योगिराज ब्राह्मनिष्ठ संत ठा.गुमान सिंह जी की184वीं जयंती राम झरोखे के पुनरोद्धार के साथ श्रद्धापूर्वक मनाई गई

 योगिराज ब्राह्मनिष्ठ संत ठा.गुमान सिंह जी की184वीं जयंती राम झरोखे के पुनरोद्धार के साथ श्रद्धापूर्वक मनाई गई



उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल। उदयपुर के समीप गाँव लक्ष्मणपुरा में योगीवीर्य संत ठा गुमान सिंहजी की 184वीं जयंती सर्व प्रथम ठा.भगवत सिंह लक्ष्मणपुरा, सुरेन्द्र सिंह, राम सिंह और चेतन्यराज सिंह द्वारा हवन में पूर्णाहुति दी गई  तत्पश्चात कर्ण सिंह द्वारा नव निर्मित राम झरोखा में चारभूजा, श्री राम, योगीराज ठा.गुमान सिंह जी और एकलिंग जी की तस्वीर गर्भ गृह में स्थापित की गई। कार्यक्रम में राव साहब मयूरध्वज सिंह बाठेडा, बीएन संस्थान के सचिव डॉ महेंद्र सिंह आगरिया, संत लक्ष्मणपूरी गोस्वामी, ठा. विजेन्द्र सिंह लक्ष्मणपुरा, ठा.ईश्वर सिंह साकरिया खेडी, गोविंद सिंह सोड़ावास, डॉ लक्ष्मीनारायण दशोरा, बीएन विश्वविद्यालय के डॉ सिद्धराज सिंह और डॉ, कमल सिंह बेमला, भवानी प्रताप सिंह ताणा ठा.दीनदयाल सिंह, सत्यपाल सिंह थाणा, पदम सिंह सारण, देवेन्द्र सिंह सारंगदेवोत भागल, हिम्मत सिंह असावरा, किशन सिंह देवाली, केवल कुमार तलसानिया, राजेन्द्र सिंह, जीवन सिंह, चन्द्रभान सिंह आदि गणमान्य मातृशक्ति सहित कई मुमुक्षु और साधक उपस्थित रहे। सर्वप्रथम स्वागत भाषण भगवत सिंह ने दिया फिर डॉ राम सिंह द्वारा ठा.गुमान सिंह जी का जीवन पर प्रकाश डाला जिसमें बताया की योगी राजऋषि योगिराज गुमान सिंह जी ने ई.स.1894 (आत्मसाक्षात्कार वर्ष विक्रम संवत 1951)में लक्ष्मणपुरा के पश्चिम में अपनी योग साधना पीठ "राम झरोखा" का  निर्माण कराया था जो कि मानव शरीर के नवद्वारों की तरह युक्त था जिसमे वो स्वयं व योगिराज बावजी चतुर सिंह जी योग साधना करते थे। उक्त नवद्वारा की परिकल्पना योगिराज गुमान सिंह जी ने अर्थववेद के निम्न श्लोक के आधार पर व उनके स्वयं के अनुभव के आधार पर की थी । 

अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।

तस्यां हिरण्यय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:।।

इस मंत्र में मानव देह का बहुत ही सुंदर चित्रण हुआ है। हमारा शरीर आठ चक्रों से युक्त है। यह शरीर रूपी धुरी आठ चक्रो वाली है। नौ द्वार है - दो कर्णछिद्र, दो नासिका छिद्र, दो ऑखे, एक मुख तथा दो अधोद्वार (मल व मूत्र द्वार) उसी तरह इसमें भी नौ द्वार रखे गये हैं। यह स्थान साधन भजन -सत्संगादि की दृष्टि से बड़ा उत्तम स्थान हैं। सन्धियां कंवर सारंगदेवोत द्वारा माजिसा पूज्या कमल‌ कंवर जी और ठा.गुमान सिंह द्वारा दिए गए गुरु मंत्र के बारे में बताया। डॉ महेंद्र सिंह आगरिया द्वारा ठा.गुमान सिंह जी के आध्यात्मिकपक्ष  की उत्कृष्ट जानकारी दी गई। डॉ.कमल सिंह बेमला द्वारा ठा.गुमान जी के योग के प्रति जागरूकता का परिचय करवाया। इसके साथ ही सुरेन्द्र सिंह द्वारा ठा.गुमान सिंह जी ने छप्पनियां अकाल के समय किस प्रकार उत्तर प्रदेश से अन्न मंगवा कर अपनी प्रजा की सहायता की जानकारी दी गई। गोविंद सिंह सोड़ावास ने लक्ष्मणपुरा को संतों की भूमि कहाऔर कई सुधा संचित वचन सुनाये। संत लक्ष्मण पूरी गोस्वामी द्वारा दोहों के माध्यम से ठा.गुमान सिंह जी के आत्मज्ञान और योग की उपदेशामृतयुक्त जानकारी दी गई। तत्पश्चात सभी ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया। सुप्रसिद्ध भजन गायक भगत पुष्कर 'गुप्तेश्वर' के नेतृत्व में भजन कीर्तन किया गया।कार्यक्रम में मंच संचालन और धन्यवाद का कार्य सुरेन्द्र सिंह लक्ष्मणपुरा द्वारा किया गया। ज्ञातव्य हैं की राजयोग-निधान ब्राह्मनिष्ठ संत गुमान सिंह जी ओम्कारेश्वर के संत कमल भारती जी के शिष्य थे और प्रसिद्ध संत चतुर सिंह जी बावजी के गुरु थे। उनकी मोक्ष भवन, अद्वेत बावनी, गीता और पतंजलि योग पर टिका, मनीषा लक्ष चन्द्रिका रामरतन माला, गुमान पदावली सहित 21 पुस्तकें हैं। गुमान सिंह जी ने सन्  1919 को इस नश्वर संसार को छोड़ा था।

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