कर्मों की कुशलता ही योग है कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स

 *कर्मों की कुशलता  ही योग है कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स 




सुनील कुमार मिश्रा दैनिक शुभ भास्कर            आधुनिक जीवनशैली या स्वास्थ्य संबंधी आदतें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रही हैं। आधुनिक जीवनशैली के कारण मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम लगातार  बढ़ रहे हैं। आज, बहुत से लोग अस्वस्थ जीवनशैली अपनाते हैं और गंभीर बीमारियों, विकलांगताओं और यहाँ तक कि मृत्यु का सामना करते हैं। अव्यवस्थित जीवनशैली से हृदय संबंधी रोग, जोड़ों और हड्डियों की समस्याएँ, मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी कई चयापचय संबंधी बीमारियाँ भी हो रहीं हैं।

        आधुनिक जीवन शैली अपनाने के कारण आज का मानव न चाहते हुए भी दबाव एवं तनाव, अविश्राम, अराजकता, रोग ग्रस्‍त, अनिद्रा, निराशा, विफलता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्‍या तथा अनेकानेक कष्‍टपूर्ण परिस्थितियों में जीवन निर्वाह करने के लिए बाध्‍य हो गया है। परिणामस्‍वरूप अनेकानेक शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक असंतुलन, चिंताएं, उदासी, सूनापन एवं दुर्भावनात्‍मक विचार उसे चारों ओर से घेर लेते हैं। इन परिस्थितियों का दृढ़ता के साथ सामना करने के लिए हमारी भारतीय पौराणिक योग पद्धति सहायता कर सकती हैं।

 योग साधना को यदि अपने जीवन का अभिन्‍न अंग बना दि‍या जाए तो यह मानव की खोई हुई राजसत्ता की पुनर्प्राप्ति का आश्‍वासन देता है एवं पुन: अनन्‍त सत्‍य के साथ जीवन जीने की कला सिखाता है। योग स्‍वयं जीवन का संपूर्ण सद्विज्ञान है। योग हमारे सभी शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्‍मक कष्‍टों एवं रोगों से मुक्ति दिलाता है। यह परिपूर्णता एवं अखण्‍ड आनंद के लिए वचनबद्ध है।   

    भगवान श्री कृष्‍ण श्रीमद्भागवत गीता में स्‍वयं योग की परिभाषा द्वितीय अध्‍याय के पचासवें श्‍लोक में देते हैं- *‘’योग: कर्मसु कौशलम्’’* अर्थात् कर्मों की कुशलता का नाम योग है।


       महर्षि पतञ्जलिकृत योग-दर्शन में व्‍याख्‍या की गई है।

*‘’योगश्चित्र वृत्ति निरोध:* अर्थात चित्रवृत्तियों का नियंत्रण ही योग है। योग साधक अपने स्‍वरूप में स्थित हो जाता है योग अनुशासन का दूसरा नाम है।

      म‍हर्षि पतञ्जलि का अष्‍टांग योग भौतिक उन्‍नति के साथ आध्‍यात्मिक विकास के लिए मन पर नियंत्रण की प्रेरणा देता है यह केवल हिमालय पर रहने वाले साधु-संतों, सन्‍यासियों के लिए ही नहीं, अपितु सभी गृह‍स्‍थि‍यों के लिए भी एक सन्मार्ग है।भारतीय योग को अनेक महान हस्तियों द्वारा अलंकृत किया गया। इनमें क्रियायोग के आदिगुरु श्यामाचरण लाहिड़ी,तिरूमलाई कृष्णमाचारी, स्वामी शिवानंद सरस्वती, श्रीयोगेन्द्र, के पट्टाभिजायस, बी.के आयंगर,स्वामी सत्यानंद सरस्वती,स्वामी निरंजनानंद सरस्वती जिन्होंने सर्वांगीण योग चेतना के माध्यम से न सिर्फ रोगी मनुष्य के कायाकल्प का प्रयास किया बल्कि प्राचीन प्रबुद्धता की व्याख्या करते हुए हर प्रकार के भ्रामक विचारों और व्यवहारों के विरूद्ध संघर्षरत समाज की सेवा में अपनी नवप्राप्त ऊर्जा लगाकर एक आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध व्यक्तित्व का सृजन किया। स्वामी शिवानंद वर्तमान युग के प्रथम मनीषी हुए जिन्होंने यह भलीभांति समझा कि आधुनिक समाज की आवश्यकता वेदांत जैसे उच्च शास्त्रीय सिद्धांत नहीं बल्कि सरल, सुलभ एवं व्यवहारिक योग विद्या है। योग के माध्यम से न केवल मनुष्य की शारीरिक मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक जरूरतें पूरी हो सकती हैं बल्कि मानव व्यक्तित्व का पूर्ण रूपान्तरण किया जा सकता है

          योग के मुख्‍य आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्‍याहार, धारणा, ध्‍यान एवं समाधि।

         पांच यम हैं – अहिंसा, सत्‍य, अस्‍तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।

         पांच नियम हैं- शौच, संतोष, तप, स्‍वाध्‍याय एवं ईश्‍वर प्राणिधान।

      यम और नियम के पश्‍चात् अष्‍टांग योग का तृतीय अंग है- आसन। *आसन  स्थिरसुखमासनम् ।*

         निश्‍चल सुखपूर्वक बैठने का नाम आसन है। साधक अपनी योग्‍यता के अनुसार जिस रीति से बिना हिले-डुले स्थिर-भाव से सुखपूर्वक बिना किसी पीड़ा के बहुत समय तक बैठ सके वही आसन उसके लिए उपयुक्‍त है। इसके अतिरिक्‍त जिस पर बैठकर साधन कि‍या जाता है, उसका नाम भी आसन है। बैठते समय सिर, गला एवं रीढ़ की हड्डी ये तीनों शरीर के भाग सीधे और स्थिर हों।

*आसन* – सिद्धि हो जाने पर शरीर पर सर्दी, गर्मी आदि द्वन्दों का प्रभाव नहीं पड़ता, शरीर में उन सबको बिना किसी प्रकार की पीड़ा के सहन करने की शक्ति आ जाती है। वे द्वन्द चित्त को चंचल कर साधना में विघ्‍न नहीं डाल सकते।

       आसन वह शारीरिक मुद्रा है जिसमें शरीर की स्थिरता बढ़ती है, मन को सुख-शांति प्राप्‍त होती है और आसन की सिद्धि द्वारा ना‍ड़ियों की शुद्धि, आरोग्‍य की वृद्धि, शरीर की स्फूर्ति एवं अध्‍यात्‍म में उन्‍नति होती है।

          पंच तत्‍वों - आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्‍वी से निर्मित शरीर आसनों का अभ्‍यास करने से सदैव स्‍वस्‍थ रहता है। आंतरिक शक्तियां जागृत होती हैं। सभी चक्र खुल जाते हैं। मन में एकाग्रता स्‍थापित होती है। शक्तिवर्धन के कारण साधक की कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है। जीवन के चहुमुंखी विकास एवं प्रत्‍येक कार्य में सफलता के लिए आसनों का अभ्‍यास अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका नि‍भाता है।

         जीवन में कई बार प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण अनेक समस्‍याएं उत्‍पन्‍न होती हैं। उनका सामना करने की शक्ति साधक को प्राप्‍त होती है।

      आज मनुष्‍य के पास सभी कार्यों के लिए पर्याप्‍त समय है और यदि समय नहीं है तो अपने लिए। ऐसी व्‍यस्‍तता किस काम की जि‍ससे उच्‍च तनाव की स्थि‍ति उत्‍पन्‍न हो एवं परिणामत: भयंकर रोगों को आमंत्रित किया जाता है। यदि हम अपने लिए प्रात: कालीन ब्रह्म बेला में अपनी शारीरिक क्षमतानुसार आधे से एक घंटे का समय अपने शरीर की सेवा हेतु निकालें तो बहुत लाभ होंगे। शरीर साधना का सर्वश्रेष्‍ठ साधन है। किसी ने ठीक ही कहा है- जान है तो जहां है। गोस्‍वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में वर्णन किया है- पहला सुख निरोग काया।

       योगासनों के नियमित अभ्‍यास से स्‍वास्‍थ्‍य स्‍तर में निरंतर उन्‍नति होगी और शरीर को रोगग्रस्‍त होने की आवश्‍यकता ही नहीं पड़ेगी। यह समय योगासनों के लिए समर्पित करना चाहिए। सभी आयु के पुरुष, महिलाएं एवं बच्‍चे प्रसन्‍नतापूर्वक  कर सकते हैं। केवल एक दृढ़ संकल्‍प की आवश्‍यकता है। एक बार योगाभ्‍यास की अच्‍छी आदत पड़ जाए, फिर संसार के सभी काम पीछे छूट जाएंगे, लेकिन योगाभ्‍यास नहीं छूटेगा।

     कुछ सरल आसनों के लाभ इस प्रकार हैं-

*पद्मासन* – अतिरिक्‍त वसा समाप्‍त, शरीर का वजन संतुलित, ज्ञान मुद्रा में ईश्‍वरीय ध्‍यान, जंघाओं में लचक, आलस्‍य और कब्‍ज़ से मुक्ति, पाचन-शक्ति सुदृढ़

*योग मुद्रा* – मोटापा दूर होता है, पेट के समस्‍त विकारों से मुक्ति, मेरुदंड सुदृढ़

*तुला आसन* – शरीर में हल्‍केपन का अनुभव, शरीर लचकदार, संपूर्ण शरीर संतुलित

*अर्द्ध चन्‍द्रासन* – पाचनतंत्र सुचारू रूपेण कार्यरत, पेट के विकार दूर, मेरुदंड में लचीलापन, कमर दर्द से मुक्ति

*त्रिकोण आसन* – पाचन तंत्र सुदृढ़, यकृत  सद्प्रभावित

*सूर्य नमस्‍कार* – 12 विभिन्‍न मुद्राओं के अनेकानेक लाभ होते हैं। शरीर का प्रत्‍येक बाह्य एवं आतंरिक अंग-प्रत्‍यंग सद्प्रभावित, मेरुदंड सुदृढ़, कमर लचकदार, पाचन तंत्र एवं नाड़ी संस्‍थान सशक्‍त, निम्‍न रक्‍तचाप से मुक्ति।

*शवासन* – पूर्ण विश्राम की स्थिति, तनाव मुक्ति, मन शांत, आनंद का अनुभव, थकावट दूर, उच्‍च रक्‍तचाप से मुक्ति।

*ताड़ासन* – आलस्‍य से मुक्ति, शरीर में स्‍फूर्ति, बच्‍चों की ऊंचाई बढ़ाने में सहायक, नाभि का अपने स्‍थान पर रहना, रक्‍त संचरण सुचारू, कमर एवं पीठ दर्द से मुक्ति, मेरुदंड, घुटनों, एड़ियों, नितंबों, पेट, कंधों, हाथों का सशक्‍त होना।

*नौकासन*- मेरूदण्‍ड, कंधों, पीठ, हाथ पैरों में लचक, स्‍फूर्तिदायक, मोटापे से मुक्‍ति।

*कमर चक्र आसन* - कमर में लचक, मोटापे से मुक्‍ति, हाथ पैरों में स्‍फूर्ति।

*जानुशिरासन* - गुप्‍तांगों के पास रक्‍त भ्रमण, टांगों के दर्द दूर, जोड़ों के दर्द में राहत।

*पश्‍चिमोत्तानासन* -  हाथों और टांगों में शक्‍ति, मेरूदण्‍ड लचीला, कंधे मजबूत, पाचन तंत्र सशक्‍त, अच्‍छी भूख का अनुभव, मोटापे से मुक्‍ति, शरीर लचकदार।

*कोण आसन* - ग्रीवा सृजन (सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस) में लाभदायक, कमर में लचक, हाथ पैर, कंधे  सशक्‍त, कब्‍ज से मुक्‍ति।

*गौमुख-आसन* - कंधे और घुटने सशक्‍त, स्‍नायुमण्‍डल सुदृढ़़, मानसिक संतुलन, मेरूदण्‍ड सुदृढ़।

*वज्रासन*  - सब आसनों के लिए पेट खाली होना चाहिए। लेकिन इस आसन को भोजन करने के पश्‍चात करने से भी बहुत लाभ होता है। पाचन तंत्र सुदृढ़ मेरूदण्‍ड सीधी, कमर एवं कंधों के दर्द दूर, मानसिक संतुलन, ईश्‍वर ध्‍यान में मन ।  

*ऊष्‍ट आसन* - विचार प्रक्रिया में स्‍थिरता, मन शांत, सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस में लाभकारी, थायराइड स्तर  का नियंत्रण, छाती की मांसपेशियां सशक्‍त, मेरुदण्‍ड  में लचीलापन, अतिरिक्‍त वसा दूर पाचन तंत्र सद्प्रभावित, फेफड़ों की क्रियाशीलता में बढोतरी।  

*सुप्‍त वज्रावसन*- घुटनों,कंधों एवं कमर में दर्द नहीं। नाभि अपने स्‍थान पर, गुदों की क्रियाशीलता में बढ़ोतरी, मानसिक संतुलन, मोटापे से मुक्‍ति। 

*शिथिल आसन* - विश्राम, गहरी निद्रा, चिन्‍तारहित मन तनाव से मुक्‍ति।

*सर्प आसन* - मोटापे को दूर करता है, पाचन तंत्र सुदृढ़ अच्‍छी भूख का अनुभव, शरीर लचकदार।

*भुजंग आसन* - गर्दन और मेरूदण्‍ड सुदृढ़ एवं लचकदार, गुर्दों, यकृत गर्भाशय, पेट,फेफडों, एवं  थायराइड के कार्यों में लाभदायक, पीठ के दर्द दूर, शरीर में लचक, गला स्‍वच्‍छ सर्वाइकल स्पॉन्डिलिसिस  में लाभदायक।

*शलभासन* - मोटापे से मुक्‍ति, उच्‍च रक्‍तचाप एवं हृदय रोग से बचाव, मेरूदण्‍ड सुदृढ़, स्‍नायुमंडल सशक्‍त, फेफड़ों की क्रियाशीलता में वृद्धि।

*धनुरासन* - गुर्दों, पीठ एवं नितंबों को सशक्‍त बनाता है। चयापचय  एवं प्राण शक्‍ति  की वृद्धि,मेरूदण्‍ड सुदृढ़ एवं लचकदार, फेफड़े हृदय गुर्दे, यकृत, आंतें, प्‍लीहा और पेट सभी लाभान्‍वित, मुखमंडल पर तेज, पाचनतंत्र सक्रिय, अतिरिक्‍त वसा से मुक्‍ति।

*हल आसन* - नाड़ी संस्‍थान सशक्‍त, मेरुदण्‍ड लचकदार,  ग्रंथि लाभान्‍वित, मोटापे में  कमी, रक्‍त संचरण सुचारू।

*उप आसन*- पाचन तंत्र सुदृढ़ मोटापे से मुक्‍ति हाथ-पैर सशक्‍त, नाभि अपने स्‍थान पर,स्‍नायु तंत्र सशक्‍त।

*मकर आसन* - गुर्दों, यकृत एवं आंतों को सशक्‍त बनाता है, अपच एवं कब्‍ज दूर, टांगों और पीठ के कड़ेपन  को दूर करता है और मेरूदण्‍ड की लचक में वृद्धि करता है, पीठ को आराम, घुटने, नितंब एवं मेरूदण्‍ड सशक्‍त,स्लिप डिस्क में लाभदायक, पेट के समस्‍त रोग दूर, मोटापे में कमी, उच्‍च रक्‍तचाप एवं हदय रोग से मुक्‍ति, नाड़ी संस्‍थान प्रभावित।

*उदर-पवन मुक्‍तासन* – हृदय एवं फेफड़ें सशक्‍त, गैस और अम्‍लता से मुक्ति, पेट के समस्‍त  रोग दूर, रक्‍त संचरण, गर्दन में लचक।

*सर्वांग आसन* – थाइराइड और पिट्यूटरी ग्रंथि  की क्रियाशीलता में वृद्धि, थकावट दूर, उदासी से मुक्ति, गर्दन, नेत्रों, कानों, फेफड़ों के विकार में लाभकारी, गर्दन एवं सिर को रक्‍त आपूर्ति, मस्तिक क्रियाशीलता में वृद्धि, मेरुदंड लचकदार।


*अष्‍टांग योग के शेष चार अंग इस प्रकार हैं-*


      *धारणा* - धारणा का अर्थ है ऐसे विश्‍वासों को धारण करना जिनके द्वारा मनोवांछित स्थिति को प्राप्‍त किया जा सके । ये स्थितियां हैं प्रसन्‍नता, निरोगिता, सुख, शांति, संतोष, तृप्ति, आनंद जिन्‍हें आत्मिक संपदाओं से संबोधित किया जाता है। मानव अपने भाग्‍य का स्‍वयं निर्माता है।

*प्रत्‍याहार* - अपने विषयों के संबंध रहित होने पर, इन्द्रियों का चित्त के स्‍वरूप में तदाकार सा होना प्रत्‍याहार है। इंद्रियों की बाह्यवृत्ति को समेटकर मन में विलीन होने का नाम प्रत्‍याहार है। इससे इंद्रियों पर नियंत्रण होता है।

*ध्‍यान* – मन की चंचलता समाप्‍त कर एकाग्रता में प्रवेश कर वर्तमान में जीवनकला का नाम ध्‍यान है। ध्‍यान से सभी कार्य सफल होते हैं। जीवन की सार्थकता तभी है जब हम उसे आनंदमय, शान्तिमय, संगीतमय, रसमय और ज्‍योतिर्मय बनाएं। ध्‍यान द्वारा समस्‍त शारीरिक रोग एवं मानसिक तनाव दूर होते हैं। जीवन वीणा से मधुरता एवं समसरता के स्‍वर गूंजते है। सभी प्रकार के आवेग एवं आवेश शान्‍त हो जाते हैं। उत्तेजनाएं समाप्‍त हो जाती है। ध्‍यान की समाधि के द्वारा ही साधक आध्‍यात्मिक उत्‍कृष्‍ट शिखर पर पहुंचता है। साधक का ईमानदार, निष्‍ठावान एवं लग्‍नशील होना परमावश्यक है।

*समाधि* – जब ध्‍यान में केवल ध्‍येयमात्र की ही प्रतीति हो और चित्त का निज स्‍वरूप शून्‍य सा हो जाता है, तब वही ध्‍यान ही समाधि हो जाता है। सत्‍य, चैतन्‍यता एवं आनंद का अनुभव करने के लिए ईश्‍वरीय कृपा-पात्र बनने के लिए हमें परमपिता परमेश्‍वर का कोटि-कोटि धन्‍यवाद करना चाहिए।

        योग को अब वैज्ञानिक रूप से समझने की दिशा में काम किया जा रहा है, और शोधकर्ता योग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के ठोस सबूत जुटाने में लगे हैं।

कई वैज्ञानिक अध्ययनों में योग के इन लाभों की पुष्टि की गई है, तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने, नींद में सुधार करने, और शरीर के लचीलेपन और शक्ति को बढ़ाने पर सकारात्मक प्रभाव शामिल हैं। *(विनायक फीचर्स)*

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