जैन मंदिरों के कारण कभी जैन नगरी कहलाता था आमेर**

 *जैन मंदिरों के कारण कभी जैन नगरी कहलाता था आमेर**



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जयपुर बस में से पहले पुरानी राजधानी अमर को जैन नगरी दी कहा जाता था यहां पर बने अति प्राचीन जैन मंदिर इस बात के गवार रहे हैं कि इनमें कठोर साधना और तपस्या करने वाले जैन संतों के चरणों की पवित्र राज आमिर की धरती के कान-कान में फैली हुई है। धूंधड़ में पैदावार अच्छी होने से अमीर रियासत के लोग खुशहाल थे।।

हीरे जावरा कटाई के अलावा बनाई रंगाई छपाई का काम भी बहुत यहां होता था यहां की बनी हुई बंदूक और तलवार है दूसरे नगरों में बिकने हो जाया करती थी। संपूर्ण भारत में जैन मंदिरों का निर्माण करने वाले सेठ नानू की गोद ने विक्रम संवत 1664 में पांच कल्याण की प्रतिष्ठा करवाई थी वह महाराजा मानसिंह के साथ अफगान के युद्ध में भी गए थे। अखोर दरवाजे के पास कीर्ति स्तंभ की नसियां है दिगंबर जैन मंदिर सावला जी का प्राचीन नेमिनाथ जी मंदिर का मंदिर मूल प्रसंग कुंड आचार्य सरस्वती ग के पत्थर को पत्थर को की गाड़ी रहा है गाड़ी रहा है इस मंदिर में प्राचीन हस्तलिखित ग की सूची डॉक्टर कार्स यू डाक डॉक्टर कस्तूरी सॉन्ग कासलीवाल के संपादन में छप चुकी है अमर के शास्त्र व मंदिरों का संबंध श्री महावीर जी क्षेत्र से भी रहा है। 

श्री दिगंबर जैन मंदिर चंद्र प्रभु को बक्शी रामचंद्र छाबड़ा ने संवत 1861 में बत्तख सुखेंद्र कीर्ति के सानिध्य में पंचकल्याणक महोत्सव कराया था संवत 1567 में दिगंबर जैन सगी जी के मंदिर कालू संगी लुवड़िया ने बनाए थे किले के नजदीक पहाड़ पर नसियां बनी है कहते हैं कि संवत 1559 में कालू संगी लोहड़िया ने मंदिर बनवाया था दिगंबर जैन मंदिर बधी चंद जी को शाह दीवान रतन चंद्र ने बनवाया।

दिगंबर जैन मंदिर मुंशी जी को रियासत के मंत्री जयचंद छाबड़ा ने बनवाया दिगंबर जैन मंदिर नेमिनाथ जी दिल्ली मार्ग पर स्थित है मूल प्रतिमा भगवान चंद्र प्रभु जी की है दिगंबर जैन मंदिर संकट हरण पार्श्वनाथ जी का चिल्लाना आचार्य रत्नेश भूषण जी महाराज के सानिध्य में हुआ था विमल सागर जी महाराज की सानिध्य में भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित कर विराजमान की गई थी। 

जयपुर से दिल्ली की तरफ जाने वाले दिगंबर जैन साधुओं का विश्राम स्थल भी यही है आमेर के बाहर श्री दिगंबर जैन रसिया कीर्ति स्तंभ है जी के शासनकाल में भटटारक नरेंद्र कीर्ति जी ने अपने गुरु भटटारक देवेंद्र जी की चरण पादुका विराजमान की थी। नसियां में  भगवान विमल नाथ जी की श्वेत पोषण की पद्मासन प्रतिमा है संवत 1920 में यहां भट् टारक  देवेंद्र कीर्ति जी ने मेले का आयोजन किया था ।।।।।।*16वीं और 17वीं शताब्दी के जैन शिलालेखों में आमेर का नाम अमरावती भी बताया गया है*।।

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