आचार्य विजयराज जी म.सा. ने दिया त्याग का संदेश --

 आचार्य विजयराज जी म.सा. ने दिया त्याग का संदेश --


कैलाश चंद्र कौशिक


जयपुर! हाल ही स्थानीय नवकार भवन तिलक नगर जयपुर में

पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के पांचवें दिन प्रवचन मण्डपम में आयोजित विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए शांतक्रांति संघानायक आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने जीवन में त्याग के महत्व पर प्रकाश डाला।

आचार्य श्री ने उत्तराध्ययन सूत्र के 31वें अध्याय की छठी गाथा की व्याख्या करते हुए कहा कि चार कषायों, चार विक्षेपों और चार संज्ञाओं का त्याग करने वाला ही संसार के दुखों से मुक्त हो सकता है। त्याग ही वह एकमात्र मार्ग है, जिससे जीवन में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं।

जीवन की तुलना एक खाली गिलास से करते हुए उन्होंने समझाया कि जिस प्रकार गिलास का मूल्य उसमें भरे पदार्थ से तय होता है, उसी प्रकार जीवन का मूल्य भी उत्तम कर्मों से बढ़ता है। उन्होंने कहा कि केवल भावना से सिद्धि नहीं मिलती, इसके लिए साधना आवश्यक है। दान, शील, तप और भावना साधना के मूल अंग हैं।

आचार्य श्री ने दान को जीवन का वरदान बताते हुए कहा कि दान की शुरुआत छोटे-छोटे दानों से भी हो सकती है। सबसे पहला दान अन्नदान है। उन्होंने आपसी वैमनस्य को त्यागने का आह्वान करते हुए कहा कि समाज में प्रेम और शांति के लिए त्याग आवश्यक है।

प्रवचन के दौरान तपस्वी संत श्री विनोद मुनि जी म.सा. ने अंतगढ़दसाक सूत्र का वाचन किया। वहीं मुनिश्री दिव्य मुनि जी म.सा. ने जीवन में सकारात्मकता और धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला।

धर्मसभा में देशभर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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