समरोपदेश प्रेरणादायक कृति
समरोपदेश प्रेरणादायक कृति
डॉ आचार्य धनंजय पाठक बहुमुखी प्रतिभा के काव्यकार हैं।लगभग दो दशकों की काव्य यात्रा में इन्होंने हिंदी पूजा विधि, बतीसा सेवापराध, काव्य सौरभ एवं सारस्वत जैसी सारगर्भित पुस्तकों का सृजन किया। चलो करें शृंगार धरा का, कहानी लोक, काव्यनगरी, इंद्रधनुष एवं गीतिका का पंचामृत आदि साझा संकलनो में इनकी रचनाओं ने प्रसिद्धि पाई है।साथ ही पलामू दोहा दर्पण , सूत्रबंध(नाटक) छंद छटा, गीतिका सुरभि एवं गीत मालिका इनकी प्रकाश्य कृतियां हैं।
उनकी सद्य प्रकाशित पुस्तक'समारोदेश' (प्रबंधकाव्य) गीता का सारगर्भित स्वरूप है। इसमें श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद को सरल,सुबोध एवं सारगर्भित स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक के उत्तरार्ध में विभिन्न रोचक उदाहरण के द्वारा सामाजिक समरसता की बात की गई है। इसकी सरसता, सहजता, भावाभिव्यक्ति एवं शिल्प सौंदर्य सराहनीय है।
'समरोपदेश' सात सर्गों में विभक्त है, जो कालचक्र के अनुरुप गतिमान प्रतीत होता है। भूत को वर्तमान से जोड़ते हुए भविष्य के लिए उज्ज्वल राह प्रशस्त करता है। अर्जुन को मोह-माया से बाहर मुक्त कराने हेतु श्रीकृष्ण कई उदाहरणों से युद्ध को अनिवार्य बताते हैं-
पानी सिर के नीचे जबतक
तब तक धैर्य सहायक है।
जब ऊपर हो पानी सिर से,
तब केवल धनु-सायक है।।
क्रांति बिना तो शांति जगत में,
अर्जुन! भ्रम है धोखा है।
बहता पानी बीच मार्ग में,
कभी रुका है देखा है।।
इन पंक्तियों में श्री कृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करते हुए युद्ध की अनिवार्यता को लक्षित किया है।
अंत में कवि ने समरोपदेश को वर्तमान सामाजिक परिवेश से जोड़ते हुए इसे अधिक रोचक एवं सारगर्भित बना दिया है।
अध्यातव्य है-
यहां नहीं अधिकारी होंगे,
हों सब कार्यों के वाहक।
आश्रित सब जनता पर होंगे,
जनता होगी अभिभावक।।
वस्तुत: 'समरोपदेश' डाॅ. आचार्य धनंजय पाठक की विशिष्ट प्रस्तुति है। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है यह पाठकों को संतुष्ट करने के साथ वर्तमान समाज के पथ प्रदर्शन में भी सहायक सिद्ध होगा ।
अंततः मेरी शुभकामनाएं कवि के साथ हैं -
लिखे समर उपदेश सम,
काव्य धनंजय आप।
जीवन का सब खोज हल,
लेकर नैतिक चाप।।
समीक्षक - डॉ रामप्रवेश पंडित
संयोजन - कवि संगम त्रिपाठी
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