सुनेहरे सपने, कड़वी हकीकत चौमू के हाथनोदा में बनी आंवला मंडी—25 साल बाद भी खंडहर, किसानों का टूटा भरोसा

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सुनेहरे सपने, कड़वी हकीकत

चौमू के हाथनोदा में बनी आंवला मंडी—25 साल बाद भी खंडहर, किसानों का टूटा भरोसा 




चौमू. किसानों की आय बढ़ाने और इलाके को आंवले के प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से हाथनोदा गांव में करीब 25 वर्ष पहले कृषि उपज मंडी की स्वीकृति दी गई थी। करोड़ों रुपये खर्च हुए, 65 बीघा में विशाल ढांचा खड़ा हुआ, प्रोसेसिंग यूनिट तक बनाई गई—पर न बिजली आई, न मशीनें लगीं और न ही मंडी शुरू हो सकी। नतीजा यह कि सपनों की यह परियोजना आज पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो गई है।



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आलीसर को कभी मिली थी अंतरराष्ट्रीय पहचान


आलीसर क्षेत्र एक समय देश में आंवला उत्पादन का बड़ा केंद्र माना जाता था। यहां की उपज को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहचान मिली। किसानों को उम्मीद थी कि मंडी शुरू होते ही प्रोसेसिंग यूनिट, मूल्यवर्धित उत्पाद और बड़े स्तर का व्यापार खड़ा होगा, जिससे क्षेत्र की आर्थिक तस्वीर बदल जाती। लेकिन अधूरी योजना ने किसानों का विश्वास तोड़ दिया।



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प्रोसेसिंग यूनिट बनी, पर कभी चली नहीं


मंडी परिसर में बना विशाल ढांचा वर्षों से बंद पड़ा है। प्रोसेसिंग यूनिट का निर्माण तो हुआ, लेकिन बिजली कनेक्शन न मिलने से यूनिट चालू ही नहीं हो सकी। मशीनें नहीं लगीं और भवन जर्जर होने लगा। किसानों का कहना है कि मंडी का पूरा परिसर धीरे–धीरे खंडहर में बदल गया है।



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पांच करोड़ खर्च, पर उद्देश्य अधूरा


योजना के तहत लगभग पांच करोड़ रुपये खर्च कर 65 बीघा में मंडी परिसर बनाया गया था। लक्ष्य था—

• 150–160 आंवला प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित करना

• किसानों के लिए स्थायी व्यापारिक केंद्र विकसित करना

• क्षेत्र को आंवला कारोबार का प्रमुख हब बनाना

लेकिन सुविधाओं की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के चलते यह महत्वाकांक्षी परियोजना अधूरी रह गई।



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किसानों ने लगाए थे आंवले के बगीचे, पर बाज़ार नहीं मिला


ग्राम दम्बा का बास, डागरियों की ढाणी सहित आसपास के गावों के किसानों—

रामस्वरूप डागर, सुवालाल डागर, कल्याण सिंह, राम सिंह, लालचंद शर्मा, नरेंद्र कुमार, नानूराम बुनकर, करण सिंह शेखावत सहित 10–15 किसानों—ने बड़े स्तर पर आंवला बगीचे लगाए थे।

उनका कहना है कि अधिकारियों ने प्रशिक्षण देकर आश्वासन दिया था कि मंडी शुरू होने पर क्षेत्र में आंवला खरीद–फरोख्त और प्रोसेसिंग की व्यवस्था विकसित की जाएगी।


लेकिन मंडी शुरू न होने से किसानों को मजबूरी में आंवला सस्ते दामों में बाहर भेजना पड़ा। कई किसान तो अब आधे पेड़ काटकर दूसरी फसल लगाने की तैयारी कर चुके हैं।



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किसानों की जुबानी


रामस्वरूप डागर, एवं कल्याण सिंह किसान

“2–3 बीघा में आंवला लगाया था, लेकिन मंडी नहीं चली तो घाटा उठाना पड़ा। लोग अब आंवला खेती छोड़ रहे हैं। सरकार ध्यान दे तो खेती फिर से बढ़ सकती है।”


भगवान सहाय खातोदिया, किसान आलीसर

“यदि आंवला मंडी समय पर शुरू हो जाती तो इलाके का आर्थिक स्तर बदल सकता था। आज न मंडी है, न प्रोसेसिंग—सब बंद पड़ा है।”



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उद्यान विभाग का कहना


हरलाल सिंह बिजारणिया, उप निदेशक, उद्यान विभाग, जयपुर

“आंवला प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए हाथनोदा की मंडी महत्वपूर्ण थी। बिजली और अन्य व्यवस्थाएं समय पर नहीं मिल सकीं। सरकार चाहे तो मंडी आज भी संचालित हो सकती है।”



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ग्रामीणों की मांग.


ग्रामीणों ने सरकार से मांग की—

• बंद पड़ी मंडी को पुनः शुरू किया जाए

• प्रोसेसिंग यूनिट संचालित की जाए

• बिजली, मशीनरी व स्टाफ की तुरंत व्यवस्था हो

• आंवला उत्पादों के लिए स्थानीय बाजार विकसित किया जाए


ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार थोड़ी भी गंभीरता दिखाए तो यह बंद पड़ी मंडी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है।



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