धैर्य ही रावण-वध का मार्ग : डॉ. प्रदीप कुमावत चार दिवसीय “ श्रीराम के पथ की यात्रा” का भव्य समापन श्रद्धा, संगीत और आंसुओं से भिगोई कथा में उदयपुर हुआ भावविभोर

 धैर्य ही रावण-वध का मार्ग : डॉ. प्रदीप कुमावत

चार दिवसीय “ श्रीराम के पथ की यात्रा” का भव्य समापन 

 श्रद्धा, संगीत और आंसुओं से भिगोई कथा में उदयपुर हुआ भावविभोर



उदयपुर संवाददाता जनतंत्र की आवाज विवेक अग्रवाल। जो व्यक्ति धैर्य धारण करता है, वही जीवन के रावणरूपी राक्षस का वध कर सकता है।”  इस संदेश के साथ आलोक संस्थान में चार दिवसीय ‘राम के पथ की यात्रा’ का भव्य समापन हुआ। कथा व्यास डॉ. प्रदीप कुमावत ने जब राम के जीवन के धैर्य, संयम और नीति की व्याख्या की, तो पूरा सभागार भाव-विभोर होकर आंसुओं से भीग गया।

डॉ. कुमावत ने कहा कि जैसे प्रभु श्रीराम ने वनवास के चौदह वर्षों में धीरज रखते हुए अपनी योजना के अनुरूप भालुओं व वानरों की सेना संगठित की, लंका पर चढ़ाई की और अंततः अपने धैर्य एवं नीति से रावण का वध किया  वैसे ही हर व्यक्ति को जीवन के संघर्षों में संयम और विश्वास बनाए रखना चाहिए।

उन्होंने श्रोताओं को नासिक से लेकर श्रीलंका तक की उस ‘राम पथ यात्रा’ पर भावनात्मक रूप से ले जाकर उन सभी स्थलों का वर्णन किया जहाँ प्रभु श्रीराम के पग पड़े थे। कथा के दौरान डॉ. कुमावत ने इन स्थानों से जुड़ी लोककथाओं और पुराण प्रसंगों को इतनी सुंदरता से पिरोया कि श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे।

कथा में उन्होंने रावण के व्यक्तित्व के बहुआयामी पक्षों को भी उजागर किया  “रावण एक महान प्रशासक, कुशल नियोजक, शिवतांडव स्तोत्र का रचयिता और महाशिवभक्त था, परंतु एक भूल ने उसके सारे सद्गुणों को ढँक दिया और उसे इतिहास में बुराई के प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिया।”

उन्होंने कहा कि “राम के मार्ग पर चलने वाले यदि स्वयं उन स्थलों का दर्शन करें जहाँ राम के चरण पड़े थे, तो उन्हें रामायण की ऐतिहासिकता और उसकी भौगोलिक वास्तविकता दोनों का अनुभव होगा।”

भव्य झाँकियाँ बनी आकर्षण का केंद्र

समापन दिवस पर सेतुबंध रामेश्वरम्, अंगद-दूत प्रसंग, लंका दहन, अशोक वाटिका और रावण युद्ध की जीवंत झाँकियों ने समूचे सभागार को भक्तिभाव से भर दिया। भौगोलिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृश्यों को एक साथ पिरोकर इस कथा यात्रा ने पूरे भारतवर्ष में एक नई मिसाल कायम की। यह पहला अवसर था जब “राम के पथ” को इस प्रकार भौगोलिक और भावनात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया

सम्मान और सांस्कृतिक प्रस्तुति

इस अवसर पर नगर के विभिन्न संगठनों, संस्थाओं, समाजों द्वारा कथा व्यास डॉ. प्रदीप कुमावत का पगड़ी, शॉल, उपरना और अभिनंदन पत्र से सम्मान किया गया।

आलोक संस्थान की ओर से 11 विशिष्ट व्यक्तियों को ‘आलोक गौरव पुरस्कार’ भी प्रदान किए गए।

इस अवसर पर मनोज कुमावत, कांता कुमावत , यजमान चांदेश्वर प्रसाद, राहुल जैन, कोमल सिंह चौहान, जयशंकर राय, जितेश कुमावत, किशन वाधवानी, विद्या कुमावत,  निश्चय कुमावत, प्रतीक कुमावत , ध्रुव कुमावत सहित कई गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का संचालन शशांक टांक ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में ललित गोस्वामी ने स्वागत भाषण दिया।

संगीत और कथा का अद्भुत संगम

कथा के साथ-साथ मनमोहन भटनागर, किशन गंधर्व, रागिनी चौबीसा और संगीत मंडली के भजन-कीर्तन ने वातावरण को और अधिक दिव्य बना दिया। “राम के पथ” की कथा जब संगीत की ताल पर आगे बढ़ी तो श्रोताओं को एक अलौकिक अनुभूति हुई। कथा के प्रारंभ में श्री बालकराम जी की आरती और अंत में रामायण जी की आरती के पश्चात पोथी यात्रा का आयोजन हुआ, जो श्रीराम मंदिर आलोक हिरण, मंगरी तक पहुंची। वहाँ भक्तों ने गीत, नृत्य और आरती के साथ भावपूर्ण प्रस्तुतियाँ दीं

कथा के अंतिम क्षण में जब डॉ. कुमावत ने प्रभु श्रीराम की सरयू में जल समाधि और हनुमान जी के विरह प्रसंग का वर्णन किया, तो श्रोताओं की आंखें छलक उठीं।

जब श्रीराम ने कहा  “हनुमान, अब तुम गढ़ी पर बैठो और मेरा नाम जीवित रखो,”  उस क्षण पूरा सभागार मौन, श्रद्धामय और आंसुओं से भीगा हुआ था।

चार दिनों तक चले इस “राम के पथ” की यात्रा ने श्रोताओं के हृदयों में प्रभु श्रीराम के आदर्शों, धैर्य और करुणा का अमिट संस्कार छोड़ दिया।

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