राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह के तहत मीडिया कार्यशाला आयोजित मानव व वन्यजीव दोनों के दृष्टिकोण का समावेशन जरूरी :आइएफएस सुले
राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह के तहत मीडिया कार्यशाला आयोजित
मानव व वन्यजीव दोनों के दृष्टिकोण का समावेशन जरूरी :आइएफएस सुले
वन्यजीव संरक्षण की दिशा में उत्तरदायी रिपोर्टिंग अहम :आइएफएस सुले
प्रभावशाली रिपोर्टिंग के लिए संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक :आइएफएस सुले
राजसमंद / पुष्पा सोनी
राजसमंद। राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह (2 से 8 अक्टूबर) के तहत सोमवार को कलेक्ट्रेट स्थित डीओआईटी वीसी कक्ष में मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला का नेतृत्व उप वन संरक्षक कस्तूरी प्रशांत सुले ने किया, वहीं सहायक वन संरक्षक श्रीकिशन चौधरी ने प्रस्तुति देते हुए मीडिया रिपोर्टिंग के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। कार्यशाला के पश्चात वन विभाग की ओर से वन्यजीव रेस्क्यू उपकरणों जैसे ट्रैंक्विलाइज़र गन, पिंजरे, स्नेक कैचिंग स्टिक तथा ट्रैंक्विलाइज़ेशन के दौरान उपयोग में आने वाली दवाइयों आदि का विस्तृत प्रेजेंटेशन दिया गया।
इस अवसर पर “‘सनसनी से समाधान तक: मानव–वन्यजीव सहअस्तित्व में मीडिया की भूमिका’ विषय पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया। चर्चा के दौरान बताया गया कि मीडिया जन धारणा, नीति निर्माण और जमीनी स्तर पर होने वाले कार्यों को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिम्मेदार रिपोर्टिंग जहां जनजागरूकता को संरक्षण में बदल सकती है, वहीं सनसनीखेज प्रस्तुतिकरण से नुकसान भी हो सकता है।
उप वन संरक्षक कस्तूरी प्रशांत सुले ने कहा कि प्रभावशाली मानव–वन्यजीव रिपोर्टिंग के लिए संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें संघर्ष की पृष्ठभूमि स्पष्ट रूप से बताई जाए और मानव व वन्यजीव दोनों के दृष्टिकोण प्रस्तुत किए जाएं। कार्यशाला में राष्ट्रीय वन्यजीव सप्ताह के उद्देश्य वन्यजीवों के महत्व के प्रति जन-जागरूकता फैलाना, नागरिकों की सहभागिता बढ़ाना, और मानव-प्रकृति के संबंध को सशक्त बनाना पर भी चर्चा हुई।
मुख्य बिंदुओं में आवास संरक्षण, पारिस्थितिक गलियारों का रखरखाव, वैज्ञानिक तकनीकों (जैसे जीपीएस ट्रैकिंग, कैमरा ट्रैप, अर्ली वार्निंग सिस्टम) का उपयोग, समुदाय आधारित संरक्षण एवं सह-विकास को बढ़ावा देना शामिल रहा।
एसीएफ चौधरी ने बताया कि भारत को विश्व के 17 मेगाडाइवर्स देशों में स्थान प्राप्त है, जहाँ विश्व की लगभग 8 प्रतिशत जैव विविधता पाई जाती है। हिमालय से लेकर थार मरुस्थल और सुंदरबन के मैंग्रोव तक, प्रत्येक क्षेत्र अद्वितीय प्रजातियों का घर है। राजस्थान के प्रमुख संरक्षित क्षेत्र रणथंभौर नेशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिजर्व, डेजर्ट नेशनल पार्क, केवलादेव नेशनल पार्क, कुंभलगढ़ एवं टोडगढ़–रावली अभयारण्य राज्य की समृद्ध जैव विविधता और सफल संरक्षण प्रयासों के प्रतीक हैं।
कार्यशाला के अंत में मीडिया की सकारात्मक भूमिका पर बल दिया गया, जैसे- जनसहभागिता बढ़ाना, वैज्ञानिक अनुसंधान को उजागर करना, सहानुभूति को प्रोत्साहित करना और त्वरित बचाव एवं पुनर्वास प्रयासों का समन्वय करना। इस अवसर पर मीडिया प्रतिनिधियों, वन विभाग के अधिकारियों और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भाग लिया।


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