हमारे परमात्मा ने कमल के समान जीवन जीने की प्रेरणा दी है : साध्वी जयदर्शिता
हमारे परमात्मा ने कमल के समान जीवन जीने की प्रेरणा दी है : साध्वी जयदर्शिता
- आयड़ जैन तीर्थ में हुआ सभी तपस्वियों का सामूहिक निवी का आयोजन
- आयड़ जैन तीर्थ में चातुर्मासिक प्रवचन की धूम जारी
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उदयपुर जनतंत्र की आवाज विवेक अग्रवाल। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्तवावधान में कला पूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता श्रीजी, जिनरसा श्रीजी, जिनदर्शिता श्रीजी व जिनमुद्रा श्रीजी महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। नाहर ने बताया कि 3 सितम्बर बुधवार को 11 बजे सामूहिक निवी कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जिसमें करीब 200 से अधिक श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे। सामूहिक निवी सभी तपस्वियों को आयड़ जैन तीर्थ के भोजनशाला में एक साथ लुका भोजन कराकर पारणा कराया गया।
नाहर ने बताया कि 7 सितम्बर को चैत्य परिपाटी का आयोजन होगा जिसमें आयड़ जैन मंदिर से गाजे-बाजे के साथ 100 फिट रोड स्थित आदिनाथ जैन मंदिर जाएगें जहां चैत्य वंदन पूजन का आयोजन होगा उसके बाद शोभायात्रा पुन: आयड़ तीर्थ पर पहुंचेगी जहां सभी धर्मावलम्बियों की नवकारसी होगी।
मंगलवार को आयड़ तीर्थ पर साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने कहा कि तारक तीर्थकर परमात्मा ने भी अपने धर्म उपदेश में कमल के स्वरूप का निर्देश कर कमल के समान जीवन जीने की प्रेरणा दी है। कमल की सबसे बड़ी प्रेरणा हे। कमल कीचड़ में पैदा होता है, जल से अभिवृद्धि को प्राप्त करता है, परन्तु वह कमक कीचड़ व जल से एकदम अलिप्त ही रहता है। सरोवर के बीच रहने पर भी वह सरोवर के जल से अलग ही रहता है। कमल का मूक उपदेश है संसार में जीयो किन्तु अनासका भाव से भौतिक परार्थों के बीच रहने पर भी उन पदार्थों के प्रति हृदय में लेरा भी आसक्ति नहीं होनी चाहिये। यदि इसमें जो आसक्त होता है वह नीचे डूब जाता है और जो अनासक्त होता है वह कमल की भाँति ऊपर उठता है। जीवन में निर्लेप भाव आ जाय तो जीवन आत्मा के असीम आनंद से भर जाएगा। कमल की दूसरी निशेषता है-निर्मलता। कमल के चारों ओर जल और कीचड़ भी मेला है परन्तु वह सर्वया मल रहित निर्मल और स्वचा होता है। निर्मल कपल का यही उपदेश है जीवन निर्मल होना चाहिए। अपने जीवन वस्त्र पर किसी प्रकार का दाग नहीं होना चाहिए जीवन निष्कलंक हो-मन्ति हिंसा, झूठ, चोरी व्यभिचार और परिग्रह के पाप से जीवन कलंकित नहीं हो। कमल की तीसरी विशेषता है- वह अत्यंत ही सुगन्धित होता है। अपने निकट आने वाले सभी को नह समान भाग से सुगंध ही प्रदान करता है। कोई कमल को सम्मान दे अपना कोई मोड़ दे फिर भी यह सुगंध ही देता है। उसकी सुगंध का प्रतीक है।
इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, संजय खाब्या, भोपाल सिंह परमार, सतीश कच्छारा, चतर सिंह पामेचा, राजेन्द्र जवेरिया, अंकुर मुर्डिया, पिन्टू चौधरी, हर्ष खाब्या, गजेन्द्र खाब्या, नरेन्द्र सिरोया, राजू पंजाबी, रमेश मारू, सुनील पारख, पारस पोखरना, राजेन्द्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, गोवर्धन सिंह बोल्या, दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।
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