सुविवि- हिंदी विभाग की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरु
सुविवि- हिंदी विभाग की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरु
उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 15 जनवरी। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के हिंदी विभाग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी लोक साहित्य एवं संस्कृति : चिंतन और चुनौतियां का शुभारंभ सोमवार को अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्वलन से हुआ | संगोष्ठी संयोजक एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ नीतू परिहार ने अतिथियों का स्वागत तथा विषय-प्रवर्तन करते हुए कहा कि लोक साहित्य जन-मन का साहित्य है, लोक संस्कृति समाज को आपस में जोड़ने का काम करती है। इस संगोष्ठी में 260 शोध-पत्र प्राप्त हुए हैं जिनपर विभिन्न सत्रों में चर्चा की जाएगी ।
मुख्य अतिथि पद्मश्री विद्या विंदु जी प्रसिद्ध लेखिका, लखनऊ ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक का अर्थ है - आलोक देना। लोक संस्कृति में लोकमंगल की भावना निहित है तथा लोककथाओं, लोकगीतों, लोकगाथाओं में सबके कल्याण की कामना की जाती है, अतः हमें इन्हें सहेजना चाहिए, ये हमारी प्राणवायु हैं । मुख्य वक्ता डॉ राजेश व्यास -कवि, संस्कृतिकर्मी, कला समीक्षक, जयपुर ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृति की खाद-पानी-बीज 'लोक' है । लोक हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है, लोक समष्टि की बात करता है। यदि हमें भाव बचाने हैं तो लोक बचाना होगा ।
विशिष्ट अतिथि लोककला मर्मज्ञ डॉ. महेंद्र भाणावत ने अपने वक्तव्य में कहा कि लोक साहित्य कंठासीन साहित्य है। राजस्थान बहुरंगी प्रदेश है और उतनी ही वैविध्यपूर्ण यहाँ की संस्कृति है। हमें इनके संरक्षण हेतु सोचबद्ध, समर्पित रूप से कार्य करना होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सुनीता मिश्रा, कुलपति, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में लोक साहित्य को जीवंत बताते हुए उड़िया लोक साहित्य से कुछ उद्धरण दिए । कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों को मोलेला की मिट्टी से बने स्मृति-चिह्न भेंट किए गए। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नवीन नंदवाना ने दिया | प्रथम तकनीकी सत्र 'लोककथा, लोकवार्ता,लोकोक्तियां एवं लोक अनुष्ठान: प्रादेशिक वैशिष्ट्य' की अध्यक्षता प्रो भारती सिंह ने की, जबकि वक्ता डॉ नीता त्रिवेदी एवं डॉ कैलाश गहलोत थे। इस सत्र में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्रों का वाचन हुआ ।
पुस्तकों का हुआ विमोचन
उद्घाटन सत्र में डॉ. नीतू परिहार द्वारा संपादित पुस्तक "लोक : साहित्य एवं संस्कृति" पुस्तक के विमोचन के साथ डॉ. निर्मला राव की पुस्तक "समकालीन कविता में राष्ट्रीयता" का विमोचन हुआ।
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