श्रीरामकथा : ज्ञान यज्ञ और श्रीराम के पथ पर” – सर्वसमाज की बड़ी बैठक संपन्न, कथा पोस्टर का लोकार्पण

 “श्रीरामकथा : ज्ञान यज्ञ और श्रीराम के पथ पर” – सर्वसमाज की बड़ी बैठक संपन्न, कथा पोस्टर का लोकार्पण



उदयपुर जनतंत्र की आवाज विवेक अग्रवाल। आलोक संस्थान स्थित श्रीराम मंदिर परिसर में आगामी “श्रीरामकथा – ज्ञान यज्ञ और श्रीराम के पथ पर” के आयोजन को लेकर सर्वसमाज की भव्य बैठक संपन्न हुई। यह आयोजन 12 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक उदयपुर में आयोजित होने जा रहा है, जो आलोक संस्थान एवं अखिल भारतीय नववर्ष समारोह समिति के संयुक्त तत्वावधान में आलोक संस्थान के व्यास सभागार में होगा।

बैठक में श्रीरामकथा के पोस्टर का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कमलेंद्र सिंह पंवार ने की। मुख्य अतिथि डॉ प्रदीप कुमावत थे।

कमलेंद्र सिंह पंवार ने  अपने संबोधन में कहा कि यह आयोजन सर्वसमाज की एकता और सनातन संस्कृति के भाव को सशक्त करेगा। उन्होंने कहा “सभी समाजों और संगठनों के सहयोग से यह आयोजन न केवल भव्य होगा, बल्कि युवाओं को भी श्रीराम के आदर्श जीवन से जोड़ने का माध्यम बनेगा।”

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि डॉ. प्रदीप कुमावत द्वारा तैयार की जा रही यह कथा यात्रा शोधपरक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह संभवतः देश में पहली बार है जब श्रीरामकथा को भौगोलिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक तीनों आयामों से प्रस्तुत किया जा रहा है।

बैठक में प्रमुख रूप से राष्ट्रमंथन के रमन सूद, विप्र फाउंडेशन के नरेंद्र पालीवाल, समिधा संस्थान के चन्द्रगुप्त सिंह चौहान, क्षत्रिय महासभा के चंद्रवीर सिंह करेलिया, बजरंग सेना के शिवसिंह, धर्मोत्सव समिति के भूपेंद्र सिंह भाटी,  महाप्रताप गाइड यूनियन के कोमल सिंह चौहान, किशन वाधवानी , तारा देवी पालीवाल, उमेश नागदा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

सभी वक्ताओं ने कहा कि यह कथा आयोजन उदयपुर के सांस्कृतिक जीवन में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ देगा। विशेष रूप से छात्र और युवा वर्ग को इसमें अधिक से अधिक जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि नई पीढ़ी श्रीराम के आदर्शों और जीवन मूल्यों को आत्मसात कर सके।

कार्यक्रम में स्वागत शशांक टांक ने किया, जबकि आभार निश्चय कुमावत, प्रतीक कुमावत द्वारा व्यक्त किया गया।

अंत में डॉ. प्रदीप कुमावत ने उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए कहा कि  “श्रीराम केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना के मूल हैं। अब समय आ गया है कि हम उनके ऐतिहासिक स्वरूप को प्रमाणिकता के साथ समझें और उसे जन-जन तक पहुंचाएं।”

यह भव्य आयोजन “श्रीराम के पथ पर एक ज्ञान यात्रा” के रूप में संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्पद और युगांतकारी साबित होने की उम्मीद की जा रही है।

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