आशावादी होना ही जीवन की सफलता का मापदंड है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

 *आशावादी होना ही जीवन की सफलता का मापदंड है-जिनेन्द्रमुनि मसा*


गोगुन्दा 13 अगस्त

उमरणा के स्थानक भवन में संतो ने श्रावक-श्राविकाओं को सम्बोधित किया

श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में आयोजित सभा मे जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि

निराशावादी अपने आप मे ही हीन भावना से ग्रसित होकर अनेक कुंठाओं से मानसिकता का शिकार हो जाता है। साथ मे वर्तमान को भी हाथ से खो रहा है और भविष्य को अंधकार में धकेल रहा है। उसके सामने साक्षात भगवान भी उतर आये तो भी वह सफल नहीं हो सकता।  निराशा साक्षात मृत्यु के समान है। निराशा का माहौल बनानेवाले भी पाप के भागीदार है, जिन्होने जैसे बीज से वृक्ष बनानेवाले अंकुर को बीच मे ही उखाड़ फेंकने जैसा अपराध ही नहीं किया, बल्कि उसी छाया में फल और ऑक्सीजन से लाखो जनता को वंचित करने के समान महान बनाने वाली आत्मा के साथ कुठाराघात किया है।

संत ने कहा  निराशा शब्द जिसके कोष मे ही नहीं होता उसे आध्यात्मिकता में प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त होता है। जो स्वयं ही आशावादी नहीं है तो भला वह आदमी दूसरो के क्या काम आएगा? क्या आशा का संचार करेगा? निराशा के विचारों तिलांजलि देनेवालों के सफलता स्वयं चरण चुमती है।

 मुनि ने कहा किसी में आशा का संचार नहीं कर सकते तो कम से कम निराशा के गड्डे में धकेलने मे मानव संकोच क्यों नहीं करते। ऐसे मानव साक्षात शैतान के समान है। हौंसला बढ़ाना सबसे बडा दान और सबसे बडा धर्म है। इसमें कोई पैसे भी नहीं लगते है।जो यह नहीं करता और यह दिखाने के लिए धर्म करता है तो पाखण्ड ही माना जायेगा।

 एक बार मे सफलता नहीं मिले तो निराश नहीं होना चाहिए। हमे निरंतर उस मार्ग की और कमर कसकर आगे बढ़ना चाहिए। निश्चित मंझिल मिलेगी। आशावादी होना ही जीवन की सफलता का मापदंड है। आशा ही अमर धन है। इससे बडी कोई संपत्ति विश्व में नहीं है।

 आशावादी के ही भाग्य का निर्माण होता है। देवता भी साक्षात उसके चरणों की उपासना करते है। जो थोड़े से कष्ट से घबराकर मेदान छोड़कर पलायन कर देता है। वो सफलता से वंचित रहकर जनता में भी उपहास का पात्र बनता है।

 निराशावदी अपने आपमे हिन भाव से अपने कर्मों को भी महान नही बना सकता। अपने कर्मों को पवित्र बनाने के लिए निराशा छोड़कर आशा की किरण जगानी होगी। तभी जीवन प्रकाशमय बना सकते हैं। अन्यथा अंधकार मे ही भटकना पडेगा।रितेश मुनि ने कहा कि निरंतर प्रयासरत रहने से ही जीवन मे सफलता मिलती है। हाथ पर हाथ धरकर बैठने वाले का भाग्य भी साथ नही देता है।प्रभातमुनि ने अपनी प्रवचन श्रृंखला में कहा कि प्रतिदिन सामायिक और लोगस का पाठ अवश्य करना चाहिए।मुनि ने कहा कि अनुकूल नही होने पर सामायिक नही करते है तो कोई बात नही है,लेकिन हर एक श्रावक श्राविकाओं को पांच माला नियमित फेरना चाहिए।अगर माला नही फेरना चाहते है तो प्रभु को याद करने के अनेक मार्ग है ।मुनि ने कहा 'कर का मणका का डारी दे,मन का मणका फेर" वाले दोहे को हमेशा आत्मसात करना होगा।रक्षाबंधन के त्योहार और पर्युषण महापर्व के इस आत्मकल्याण के दौर में साधना करने के लिए कहा गया।

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