दीपावली 20 अक्टूबर सोमवार को न कि 21 अक्टूबर को

 दीपावली 20 अक्टूबर सोमवार को न कि 21 अक्टूबर को


देश में इस वर्ष भी दीपावली निर्णय को लेकर कतिपय महानुभाव विभ्रम पैदा कर रहे हैं।


दीपावली निर्णय के लिए सबसे मुख्य पक्ष है कि जिस दिन भी प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या तिथि हो उस दिन दीपावली होती है।


*प्रदोष काल अर्थात् सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्त तक जिस दिन भी अमावस्या हो अर्थात्  सूर्यास्त के बाद छः घटी = 144 मिनट तक जिस दिन भी अमावस्या हो उस दिन दीपावली होगी।*


यदि दोनों दिन प्रदोषकाल में 144 मिनट तक अमावस्या है तो दूसरे दिन दीपावली होगी।


भारत के सुदूर पूर्वी अरुणाचल के डोंग क्षेत्र में भी 21 अक्टूबर को प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या नहीं है।


21 अक्टूबर को भारत के किसी भी क्षेत्र में, किसी भी पद्धति के बने, किसी भी पंचांग के अनुसार सूर्यास्त बाद दो घटी भी अमावस्या नहीं है।

राजस्थान आदि में तो 21 अक्टूबर को सायंकाल दस- बीस मिनट भी अमावस्या नहीं है। गतवर्ष घंटा - आधा घंटा तो थी।


*काशी जी के किसी भी पंचांग ने 21 को दीपावली नहीं लगाई। इस बार जयपुर के सुप्रसिद्ध जय विनोदी पंचांग, पंडित बंशीधर दामोदर प्रसाद पंचांग, लाल रंग वाला श्री बल्लभ मनीराम आदि पंचांगों ने 21 की दीपावली नहीं लिखी। फिर विवाद किस काम का।*


*दण्डैक रजनी योगे...* वचन से सूर्यास्त से 144 मिनट प्रदोषकाल के बाद रात्रि में एक दण्ड अर्थात् 24 मिनट  बाद भी अमावस्या हो तो अधिक श्रेयस्कर है। गतवर्ष की भांति इसकी भी 21 को संगति नहीं बैठ रही है।


इस बार 21 अक्टूबर को दीपावली बताने वाले माननीय पंचांगकार धर्मसिंधु में दिया पुरुषार्थ चिन्तामणि का नया सूत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसका मूल स्रोत उन्हें समझना चाहिए कि सार्धत्रियामा किन परिस्थितियों में ग्रहण किया जाता है और जब धर्मसिंधुकार पहली पंक्ति में दीपावली के लिए प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या तिथि का आदेश कर रहे हैं तो आगे जाने का क्या औचित्य है।


दीपावली की रात प्रदोषकाल में पूजा आदि के निमित्त कर्मकाल नितान्त आवश्यक है-  सायं काल सूर्यास्त बाद लक्ष्मी-पूजा, दीप-दान, पितरों की विदाई अर्थात् उल्का दर्शन, व्रत करने वालों के लिए भोजन आदि 20 अक्टूबर सोमवार को ही अमावस्या में इतना समय सम्भव है दूसरे दिन तो सायं काल प्रतिपदा आ जाएगी। मध्यरात्रि में लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व है।


श्राद्धों में अर्थात् कनागतों में आये पितरगण रात्रिकालीन अमावस्या में उल्का दर्शन कर सामान्य अर्थों में सायंकालीन दीपावली के दीपक और पटाखें देखकर अपनों को आशीर्वाद देते हुए प्रस्थान करते हैं।

दीपावली नक्तव्रत अर्थात् रात्रि व्रत है। वह अमावस्या में ही किया जाता है।


क्योंकि ये सब कार्य अमावस्या में ही कहे गये हैं, कर्मकाल व्यापिनी अमावस्या 20 को ही है। देव अमावस्या 20 को और पितरों की अमावस्या 21 को ही रहेगी।


21 अक्टूबर को पूरे दिन अमावस्या है। औदयिकी अमावस्या के निमित्त प्रातःअभ्यङ्ग स्नान, पितरों की अमावस्या, पार्वण श्राद्ध आदि जो भी हैं ये सब काम हमें 21 को करने चाहिए।


तिथि अनुसार दीपावली और अंगभूत पर्व निम्नानुसार करने चाहिए।


18 अक्टूबर शनिवार को धनतेरस।

19 अक्टूबर रविवार को रूपचौदस।

20 अक्टूबर सोमवार को दीपावली - लक्ष्मी पूजा 

21 अक्टुबर मंगलवार को पितरों की अमावस्या।

22 अक्टूबर को अन्नकूट गोवर्धन पूजा आदि होंगे।


ये सभी पर्व हम सबके लिए मंगलमयी हों इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।


दीपावली होली शिवरात्रि शरदपूर्णिमा दशहरा चौथ का व्रत आदि में उदय तिथि ग्रहण नहीं की जाती है। यहां कर्मकाल व्यापिनी तिथि ही ग्राह्य है न कि औदयिकी तिथि।


औदयिकी तिथि को ही आधार मानते हैं तो इस बार शरद पूर्णिमा 07 अक्टूबर को मनाइए क्यों चतुर्दशी में 06 अक्टूबर को मनाने की कह रहे हैं।


औदयिकी तिथि केवल और केवल एकादशी व्रत में ग्राह्य है न की दीपावली आदि पर।


गतवर्ष की भांति 20 अक्टूबर को दीपावली मनाकर 21 को अवकाश में अमावस्या मनाइए और 22 अक्टूबर को अन्नकूट गोवर्धन पूजा।



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