राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री आवास सिविल लाइंस में शेर , बघेरों का रक्षक राजा होता है। यह सीखा कर गया है सिविल लाइन से इलाके में
*राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री आवास सिविल लाइंस में शेर , बघेरों का रक्षक राजा होता है। यह सीखा कर गया है सिविल लाइन से इलाके में
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बढ़ते इंसानी दखल से शेर और बघैरों को पुरखों की दी गई जमीन पीछे छूटने लगी ।
वों सिविल लाइंस मुख्यमंत्री आवास के नजदीक संदेश दे गया कि जंगल और शेर बघैरों का रक्षक राजा ही होता है, शास्त्रों में जंगल और वहां रहने वाले सभी जानवरों का रक्षक राजा को बताया है मुख्यमंत्री के सिविल लाइन से इलाके में आकर पेट भरने निकले हिंसक लेपर्ड राजा को संदेश दे गया, कि जंगल में बढ़ती इंसानी दखल से उसके पुरखों की दी गई जमीन छूटने लगी है भोजन पानी नहीं मिलने से वह ही नहीं सारे जंगली जानवरों का ठिकाना छूट गया है *जंगल में अब शेर का राज नहीं बल्कि उन्हें धोखे से मार कर खाल बेचने वालों का राज है*। राजा केवल प्रजा का ही नहीं अपितू जंगल और जानवरों का भी रक्षक होता है , तब घने जंगल हिंसक जानवरों से भरे थे। संस्कृत विद्वान डॉक्टर सुभाष शर्मा के मुताबिक शास्त्रों में वर्णित है कि राजाओं महाराजाओं के पास स्थावर और जंगम सभी का शासन होता था ।
रियासती जमाने में जागीरदारों को शिकार करने की इजाजत लेनी पड़ती थी। मादा जीव, जानवरों को मारने पर पाबंदी थी अंग्रेजी शासन काल में अफसर को शिकार करने का विशेष चांव रहता था नव वर्ष मनाने आते ,तब वह केवल शिकार करते थे राजा भी उनको खुश रखता था । उनके लिए जंगल में शामियानें लगाकर शिकार खेल खेलने का प्रबंध भी राजा करने लगे थे।
ऐसे में वन के रक्षा के नियम टूटते ही गए ।।। सन 1876 में प्रिंस अल्बर्ट ने झालाना क्षेत्र की शेरनी को गोली मारी थी। तब उसके दोनों शावकों हैप्पी और हैरी को चिड़ियाघर में रखा गया था।
जंगली सूअर को मारने वालों का जबड़ा तोड़ने का नियम रहा था। लेकिन अंग्रेज भाले से सुअर वेदन का खेल खेलते थे । चीतें भी बहुत थे । इन्हें गोश्त के अलावा पनीर और गुलकंद बहुत पसंद था। हिंसक हुए आदमखोर शेर और बाघों पर बंदूक चलाने के बजाय पड़कर पिंजरे में रखने का नियम था।
सवाई माधोपुर अभ्यारण में 15 लोगों का निवाला बनाने वाले आदमखोर शेर को मारने की बजाय उसे जिंदा पड़कर रामगंज के नाहरवाड़ा में रखा गया था।
सन 1886 में इतिहासकार सर एडमिन अर्नाल्ड ने 8 आदमखोर शेरों को नाहरवाड़ा के पिंजरों में बंद देखा । उन्होंने लिखा कि जयपुर राज्य में आदमखोर शेर को भी मारने के बजाय जिंदा पकड़कर पिंजरे में रखा जाता था। वास्तु दोष मिटाने के लिए न्यू गेट पर पिंजरों में शेर दहाड़ते थे। रणथंभोर के जंगल में अंग्रेज मेहमान ने टाइगर का फोटो लेने के लिए जब को तेज दौड़ने की जिद की , तब जंगल के मुखिया ने यह कहते हुए मना कर दिया कि जंगल का राजा टाइगर है पर्यटक नहीं।
जंगलात के हकीम रहे कानोता के केसरी सिंह चंपावत के समय मुंशी नारायण सिंह व सत्येंद्र नाथ सेन दबंग अफसर थे। पर्यावरण प्रेमी हनुमत सिंह सान्था के मुताबिक राजा के भाई ,भतीजे तक को राजा से शिकार की इजाजत लेनी पड़ती थी । अब जंगल तो क्या पशु पक्षियों के शोषण और की गोचर तक में पट्टे और घर बन गए हैं अर्थात अब जगह ही नहीं बची तो यह बेचारे जंगली, वन्य जीव आबादी क्षेत्र में ही आएंगे ,और कहां जाएंगे। क्योंकि उनके क्षेत्र पर मनुष्य ने कब्जा कर लिया इनकी कौन सुने। उनकी सुननी नितांत आवश्यक है,, क्योंकि जंगल जब रहेंगे तो ही जमीन रहती है । जीव जंगल जमीन इनका सम्मिश्रण है ।
रिपोर्टर वॉइस ऑफ़ मीडिया सीकर नीमकाथाना राजस्थान
जितेंद्र शिंभू सिंह शेखावत

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