मेवाड़ का लोक नृत्य गवरीगादोली में आज से प्रारंभ

 मेवाड़ का लोक नृत्य गवरीगादोली में आज से  प्रारंभ 



दैनिक शुभ भास्कर जमनेश आमेटा राजस्थान उदयपुर मावली कस्बे के गादोली गांव में आज से शुरू  गवरी का आयोजन  गांव के सरपंच गणपत नाथ चौहान के द्वारा  गवरी नृत्य भील समुदाय का "गवरी" नृत्य कलाकारों ने कपड़े धारण कराए गए गांव के प्रबुद्ध लोग  सरपंच गणपत नाथ चौहान अनेक लोगों की उपस्थिति में ग्वारी नृत्य आयोजन हुआ दुनिया की प्राचीन पवर्तमालाओं में गिनी जानेवाली अरावली की गोद में बसे मेवाड़-वागड़ अंचल में भील समुदाय गवरी खेलते है, जिसे लोक संस्कृति के जानकार दुनिया के पुराने नृत्यों में से एक बताते हैं. इसमें नाच, गान और वादन तीनों ही रूप नजर आते हैं. गवरी के प्रमुख पात्रों में बूडिया ( भुड़िया, भूड़लिया, वयोवृद्ध या कलजयी), लज्जा और धज्जा राई (इच्छा और क्रिया रूप शक्तियां) शामिल हैं. ये पात्र अपने शरीर के कंधे, सीना, घुटने, पांव को भी आग के ऊपर से निकालता है. गवरी को सिर्फ नृत्याभिनय के तौर पर नहीं देखा जाता है, बल्कि यह तपस्या भी है. इसमें कलाकार 40 दिन तक नहाते नहीं है. दिन में एक बार भोजन और हरी सब्जी, मांस-मदिरा के सेवन से भी दूर रहते हैं. कलाकार जमीन पर सोने जैसे नियमों का पालन करते हैं. 

मान्यता- पवित्रता की अग्निपरीक्षा है गवरी


लोक संस्कृति और इतिहास के जानकार  जब कलाकार अग्नि का करतब दिखाते हैं तो गवरी की आग उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाती है, जिन्होंने नियमों की पालना की हो. लेकिन नियमों की पालना नहीं होने पर आग उसे नुकसान पहुंचाती है. इस तरह गवरी के सदस्य इसे पवित्रता की अग्निपरीक्षा से जोड़ते हैं.


गवरी कलाकार के पीछे उसकी मां और पत्नी 40 दिन व्रतानुष्ठान करती हैं. दोपहर से संध्या तक मिट्टी के मांदल और कांसे की थाली की लयकारी पर घुंघरू घमकते हैं और गावणी अरथावणी के साथ खेल शुरू और समाप्त होता है. जब भी नया खेल आता है, परदे के पीछे आता है और फिर मंडल में नर्तन बिलोवन के साथ पर्दा हटा दिया जाता है. कुछ पात्र छाता लेकर उसकी आड़ बनाते हुए भी आते हैं, जैसे : बंजारा, हठिया, भियावड़, खड़लिया, कालूकीर.

ऐसे होता है गवरी का नृत्य

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