एकता ज्योति वधवा "रंजना" एकता का बस एक अणु, बनना चाहिए।
एकता
ज्योति वधवा "रंजना"
एकता का बस एक अणु,
बनना चाहिए।
हम शान्ति चाहने वाले हैं
कुछ अशांति के सूत्रधार रहे।
कहने को मुल्क सुखी बसे
ह्रदय दुश्मनी अंगार पले।
अब तो एकता का बस एक अणु बने।
कल - मां का दूध पिया
आज - कल - मां को बाज़ार
उतार रहे
जात-पात के यन्त्र से
केवल बस केवल इंसान मरे।
काफ़ी है दो गज ज़मीन ही
सारी ज़मीन परमाणु से क्यूं जले ?
अब तो बस एकता का एक अणु बने।
चाहते हैं हुकूमत दिलों , पर
कुर्सी हथियानें अथाह गिरे
युगों से रहा यह मंजर
अब नेत्रों को कुछ परिवर्तन मिले।
एकता का बस एक अणु बने।
बात - बात , बस , बात में
मसले दबे
धर्मो की भड़कती आग से
कुछ सुकून की चिंगारी जले
सीना धरती का फिर ना फटे
अब तो बस एकता का एक अणु बने
नदी खून की क्यों बहे ?
नफरतों के बीज से
मजहबों में बारूद क्यूं बने
निहत्थों पर बरसाकर ,धर्म
लहुलुहान खड़े
अब तो बस एकता का एक अणु बनें ।
हासिल क्या होगा , बनाकर हवा जहरीली ?
भुगतेंगी पीढ़ियां, हो मेरी या तुम्हारी
अपंग होंगें मज़हब सारे
जीतेंगे क्या धर्म लावारिस !
दर -दर भटकेंगी जातियां
ना रहेंगे जब इनके मालिक
रोयेगीं कुर्बानियां छाती पर
स्वतन्त्रता की
ना राजा ना रंक
जब पृथ्वी होगी मानव रहित
गीता, कुरान, बाइबल के जब अर्थ एक से
तो क्यूं समझने के मायने बदले
अब तो बस एकता का एक अणु बने।
बीकानेर
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें