शीतलाष्टमी - बास्योड़ा🌹 इस वर्ष 15 मार्च बुधवार को मनाया जाना श्रेयस्कर है।


              🌹शीतलाष्टमी - बास्योड़ा🌹


      इस वर्ष 15 मार्च बुधवार को मनाया जाना श्रेयस्कर है।



     शास्त्रीय मत एवं लोक मान्यता अनुसार होली के बाद उग्र वारों ( रविवार, मंगलवार, शनिवार ) को छोड़कर सौम्य वार ( सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार ) को ही शीतलाष्टमी जिसे शीतला सप्तमी भी कहते हैं मनायी जानी चाहिए। इनमें भी सोमवार विशेष शुभ है। अष्टमी तिथि तो रूढ़ है अर्थात् शीतला पूजन में अष्टमी ही हो ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है।


सप्तमी ध्यानम्-

*ताम्रवर्णाब्ज पात्रा सा हयस्था सप्तमी मता।*

और भी-

*नीलकुन्तेन्दु कण्ठा सा जटा खण्डेन्दु भूषिता।*

*इभस्था सप्तमी गौरी द्विभुजा वज्रधारिणी।।*


अष्टमी ध्यानम्-

*प्रेतगा चाष्टमी रक्ता कृष्णग्रीवासितांशुका।*

*अक्षं खड्गं तथा खेटं पात्रं धत्ते चतुर्भुजा।।*


       शीतला पूजन में शास्त्रीय आदेशों के साथ लोक परम्पराएं प्रबल होती हैं। यथा-

      *जिस वार की होली होती है उस वार को शीतला पूजन नहीं होता है।*

      इस बार होलिका दहन सोमवार को हुआ है अतः सोमवार को शीतला पूजन नहीं होगा।

     *शीतला पूजन से बारहवें दिन गणगौर नहीं आनी चाहिए।*

       13 मार्च सोमवार से बारहवें दिन गणगौर है अतः इस बार सोमवार को शीतला पूजन शुभ नहीं माना जाएगा।

        14 मार्च को मंगलवार है जो क्रूर वार है जो त्याज्य है। अतः बुधवार को शीतलाष्टमी/ शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।

       चोथे, पाँचवे, छठे सातवें दिन सौम्य वार को तो बास्योड़ा मनाया जा सकता है।   

       कतिपय स्थानों पर होली के दिन से सातवें दिन तक नित्य जल का कलश शीतला माता के चढ़ाते हैं और सातवें दिन ही शीतलाष्टमी मानते हैं।

शीतला माता के पूजन का उद्देश्य -

        परिवार में कोई आपदा आन पड़े तो आने वाले सोमवार 20 मार्च को भी बास्योड़ा मना सकते हैं।

       *"अष्टमी तिथि" शब्द तै रूढ़ है।"*

        बुधवार से पहले मंगलवार के दिन सायं राँधा-पूआ ( मीठा भात, मीठा बाजरा, राबड़ी, हलवा, गुलगुला-पुआ, पकोड़ी, पूड़ी आदि ) बनावें। दूसरे दिन सुबह दश मिट्टी के कुंडारे - सराई में सब पकवान रख हल्दी से तिलक व पूजा अर्चना करें। लोकाचार में जो मान्यता हो उसे प्राथमिकता दें।

       माता के मन्दिर में जाकर ठंडा प्रसाद चढ़ावें और कुंभ के शीतल जल से शीतला माता को सींचें। जाये-ब्याहे पर दस कंडवारे अलग से चढ़ावें।

*कुम्भे स्थापयेद्देवीं पूजयेन्नाम मन्त्रत:।*

*शीतले दहन मे पापं पुत्रसौख्यफलप्रदे।।*


माता से प्रार्थना करें -

*धनधान्यप्रदे देवि पूजां गृह्ण नमोस्तुते।*

*शीतले शीतलाकारे अवैधव्य सुतप्रदे।‌।*

      माता आदि रोग दोष से मुक्ति, दुःख दारिद्र्य से परिवार की रक्षा, स्वस्थ सुखी समृद्ध जीवन निर्वहन करने, वंशवृद्धि पुत्रसन्तति एवं वंश संरक्षण हेतु शीतला माता की हर घर में शीतल पकवानों से पारिवारिक परम्परानुसार पूजा अर्चना करनी चाहिए। बास्योड़ा के दिन सब ठण्डा भोजन करें। ठंडे भोजन को दही के साथ खाने और माता के चढ़ाने का विशेष महत्व है-

*शीतलेऽन्नानि पक्वानि दध्ना समन्वितानि च।।*


      सौभाग्यशाली सुखी समृद्ध जीवन, पतिसुख के साथ दीर्घायुष्य जीवन, धनधान्य की प्राप्ति के लिए इस दिन माताएँ सिलाई ना करें, सिर ना धोएँ और घर में कोई क्रोध भी ना करें।

      शीतला पूजन में भद्रा आदि का कोई दोष नहीं होता है।

प्रार्थना मन्त्र..

            नमामि शीतलां देवीं,

            रासभस्थां दिगम्बराम्।

            मार्जनी - कलशोपेतां,

            शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्।।

       स्कन्द पुराण में "नमामि" के स्थान पर "वन्देऽहं" पाठ लिखा है।

 

                  

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