मंदिर कोई भी बना सकता है, लेकिन रामराज्य साधु ही लाता है;


# उत्सव के लिए सहभागिता जरूरी ;

# अनुभूति से मनुष्य विभूति बनता है;

# सबसे बड़ा वीर वह है जो अपने विकारों को जीत ले ; 

# भारतीय संस्कृति विश्व का मंगल चाहती है; 

# पतन को प्रगति समझना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल ;

# मंदिर कोई भी बना सकता है, लेकिन रामराज्य साधु ही लाता है;




# जीवन को खोना नहीं जीवन में होना चाहिए; 

# विश्व कल्याण की कामना लेकर भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए ; 

जयपुर विद्याधर नगर के गौतम मैरिज गार्डन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान पूज्य व्यास जी मदन मोहन जी महाराज के मुख से चतुर्थ दिवस की ज्ञान वर्षा में बताया गया कि, उत्सव मनाने के लिए सहभागिता जरूरी है लेकिन आज के जमाने में एककी परिवार होते जा रहे हैं , आधुनिकता की इस बात दौड़ में इंसान वास्तविक मित्रों से , रिश्तेदारों से, संबंधियों से दूर होता जा रहा है जिसके कारण मनुष्य के जीवन में एकाकीपन, उदासी एवं मानसिक परेशानियों को घेर लिया है, अगर मनुष्य उत्सव मनाना चाहता है तो उसके लिए सहभागिता जरूरी है और सहभागिता संयुक्त परिवारों एवं मित्रों के साथ से ही संभव है। इसके साथ ही महाराज श्री ने श्रीमद् भागवत कथा के श्लोकों के माध्यम से बताया कि, मनुष्य अगर अनुभूति करता है तो वह आने वाले समय में विभूति बन सकता है जो अनुभूति करता है वही विभूति की ओर अग्रसर होता है, सबसे बड़ा वीर वह है जो अपने अंदर के विकारों को जीते। 

भागवत कथा के संयोजक राजकुमार गर्ग मनोहरपुर वालों ने बताया की, भागवत कथा के दौरान ज्ञान चर्चा में यह भी बताया गया कि, जो मनुष्य पतन को अपनी प्रगति समझता है वह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है मनुष्य को अपने मानसिक एवं बौद्धिक प्रगति के लिए प्रयास करने चाहिए। महाराज श्री के प्रवचनों के अनुसार , मंदिर कोई भी व्यक्ति बना सकता है लेकिन राम राज्य साधु दिला सकता है। श्री महाराज जी ने साधु की महता, साधु के आचार, साधु के विचार, साधु के व्यवहार आदि पर विस्तार से बताया एवं कहा कि, अगर जीवन में सफल होना है तो जीवन को को खोना नहीं चाहिए जीवन में होना चाहिए, इसको विस्तार से महाराज ने आज के समय में जो परिवारों की या मनुष्य को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसका उदाहरण देकर विस्तार से बताया कि वही मनुष्य या परिवार सफल है जो जीवन को खोता नहीं है जीवन में होता है।

भारतीय संस्कृति विश्व का मंगल चाहती है सनातन धर्म के जो पुराण, महापुराण हैं उनमें विस्तृत रूप से प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधनों के उपयोग एवं विश्व कल्याण के बारे में बताया गया है, भगवान को भाव चाहिए साधन नहीं, इसके माध्यम से विश्व कल्याण की कामना भी की गई है।

आज नंदोत्सव का उत्सव मनाया गया, नंदोत्सव के इस महाउत्सव में भगवान श्रीकृष्ण, जनकल्याण एवं विश्व कल्याण की कामना के साथ प्रकट हुए , भक्तों ने आपस में एक दूसरे को बधाई देकर नंदोत्सव को बड़ी धूम-धाम से मनाया इस अवसर पर 15 सौ से अधिक लोगों ने आपस में नाच गाकर एक-दूसरे को उपहार देकर नंदोत्सव का आनंद लिया, इस अवसर पर कथा स्थल पर समरसता एवं खुशी का वातावरण था एवं महाराज जी ने बताया कि, किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए अपने आप को मानव रूप में प्रकट किया, जब-जब संसार में विभिन्न बुराइयां जन्म देती है तब तक भगवान श्री कृष्ण ने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर इन बुराइयों को खत्म किया एवं देश, प्रदेश, विश्व के निवासियों को प्रेरणा दी कि विश्व कल्याण की कामना से अगर कोई काम करेगा तो मनुष्य का कभी पतन नहीं होगा एवं सामाजिक, प्राकृतिक एवं भौतिक साधनों का सदुपयोग कर विश्व कल्याण किया जा सकता है।

भागवत कथा के सह संयोजक गोवर्धन शर्मा, धर्मराज एवं प्रमित गुप्ता ने बताया की, 1500 से अधिक भक्तों ने भागवत कथा का अमृत पान किया एवं कथा के पांचवें दिन पूज्य व्यास जी द्वारा श्री कृष्णा बाल लीला एवं गोवर्धन पूजा के महत्व के बारे में बताया जाएगा इसके साथ ही उन्होंने बताया कि प्रतिदिन महाराज श्री के द्वारा मनुष्य के जीवन में आने वाली विभिन्न परेशानियों इकट्ठा हो के बारे में उनको दूर करने संबंधित उपाय श्री भागवत कथा के माध्यम से समझाएं जाते हैं।

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