*गङ्गा दशमी-गङ्गा दशहरा 30.5.2023 को* *वर्षों बाद गंगा दशहरा मंगलवार हस्त नक्षत्र में विशेष पुण्यदायी*

 *गङ्गा दशमी-गङ्गा दशहरा 30.5.2023 को*


*वर्षों बाद गंगा दशहरा मंगलवार हस्त नक्षत्र में विशेष पुण्यदायी* 


       


*ज्येष्ठशुक्लदशम्यां गङ्गावतार:। इयं दशहरासंज्ञिका।* यथा-


*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता।*

*हरते दशपापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।*


    ज्येष्ठ शुक्ला दशमी सर्व पाप विनाशिनी मां गंगा की अवतरण तिथि है। यही गंगा दशमी सेतुबंध रामेश्वरम् महादेव की प्रतिष्ठापना दिवस के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन विशेष स्नान दान करने से दश प्रकार के पापों का विनाश होता है, इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा कहते हैं। कई वर्षों बाद इस बार गंगा दशमी मंगलवार और हस्त नक्षत्र से युक्त आ रही है जो अत्यन्त श्रेयस्कर है, दुर्लभ है। 

यथा भविष्य पुराण में कहा है -

*ज्येष्ठे शुक्ल दशम्यां तु भवेद्भौमदिने यदि।*

*ज्ञेया हस्तर्क्षसंयुक्ता सर्वपापहरा तिथि:*


     यह पावन पर्व हम सभी के दश विध पापों का हरण करे ऐसी प्रार्थना कलिकाल कल्मष हारिणी पतित पावनी मां गंगा से है। मां गंगा का इसी दिन स्वर्गलोक से मृत्युलोक में हम सब पापियों के पाप हरने के लिए पदार्पण हुआ था। और भी कहा है -


*ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्याम्।*

*हस्ते शैलान्निरगमदियं जाह्नवी मर्त्यलोकम्।।*


     इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन करने से मनुष्य के दश प्रकार के पापों का नाश होता है और अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इसे दशहरा कहते है। यथा-


*पापान्यस्यां हरति च तिथौ सा दशेत्याहुरार्या:।*

*पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधायुतस्य।*


     प्रश्न पैदा होता है इस दिन गंगा-स्नान, दर्शन, स्पर्श, पूजन और स्मरण मात्र से कौनसे दश पापों से मुक्ति मिलती है। कुछ आचार्य दश जन्मों के पाप हरने से इसे दशहरा कहते हैं। महर्षि मनु ने मनुस्मृति में चार प्रकार के वाचिक, तीन प्रकार के कायिक और तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे हैं।


चतुर्विध वाचिक पाप-

*पारुष्यमनृतञ्चैव पैशुन्यं चापि सर्वत:।*

*असम्बद्धप्रलापञ्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्।।*


त्रिविध कायिक पाप-

*अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानत:।*

*परदारोपसेवा च कायिकं त्रिविधम्मतम्।।*


त्रिविध मानसिक पाप-

*परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्।*

*वितथाभिनिवेशश्च मानसं त्रिविधं स्मृतम्।।*

इस प्रकार 4+3+3 = 10 प्रकार के पाप कहे गये हैं।


      सामान्यतः शुक्ल पक्ष में उदयात् तिथि अर्थात् पूर्वविद्धा ग्रहण करनी चाहिए और कृष्ण पक्ष में अस्तमिता।

*शुक्लपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामभ्युदितो रवि:।*

*कृष्णपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामस्तमितो रवि:।।*

स्कन्द पुराण में और भी कहा है -

*दशमी चैव कर्तव्या सदुर्गा द्विजसत्तम।*

   

      यदि दो दिन हो तो उपवास में तो पहली ही ग्रहण करें। 

*नागविद्धा तु या षष्ठी शिवविद्धा तु सप्तमी।*

*दशम्येकादशीविद्धा नोपोष्या सा कथञ्चन।।*     

      यदि दोनों दिन कर्मकालव्यापिनी तिथि का अभाव हो तो विकल्प ऐच्छिक है। यथा-

*सम्पूर्णा दशमी कार्या परया पूर्वयाथवा।*

*युक्ता न दूषिता यस्मादिति सा सर्वतोमुखी।।*


       इस दिन पितरों के निमित्त किए गए कर्म भी अक्षय्य पुण्य को देने वाले कहे गए हैं। गंगा की सुलभता नहीं हो तो किसी भी नदी या तीर्थ पर स्नान कर पित्रीश्वरों के निमित्त किया कर्म भी महापातकों का नाश करता है। स्कन्दपुराण में कहा है-

*यां काञ्चित् सरितं प्राप्य दद्यादर्घ्यं तिलोदकम्।*

*मुच्यते दशभि: पापै: स महापातकोपमै:।।*


     यदि ज्येष्ठ मलमास आ जावे तो उसमें गंगादशमी को स्नानादि का और भी अधिक महत्त्व है और मलमास में ही दशहरा मनाना चाहिए। क्योंकि मलमास में ही हस्तनक्षत्रादि दश प्रकार के योग सम्भव है शुद्धमास में नहीं। यह पर्व कलियुग में ही नहीं चारों युगों में शुभोत्कर्षी कहा गया है। साथ ही यह दशमी "संवत्सरमुखी" भी कही गयी है।


*ज्येष्ठे मलमासे सति तत्रैव दशहरा कार्या न तु शुद्धे।।*

*दशहरा: शुभोत्कर्षाश्चतुर्ष्वपि युगादिषु।।*

*ज्येष्ठस्य शुक्लदशमी संवत्सरमुखी स्मृता।।*


     दश प्रकार के विशेष मुहूर्त योगों में इसी दिन सेतुबंध रामेश्वरम् के दर्शन का भी महत् पुण्य है। क्योंकि उसी संजोग में भगवान आशुतोष - देवों के देव महादेव ने लिङ्गरूप धारण किया था। जीवन के पर्याय - रोम रोम में बसने वाले राम ने सर्वोत्कृष्ट शिवलिंग "रामेश्वरम्" की स्थापना भी इसी दिन की थी।


दशयोगे सेतुमध्ये लिङ्गरूपधरं हरम्‌।।

रामो वै स्थापयामास शिवलिङ्गमनुत्तमम्।।


     प्रश्न है दश योग कौनसे हैं। इस दिन संयोग से दश योग में अधिकतम मिल जाएं तो क्या कहना। स्कन्द पुराण में कहा है कि -

*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयो:।*

*व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे वृषे रवौ।।*

विशेष- *अत्र बुधभौमयो: कल्पभेदेन व्यवस्था।*


       इस बार वर्षों बाद गंगा दशमी के दिन इन दश योगों में से लगभग सभी ् सुयोगों का संयोग बन रहा है जो दानपुण्य स्नान और उपवासादि के लिए अत्यन्त ही श्रेयस्कर है।

1. ज्येष्ठ माह 2. शुक्ल पक्ष 3. दशमी तिथि 4. मंगलवार 5. हस्त नक्षत्र 6. प्रदोष काल में व्यतिपात योग 7. गर करण 8. आनन्द योग किंचित्मात्र स्पर्श 9. कन्या का चन्द्रमा और 10. वृष राशि का सूर्य।

शास्त्रकारों ने तिथि को देवताओं का शरीर कहा है -

*तिथि: शरीरं देवस्य तिथौ नक्षत्रमाश्रितम्।*

*तस्मात्तिथिं प्रशंसन्ति नक्षत्रं न तिथिं बिना।।*


     इस दिन काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान, दशाश्वमेध शिवलिंगदर्शन, गंगा पूजन, दान-पुण्य और रात्रि जागरण का अखण्ड पुण्य कहा है।

     वैसे कहीं भी रहकर शुद्ध भाव से इस दिन गंगा मैया की प्रसन्नता के लिए स्नान ध्यान जप पूजा स्तोत्र पाठ होम दानादि करें ‌या करावें तो सभी महाकष्टों की भयावहता दूर होती है। जप के लिए बीस या बाइस अक्षरों के ये मंत्र भी प्रभावी हैं।


*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै स्वाहा।।*

या

*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै नमो नमः।।*


     मां गंगे से मेरी विशेष प्रार्थना है -

*क्षपितकलिकलङ्का जाह्नवी न: पुनातु।।*


*पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि।*

*शैलप्रचारि गिरिराजगुहाविदारि ।*

*झङ्कारकारि हरिपादरजोऽपहारि।*

*गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि।।*


शिव भी हमारा शिव करें।

  

      *!! तनोतु नः शिव: शिवम् !!*

*मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।*

*जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।*

*विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।*

*श्रेय:प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।*


ऐसे पुण्य अवसरों पर पितरों का स्मरण भी अभिष्ट पुण्यदायी होता है।


*ॐ पितृगणाय विद्महे देवरूपाय धीमहि तन्नो दिव्य: प्रचोदयात्।।*

*( पितृणां बहुत्वेऽपि गणत्वेन देवतात्वात् पूजादावेकवचनमेव )*


पित्रीश्वरों के लिए मेरे द्वारा रचित प्रार्थना -

*वंशोद्धारधुरन्धरा: सुविपुला वंशावलीवर्धका:*

*दृप्तोदण्डदुरीहदुष्टदमना दिव्या: सुदिव्या: शिवा:।।*

*सम्पूर्णा विलसन्ति देवसदने पूजोपचारे रता:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*


*सौम्या ज्ञानमया: सुदिव्यपितर: पापापहारापरा:*

*प्रत्यक्षा भवरोगनाशनकरा ऐश्वर्यसंरक्षका:।*

*भाग्यारोग्यबलश्रेयायुसुखदा: कारुण्यरूपा: शुभा:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*

ग्रन्थों में और भी प्रार्थना -

*पितृगणा गुणातीता भुक्तिसुखंकरा:।*

*दिव्या: पापहरा नित्यं महदानन्ददायका:।।*


*दिव्या: वितन्वते वंशं दिव्या: सर्वाघसूदना:।*

*प्रसादात् यस्य कामानां प्रभवो हि विनिश्चित:।।*

 

हर हर गङ्गे हर हर महादेव

              *पं. कौशल दत्त शर्मा*

                       *ज्योतिषाचार्य* 

*गङ्गा दशमी-गङ्गा दशहरा 30.5.2023 को*


*वर्षों बाद गंगा दशहरा मंगलवार हस्त नक्षत्र में विशेष पुण्यदायी*         


*ज्येष्ठशुक्लदशम्यां गङ्गावतार:। इयं दशहरासंज्ञिका।* यथा-


*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता।*

*हरते दशपापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।*


    ज्येष्ठ शुक्ला दशमी सर्व पाप विनाशिनी मां गंगा की अवतरण तिथि है। यही गंगा दशमी सेतुबंध रामेश्वरम् महादेव की प्रतिष्ठापना दिवस के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन विशेष स्नान दान करने से दश प्रकार के पापों का विनाश होता है, इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा कहते हैं। कई वर्षों बाद इस बार गंगा दशमी मंगलवार और हस्त नक्षत्र से युक्त आ रही है जो अत्यन्त श्रेयस्कर है, दुर्लभ है। 

यथा भविष्य पुराण में कहा है -

*ज्येष्ठे शुक्ल दशम्यां तु भवेद्भौमदिने यदि।*

*ज्ञेया हस्तर्क्षसंयुक्ता सर्वपापहरा तिथि:*


     यह पावन पर्व हम सभी के दश विध पापों का हरण करे ऐसी प्रार्थना कलिकाल कल्मष हारिणी पतित पावनी मां गंगा से है। मां गंगा का इसी दिन स्वर्गलोक से मृत्युलोक में हम सब पापियों के पाप हरने के लिए पदार्पण हुआ था। और भी कहा है -


*ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्याम्।*

*हस्ते शैलान्निरगमदियं जाह्नवी मर्त्यलोकम्।।*


     इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन करने से मनुष्य के दश प्रकार के पापों का नाश होता है और अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इसे दशहरा कहते है। यथा-


*पापान्यस्यां हरति च तिथौ सा दशेत्याहुरार्या:।*

*पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधायुतस्य।*


     प्रश्न पैदा होता है इस दिन गंगा-स्नान, दर्शन, स्पर्श, पूजन और स्मरण मात्र से कौनसे दश पापों से मुक्ति मिलती है। कुछ आचार्य दश जन्मों के पाप हरने से इसे दशहरा कहते हैं। महर्षि मनु ने मनुस्मृति में चार प्रकार के वाचिक, तीन प्रकार के कायिक और तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे हैं।


चतुर्विध वाचिक पाप-

*पारुष्यमनृतञ्चैव पैशुन्यं चापि सर्वत:।*

*असम्बद्धप्रलापञ्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्।।*


त्रिविध कायिक पाप-

*अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानत:।*

*परदारोपसेवा च कायिकं त्रिविधम्मतम्।।*


त्रिविध मानसिक पाप-

*परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्।*

*वितथाभिनिवेशश्च मानसं त्रिविधं स्मृतम्।।*

इस प्रकार 4+3+3 = 10 प्रकार के पाप कहे गये हैं।


      सामान्यतः शुक्ल पक्ष में उदयात् तिथि अर्थात् पूर्वविद्धा ग्रहण करनी चाहिए और कृष्ण पक्ष में अस्तमिता।

*शुक्लपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामभ्युदितो रवि:।*

*कृष्णपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामस्तमितो रवि:।।*

स्कन्द पुराण में और भी कहा है -

*दशमी चैव कर्तव्या सदुर्गा द्विजसत्तम।*

   

      यदि दो दिन हो तो उपवास में तो पहली ही ग्रहण करें। 

*नागविद्धा तु या षष्ठी शिवविद्धा तु सप्तमी।*

*दशम्येकादशीविद्धा नोपोष्या सा कथञ्चन।।*     

      यदि दोनों दिन कर्मकालव्यापिनी तिथि का अभाव हो तो विकल्प ऐच्छिक है। यथा-

*सम्पूर्णा दशमी कार्या परया पूर्वयाथवा।*

*युक्ता न दूषिता यस्मादिति सा सर्वतोमुखी।।*


       इस दिन पितरों के निमित्त किए गए कर्म भी अक्षय्य पुण्य को देने वाले कहे गए हैं। गंगा की सुलभता नहीं हो तो किसी भी नदी या तीर्थ पर स्नान कर पित्रीश्वरों के निमित्त किया कर्म भी महापातकों का नाश करता है। स्कन्दपुराण में कहा है-

*यां काञ्चित् सरितं प्राप्य दद्यादर्घ्यं तिलोदकम्।*

*मुच्यते दशभि: पापै: स महापातकोपमै:।।*


     यदि ज्येष्ठ मलमास आ जावे तो उसमें गंगादशमी को स्नानादि का और भी अधिक महत्त्व है और मलमास में ही दशहरा मनाना चाहिए। क्योंकि मलमास में ही हस्तनक्षत्रादि दश प्रकार के योग सम्भव है शुद्धमास में नहीं। यह पर्व कलियुग में ही नहीं चारों युगों में शुभोत्कर्षी कहा गया है। साथ ही यह दशमी "संवत्सरमुखी" भी कही गयी है।


*ज्येष्ठे मलमासे सति तत्रैव दशहरा कार्या न तु शुद्धे।।*

*दशहरा: शुभोत्कर्षाश्चतुर्ष्वपि युगादिषु।।*

*ज्येष्ठस्य शुक्लदशमी संवत्सरमुखी स्मृता।।*


     दश प्रकार के विशेष मुहूर्त योगों में इसी दिन सेतुबंध रामेश्वरम् के दर्शन का भी महत् पुण्य है। क्योंकि उसी संजोग में भगवान आशुतोष - देवों के देव महादेव ने लिङ्गरूप धारण किया था। जीवन के पर्याय - रोम रोम में बसने वाले राम ने सर्वोत्कृष्ट शिवलिंग "रामेश्वरम्" की स्थापना भी इसी दिन की थी।


दशयोगे सेतुमध्ये लिङ्गरूपधरं हरम्‌।।

रामो वै स्थापयामास शिवलिङ्गमनुत्तमम्।।


     प्रश्न है दश योग कौनसे हैं। इस दिन संयोग से दश योग में अधिकतम मिल जाएं तो क्या कहना। स्कन्द पुराण में कहा है कि -

*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयो:।*

*व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे वृषे रवौ।।*

विशेष- *अत्र बुधभौमयो: कल्पभेदेन व्यवस्था।*


       इस बार वर्षों बाद गंगा दशमी के दिन इन दश योगों में से लगभग सभी ् सुयोगों का संयोग बन रहा है जो दानपुण्य स्नान और उपवासादि के लिए अत्यन्त ही श्रेयस्कर है।

1. ज्येष्ठ माह 2. शुक्ल पक्ष 3. दशमी तिथि 4. मंगलवार 5. हस्त नक्षत्र 6. प्रदोष काल में व्यतिपात योग 7. गर करण 8. आनन्द योग किंचित्मात्र स्पर्श 9. कन्या का चन्द्रमा और 10. वृष राशि का सूर्य।

शास्त्रकारों ने तिथि को देवताओं का शरीर कहा है -

*तिथि: शरीरं देवस्य तिथौ नक्षत्रमाश्रितम्।*

*तस्मात्तिथिं प्रशंसन्ति नक्षत्रं न तिथिं बिना।।*


     इस दिन काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान, दशाश्वमेध शिवलिंगदर्शन, गंगा पूजन, दान-पुण्य और रात्रि जागरण का अखण्ड पुण्य कहा है।

     वैसे कहीं भी रहकर शुद्ध भाव से इस दिन गंगा मैया की प्रसन्नता के लिए स्नान ध्यान जप पूजा स्तोत्र पाठ होम दानादि करें ‌या करावें तो सभी महाकष्टों की भयावहता दूर होती है। जप के लिए बीस या बाइस अक्षरों के ये मंत्र भी प्रभावी हैं।


*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै स्वाहा।।*

या

*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै नमो नमः।।*


     मां गंगे से मेरी विशेष प्रार्थना है -

*क्षपितकलिकलङ्का जाह्नवी न: पुनातु।।*


*पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि।*

*शैलप्रचारि गिरिराजगुहाविदारि ।*

*झङ्कारकारि हरिपादरजोऽपहारि।*

*गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि।।*


शिव भी हमारा शिव करें।

  

      *!! तनोतु नः शिव: शिवम् !!*

*मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।*

*जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।*

*विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।*

*श्रेय:प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।*


ऐसे पुण्य अवसरों पर पितरों का स्मरण भी अभिष्ट पुण्यदायी होता है।


*ॐ पितृगणाय विद्महे देवरूपाय धीमहि तन्नो दिव्य: प्रचोदयात्।।*

*( पितृणां बहुत्वेऽपि गणत्वेन देवतात्वात् पूजादावेकवचनमेव )*


पित्रीश्वरों के लिए मेरे द्वारा रचित प्रार्थना -

*वंशोद्धारधुरन्धरा: सुविपुला वंशावलीवर्धका:*

*दृप्तोदण्डदुरीहदुष्टदमना दिव्या: सुदिव्या: शिवा:।।*

*सम्पूर्णा विलसन्ति देवसदने पूजोपचारे रता:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*


*सौम्या ज्ञानमया: सुदिव्यपितर: पापापहारापरा:*

*प्रत्यक्षा भवरोगनाशनकरा ऐश्वर्यसंरक्षका:।*

*भाग्यारोग्यबलश्रेयायुसुखदा: कारुण्यरूपा: शुभा:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*

ग्रन्थों में और भी प्रार्थना -

*पितृगणा गुणातीता भुक्तिसुखंकरा:।*

*दिव्या: पापहरा नित्यं महदानन्ददायका:।।*


*दिव्या: वितन्वते वंशं दिव्या: सर्वाघसूदना:।*

*प्रसादात् यस्य कामानां प्रभवो हि विनिश्चित:।।*

 

हर हर गङ्गे हर हर महादेव

              *पं. कौशल दत्त शर्मा*

                       *ज्योतिषाचार्य* 

*गङ्गा दशमी-गङ्गा दशहरा 30.5.2023 को*


*वर्षों बाद गंगा दशहरा मंगलवार हस्त नक्षत्र में विशेष पुण्यदायी*         


*ज्येष्ठशुक्लदशम्यां गङ्गावतार:। इयं दशहरासंज्ञिका।* यथा-


*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता।*

*हरते दशपापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।*


    ज्येष्ठ शुक्ला दशमी सर्व पाप विनाशिनी मां गंगा की अवतरण तिथि है। यही गंगा दशमी सेतुबंध रामेश्वरम् महादेव की प्रतिष्ठापना दिवस के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन विशेष स्नान दान करने से दश प्रकार के पापों का विनाश होता है, इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा कहते हैं। कई वर्षों बाद इस बार गंगा दशमी मंगलवार और हस्त नक्षत्र से युक्त आ रही है जो अत्यन्त श्रेयस्कर है, दुर्लभ है। 

यथा भविष्य पुराण में कहा है -

*ज्येष्ठे शुक्ल दशम्यां तु भवेद्भौमदिने यदि।*

*ज्ञेया हस्तर्क्षसंयुक्ता सर्वपापहरा तिथि:*


     यह पावन पर्व हम सभी के दश विध पापों का हरण करे ऐसी प्रार्थना कलिकाल कल्मष हारिणी पतित पावनी मां गंगा से है। मां गंगा का इसी दिन स्वर्गलोक से मृत्युलोक में हम सब पापियों के पाप हरने के लिए पदार्पण हुआ था। और भी कहा है -


*ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्याम्।*

*हस्ते शैलान्निरगमदियं जाह्नवी मर्त्यलोकम्।।*


     इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन करने से मनुष्य के दश प्रकार के पापों का नाश होता है और अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इसे दशहरा कहते है। यथा-


*पापान्यस्यां हरति च तिथौ सा दशेत्याहुरार्या:।*

*पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधायुतस्य।*


     प्रश्न पैदा होता है इस दिन गंगा-स्नान, दर्शन, स्पर्श, पूजन और स्मरण मात्र से कौनसे दश पापों से मुक्ति मिलती है। कुछ आचार्य दश जन्मों के पाप हरने से इसे दशहरा कहते हैं। महर्षि मनु ने मनुस्मृति में चार प्रकार के वाचिक, तीन प्रकार के कायिक और तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे हैं।


चतुर्विध वाचिक पाप-

*पारुष्यमनृतञ्चैव पैशुन्यं चापि सर्वत:।*

*असम्बद्धप्रलापञ्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्।।*


त्रिविध कायिक पाप-

*अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानत:।*

*परदारोपसेवा च कायिकं त्रिविधम्मतम्।।*


त्रिविध मानसिक पाप-

*परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्।*

*वितथाभिनिवेशश्च मानसं त्रिविधं स्मृतम्।।*

इस प्रकार 4+3+3 = 10 प्रकार के पाप कहे गये हैं।


      सामान्यतः शुक्ल पक्ष में उदयात् तिथि अर्थात् पूर्वविद्धा ग्रहण करनी चाहिए और कृष्ण पक्ष में अस्तमिता।

*शुक्लपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामभ्युदितो रवि:।*

*कृष्णपक्षे तिथिर्ग्राह्या यस्यामस्तमितो रवि:।।*

स्कन्द पुराण में और भी कहा है -

*दशमी चैव कर्तव्या सदुर्गा द्विजसत्तम।*

   

      यदि दो दिन हो तो उपवास में तो पहली ही ग्रहण करें। 

*नागविद्धा तु या षष्ठी शिवविद्धा तु सप्तमी।*

*दशम्येकादशीविद्धा नोपोष्या सा कथञ्चन।।*     

      यदि दोनों दिन कर्मकालव्यापिनी तिथि का अभाव हो तो विकल्प ऐच्छिक है। यथा-

*सम्पूर्णा दशमी कार्या परया पूर्वयाथवा।*

*युक्ता न दूषिता यस्मादिति सा सर्वतोमुखी।।*


       इस दिन पितरों के निमित्त किए गए कर्म भी अक्षय्य पुण्य को देने वाले कहे गए हैं। गंगा की सुलभता नहीं हो तो किसी भी नदी या तीर्थ पर स्नान कर पित्रीश्वरों के निमित्त किया कर्म भी महापातकों का नाश करता है। स्कन्दपुराण में कहा है-

*यां काञ्चित् सरितं प्राप्य दद्यादर्घ्यं तिलोदकम्।*

*मुच्यते दशभि: पापै: स महापातकोपमै:।।*


     यदि ज्येष्ठ मलमास आ जावे तो उसमें गंगादशमी को स्नानादि का और भी अधिक महत्त्व है और मलमास में ही दशहरा मनाना चाहिए। क्योंकि मलमास में ही हस्तनक्षत्रादि दश प्रकार के योग सम्भव है शुद्धमास में नहीं। यह पर्व कलियुग में ही नहीं चारों युगों में शुभोत्कर्षी कहा गया है। साथ ही यह दशमी "संवत्सरमुखी" भी कही गयी है।


*ज्येष्ठे मलमासे सति तत्रैव दशहरा कार्या न तु शुद्धे।।*

*दशहरा: शुभोत्कर्षाश्चतुर्ष्वपि युगादिषु।।*

*ज्येष्ठस्य शुक्लदशमी संवत्सरमुखी स्मृता।।*


     दश प्रकार के विशेष मुहूर्त योगों में इसी दिन सेतुबंध रामेश्वरम् के दर्शन का भी महत् पुण्य है। क्योंकि उसी संजोग में भगवान आशुतोष - देवों के देव महादेव ने लिङ्गरूप धारण किया था। जीवन के पर्याय - रोम रोम में बसने वाले राम ने सर्वोत्कृष्ट शिवलिंग "रामेश्वरम्" की स्थापना भी इसी दिन की थी।


दशयोगे सेतुमध्ये लिङ्गरूपधरं हरम्‌।।

रामो वै स्थापयामास शिवलिङ्गमनुत्तमम्।।


     प्रश्न है दश योग कौनसे हैं। इस दिन संयोग से दश योग में अधिकतम मिल जाएं तो क्या कहना। स्कन्द पुराण में कहा है कि -

*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयो:।*

*व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे वृषे रवौ।।*

विशेष- *अत्र बुधभौमयो: कल्पभेदेन व्यवस्था।*


       इस बार वर्षों बाद गंगा दशमी के दिन इन दश योगों में से लगभग सभी ् सुयोगों का संयोग बन रहा है जो दानपुण्य स्नान और उपवासादि के लिए अत्यन्त ही श्रेयस्कर है।

1. ज्येष्ठ माह 2. शुक्ल पक्ष 3. दशमी तिथि 4. मंगलवार 5. हस्त नक्षत्र 6. प्रदोष काल में व्यतिपात योग 7. गर करण 8. आनन्द योग किंचित्मात्र स्पर्श 9. कन्या का चन्द्रमा और 10. वृष राशि का सूर्य।

शास्त्रकारों ने तिथि को देवताओं का शरीर कहा है -

*तिथि: शरीरं देवस्य तिथौ नक्षत्रमाश्रितम्।*

*तस्मात्तिथिं प्रशंसन्ति नक्षत्रं न तिथिं बिना।।*


     इस दिन काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान, दशाश्वमेध शिवलिंगदर्शन, गंगा पूजन, दान-पुण्य और रात्रि जागरण का अखण्ड पुण्य कहा है।

     वैसे कहीं भी रहकर शुद्ध भाव से इस दिन गंगा मैया की प्रसन्नता के लिए स्नान ध्यान जप पूजा स्तोत्र पाठ होम दानादि करें ‌या करावें तो सभी महाकष्टों की भयावहता दूर होती है। जप के लिए बीस या बाइस अक्षरों के ये मंत्र भी प्रभावी हैं।


*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै स्वाहा।।*

या

*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै नमो नमः।।*


     मां गंगे से मेरी विशेष प्रार्थना है -

*क्षपितकलिकलङ्का जाह्नवी न: पुनातु।।*


*पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि।*

*शैलप्रचारि गिरिराजगुहाविदारि ।*

*झङ्कारकारि हरिपादरजोऽपहारि।*

*गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि।।*


शिव भी हमारा शिव करें।

  

      *!! तनोतु नः शिव: शिवम् !!*

*मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।*

*जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।*

*विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।*

*श्रेय:प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।*


ऐसे पुण्य अवसरों पर पितरों का स्मरण भी अभिष्ट पुण्यदायी होता है।


*ॐ पितृगणाय विद्महे देवरूपाय धीमहि तन्नो दिव्य: प्रचोदयात्।।*

*( पितृणां बहुत्वेऽपि गणत्वेन देवतात्वात् पूजादावेकवचनमेव )*


पित्रीश्वरों के लिए मेरे द्वारा रचित प्रार्थना -

*वंशोद्धारधुरन्धरा: सुविपुला वंशावलीवर्धका:*

*दृप्तोदण्डदुरीहदुष्टदमना दिव्या: सुदिव्या: शिवा:।।*

*सम्पूर्णा विलसन्ति देवसदने पूजोपचारे रता:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*


*सौम्या ज्ञानमया: सुदिव्यपितर: पापापहारापरा:*

*प्रत्यक्षा भवरोगनाशनकरा ऐश्वर्यसंरक्षका:।*

*भाग्यारोग्यबलश्रेयायुसुखदा: कारुण्यरूपा: शुभा:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*

ग्रन्थों में और भी प्रार्थना -

*पितृगणा गुणातीता भुक्तिसुखंकरा:।*

*दिव्या: पापहरा नित्यं महदानन्ददायका:।।*


*दिव्या: वितन्वते वंशं दिव्या: सर्वाघसूदना:।*

*प्रसादात् यस्य कामानां प्रभवो हि विनिश्चित:।।*

 

हर हर गङ्गे हर हर महादेव

              *पं. कौशल दत्त शर्मा*

                       *ज्योतिषाचार्य* 

              *प्रधानाचार्य संस्कृत शिक्षा*

              *नीमकाथाना राजस्थान*

              *9414467988*              *प्रधानाचार्य संस्कृत शिक्षा*

              *नीमकाथाना राजस्थान*

              *9414467988*              *प्रधानाचार्य संस्कृत शिक्षा*

              *नीमकाथाना राजस्थान*

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