मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई की 33 वी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि - राजस्थान के मांड लोकगीतों की विरासत के संरक्षण का आव्हान

 मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई की 33 वी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि -  राजस्थान के मांड लोकगीतों की विरासत के संरक्षण का आव्हान


     बीकानेर 3 नवम्बर। मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई की 33 वी पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जयनारायण व्यास कॉलोनी में "राजस्थान के मांड लोकगीतों पर चर्चा का आयोजन किया गया । चर्चा में वक्ताओं ने स्व अल्लाह जिलाई बाई की विरासत और स्मृतियों को चिरस्थाई बनाने और मांड गीतों के समुचित संरक्षण का आव्हान किया । 

     अल्लाह जिलाई बाई मांड गायिकी प्रशिक्षण संस्थान के प्रबंध निदेशक डॉ0 अजीज अहमद सुलेमानी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन कार्यक्रम में पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई को खिराजे अकीदत पेश की गई । डॉ सुलेमानी ने बताया कि जाईमां अल्लाह जिलाई के मन में राजस्थान की धरती, संस्कृति, लोकसंगीत के प्रति गहरा अनुराग था। उन्होंने कहा कि अल्लाह जिलाई बाई ने मांड गायकी को जन जन में लोकप्रिय बनाया । 

     इस अवसर पर आयोजित राजस्थान के मांड लोकगीतों के संरक्षण" विषयक चर्चा में कवि कथाकार संस्कृतिकर्मी राजेंद्र जोशी ने कहा कि अल्लाह जिलाई बाई और मांड गायिकी एक दूसरे के पर्याय है। उन्होंने कहा कि जिलाई बाई के लोकप्रिय गीत "केसरिया बालम" को बीकानेर में आयोजित होने वाले पर्वों, पर्यटन कार्यक्रमों, समारोहों में निरंतर प्रसारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीकानेर में मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई के नाम से कलाकार कालोनी का निर्माण होना चाहिए।

    कार्यक्रम में गीतकार कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने स्व अल्लाह जिलाई बाई के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वे लोक संगीत के प्रति समर्पित कलाकार थी । उन्होंने कहा कि स्व अल्लाह जिलाई बाई ने अपनी संगीत साधना से राजस्थानी लोकगीतों में नए रंग भरे ।

    कार्यक्रम में मुख्य वक्ता वरिष्ठ लेखक समीक्षक अशफाक कादरी ने " मांड कोकिला पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई के लोकगीत" पर पत्रवाचन किया । उन्होंने कहा कि पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई ने अपने जीवनकाल में राजदरबार, महफिलों, आकाशवाणी, दूरदर्शन, ग्रामोफोन रिकॉर्ड, कैसेट, राष्ट्रीय मंचों पर कार्यक्रम प्रस्तुत किए । उन्होंने कहा कि अल्लाह जिलाई बाई ने केसरिया बालम, मूमल, कलाली, बाईसा रा बीरा, पणिहारी, छप्पर पुराणों,झालो सुपनो, कुरजां, गोरबंद, घूमर, पंखियों, बायरियो सहित सैंकड़ों गीत गाए है जिन पर व्यापक शोध की आवश्यकता है।

     कार्यक्रम में मुंबई से फिल्मकार मंजूर अली चंदवानी ने कहा कि पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई ने अपना सम्पूर्ण जीवन मांड और राजस्थानी लोक संगीत को समर्पित किया। उनकी शुद्ध, सात्विक एवं कलापूर्ण प्रस्तुति में विश्व को मांड से परिचित कराया। संगीत जगत में माड और मरु प्रदेश के लोकगायकों को जो मान सम्मान आज दुनिया में प्राप्त है उसमें अल्लाह जिलाई बाई का समर्पण और योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कार्यक्रम में अजमेर से संगीतज्ञ डॉ नासिर मोहम्मद मदनी ने नई प्रतिभाओं के लिए समारोह के तहत मांड गायन प्रतियोगिता पुनः प्रारंभ करने का सुझाव दिया।

     लोकगायिका श्रीमती राजकुमारी मारू,डॉ बाघ सिंह, श्रीमती रजिया अजीज, डॉ एजाज अज़ीज सुलेमानी,अयाज़ अजीज सुलेमानी , माही अयाज़ सहित परिवार के सदस्यों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की ।

       पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई की 33 वी पुण्यतिथि पर बड़े कब्रिस्तान में अल्लाह जिलाई बाई के मजार पर कुरआनखानी हुई और पुष्पांजलि अर्पित की गई ।

                              

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