देव प्रबोधिनी (प्रबोधनी) एकादशी 23.11.2023 गुरुवार को और तुलसी विवाहोत्सव भी 23.11.2023 को ही मनाया जाएगा।
देव प्रबोधिनी (प्रबोधनी) एकादशी 23.11.2023 गुरुवार को और
तुलसी विवाहोत्सव भी 23.11.2023 को ही मनाया जाएगा।
स्मार्त वैष्णव निम्बार्कादि सभी मतावलम्बियों के लिए एकादशी व्रत 23.11.2023
रामार्चनचन्द्रिकाकार आदि रात्रि द्वादशी तिथि व्यापिनी होने पर ही देवोत्थापन कहते हैं वो भी इसी दिन श्रेयस्कर है।
यथा-
*एकादशी द्वादशीयुतैव ग्राह्या।*
*रुद्रेण द्वादशीयुक्तेति निगमात्।*
अर्थात् एकादशी द्वादशी युक्त ही ग्राह्य है। मानव मात्र को एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी व्रत में अन्नग्रहण का महादोष लिखा है। दशमीविद्धा एकादशी को दोषपूर्ण कहा है। महारानी गांधारी ने गलती से दशमीविद्धा एकादशी करके सौ पुत्रों का दुःख झेला था। यथा-
*एकादशी दशाविद्धा गान्धार्या समुपोषिता।*
*तस्या: पुत्रशतं नष्टं तस्मात्तां परिवर्जयेत्।।*
देव प्रबोधिनी (प्रबोधनी) के दिन ही तुलसी विवाह कहा गया है। देव प्रबोधन और तुलसी विवाह शुद्ध एकादशी में ही करना चाहिए जो कि 23 नवम्बर को ही है-
*तस्यां ( एकादश्याम् ) प्रबोधोत्सव - तुलसीविवाहौ।*
*तत्र प्रबोधोत्सव: कार्तिकशुक्लैकादश्यां क्वचिदुक्त:।*
कतिपय विद्वज्जन देव प्रबोधन-जागरण द्वादशी को कहते हैं।
*रामार्चनचन्द्रिकादौ द्वादश्यामुक्त:।*
*उत्थापनमन्त्रे द्वादशीग्रहणाद् द्वादश्यामेव युक्त:।*
इस मत से भी जब द्वादशी तिथि 23.11.2023 गुरुवार को रात्रि में 9.00 बजे आ रही है तो देव प्रबोधन और तुलसी विवाह भी इसी दिन करना शास्त्रीय ही है। फिर भी कुछ विद्वान् जिस दिन एकादशी का पारणा खोला जाता है उस दिन देवोत्थापन और तुलसी विवाह कहते हैं। कुछ पारणा की पूर्व रात्रि को कहते हैं।
तुलसीविवाह:
वैसे कार्तिक शुक्ल नवमी से एकादशी तक तीन दिन या एकादशी से पूर्णिमा तक किसी भी दिन तुलसी विवाह करने का विधान है। यथा-
*नवम्यादि दिनत्रये एकादश्यादि पूर्णिमान्ते यत्र क्वापि दिने कार्तिकशुक्लान्तर्गत विवाहनक्षत्रेषु वा विधानात् अनेककालत्वम्।*
और भी कहा है-
*तथाहि पारणाहे प्रबोधोत्सवकर्मणा सह तन्त्रवतैव सर्वत्रानुष्ठीयता इति।*
अर्थात्- फिर भी पारणा के दिन (द्वादशी के दिन) प्रबोधोत्सव सम्बन्धी कार्यों के साथ एकतन्त्र से तुलसी विवाह भी अनुमोदित है। कहीं पर देवोत्थापन एकादशी की रात्रि में ही विहित है।-
*सोऽपि पारणाहे पूर्वरात्रौ कार्य:।*
यह भी पारणा के दिन पूर्व रात्रि में करना चाहिए।
तुलसी-विष्णु विवाह में देवप्रबोधिनी एकादशी मुख्य पक्ष है।
वैसे तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी से एकादशी तक तथा भीष्म पंचकों ( एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिन ) में कथित है ही। अथवा वैवाहिकी नक्षत्रों में शास्त्र विहित है।
स्वयं की पालित तुलसी का विवाह श्रीहरि दामोदर श्रीकृष्ण से साथ सायंकाल गोधूलि लग्न में श्रेष्ठ कहा है। दोषव्याप्ति की आशंका में "सांकल्पिकविधिना आभ्युदयिक श्राद्ध" के बाद शास्त्रीय विधि से तुलसी विवाह करवाना चाहिए। तुलसी विवाह के लिए सूर्यास्त के समय अर्थात् गोधूलि लग्न श्रेष्ठ माना गया है। और भी सरलता करें तो रात्रि के प्रथम भाग प्रदोषकाल से विलम्ब नहीं करें।-
*1. कृत्वा नान्दीमुखं श्राद्धं सौवर्णं स्थापयेद्हरिम्।*
*2. कृत्वा तु रौप्यतुलसीं लग्ने ह्यस्तमिते रवौ।*
*3. अस्तमिते -गोधूलिक लग्ने इत्यर्थः, रात्रिप्रथमभागे प्रशस्तः।*
देवोत्थापनी एकादशी और तुलसी विवाह के कथित दिन श्रेष्ठतम अबूझ मुहूर्त कहे गये हैं। इनमें किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है। भद्रा दोष, गुरु-शुक्र अस्तादि दोष में भी तुलसी विवाह सम्पन्न करवाया जाना चाहिए। तुलसी विवाह तो घर में अशौच आदि अशुचिता होने पर भी दूसरों से करवाया जा सकता है।-
*इदं शुक्रास्तादौ अपिकार्यम्।*
*आशौचे तु पूजामन्येन कार्यम्।*
परन्तु अशुद्ध समय में एकादशी उद्यापन तो भूलकर भी नहीं करें।-
*वाप्यारामतडागकूपभवनारम्भ...*
कार्तिकी पूर्णिमा से पांच दिन पहले और पांच दिन बाद तक का शुभ समय कहा गया है।यथा-
दिवसा: पंच पूर्वे हि निर्गमे पंच वासरा:।
कारयेल्लग्नमेतेषु धनधान्ययुतो भवेत्।
तुलसी विवाह गुरु-शुक्रास्त व भद्रा आदि दोष में भी कर्त्तव्य हैं। अबूझ मुहूर्त में भी इनका दोष लोक व्यवहार में स्वीकार्य नहीं है। घर में आशौच ( अशुद्धि ) हो जाए तो अन्य प्रतिनिधि से तुलसी विवाह सम्पन्न करवाया जा सकता है।
अतः इस वर्ष 23 नवम्बर को देवोत्थापनी एकादशी है। इसी दिन विवाहादि के अबूझ मुहूर्त भी हैं।
प्रश्न पैदा होता है कि इस दिन कोई तुलसी विवाह करें या अबूझ विवाह करें तो भद्रा दोष में फेरे और पूजन आदि कैसे करेंगे। तुलसी विवाह रविवार को विचारणीय है। अन्य वारों में तो कोई शंका ही नहीं है।
स्पष्ट है अबूझ मुहूर्त के लिए पूरा दिन रात ग्राह्य है। अबूझ मुहूर्त में किसी भी प्रकार के तिथि वार नक्षत्र योग करण लग्नबल चन्द्र गुरु सूर्य त्रिबल की कोई भी आवश्यकता नहीं है। अबूझ मुहूर्त वही है जो किसी से ना पूछा जाए। अबूझ मुहूर्त में उदयात् तिथि की ग्राह्यता है। जो इस बार 23.11.2023 गुरुवार को ही है।
पंचांग भेद से यदि कोई भिन्नता हो तो एकादशी का व्रत और तुलसी विवाह तदनुसार कहा गया है।
तिथि वृद्धि शास्त्रों में मल संज्ञक है।
जनतन्त्र की आवाज के श्री विनोद कुमार शर्मा को पं. कौशल दत्त शर्मा नीम का थाना ने देव प्रबोधन एकादशी और तुलसी विवाह के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया।
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