीवास्तव, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. हेमंत साहू, डॉ. संजय चौधरी, डॉ. रोहित कुमावत, डॉ. हिम्मत सिंह चुण्डावत, डॉ. जयसिंह जोधा, डॉ. इंदू आचार्य, दुर्गाशंकर सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर उपस्थित थे।संचालन डॉ बबीता रशीद ने किया जबकि आभार प्रो. आईजे माथुर ज्ञापित किया।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें