वोटों की रोटी सेंकने वाले अब नहीं दिखते बाजार में*
*वोटों की रोटी सेंकने वाले अब नहीं दिखते बाजार में*
सुभाष तिवारी लखनऊ
अधिसूचना की सुगबुगाहट से जिले में समाजसेवियों की संख्या में इजाफा हो गया था। चुनाव को लेकर न्यायालय का फैसला आने के बाद से समाजसेवी नदारद हैं। या फिर यूं कहे कि चुनावी दस्तक में समाजसेवियों का चुनावी कंबल अब नजर नहीं आ रहा है। खैर कुछ भी हो लेकिन जब तक समाजसेवी शहर में नजर आते रहे तब तक जरूरतमंदों को कंबल मुहैया होते रहे। चुनाव में समाजसेवी बनकर पहचान और पकड़ बनाने का तरीका अपनाया जाता है। कुछ समाजसेवा करते हैं कुछ इसका सहारा लेकर चुनाव लड़ते देखे जाते हैं। शहर निकाय चुनाव की अधिसूचना की सुगबुगाहट लगते ही कई ऐसे समाजसेवी व समर्थित समाजसेवी अपनी-अपनी नगर पालिक व नगर पंचायत में सक्रिय हो गए थे। ब्लाक मोहल्लों में लोगों से संपर्क बनाए हुए थे, साथ ही समस्याएं सुनकर मानयीय व संबंधित व्यक्ति से मिलकर समाधान करवाते थे।
अधिसूचना जारी होने के बाद वोटो की जोड़-तोड़ में लगे दावेदार न्यायालय आदेश के बाद चुनाव लड़ने की चाहत में हुए खर्च का हिसाब-किताब अब लगा रहे हैं। दावेदारों का मानना है कि चुनाव टलने से उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ ही है साथ ही अब चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद फिर से मेहनत करनी होगी।
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