सुविवि- पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की ओर से एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

 सुविवि- पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की ओर से एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन



उदयपुर संवाददाता विवेक अग्रवाल। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल आफ जर्नलिज्म के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को शब्दरंग उत्सव के तहत 'नए दौर की पत्रकारिता और चुनौतियां'  विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में भारत सहित ईरान, बांग्लादेश, फीजी और फिलिस्तीन के विद्यार्थियों ने भाग लिया।


इस एक दिवसीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर हेमंत द्विवेदी ने कहा कि पत्रकारिता बहुत जिम्मेदारी भरा पेशा है और तकनीक में लगातार परिवर्तन के साथ-साथ इससे जुड़े खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में हमें सजग रहते हुए इनका मुकाबला करना होगा। उन्होंने कला और पत्रकारिता के अंतर्सबंध को भी बताया और कहा कि एक अच्छे पत्रकार को एक अच्छा कलाकार भी होना चाहिए ताकि उसका सौंदर्य बोध खबरों में भी दिखाई दे।


मुख्य अतिथि सहअधिष्ठाता प्रोफेसर दिग्विजय भटनागर ने कहा कि भावी पत्रकारों को व्यापक समाज हित में खबरों की रिपोर्टिंग करनी चाहिए। सकारात्मक और बड़े उद्देश्य के साथ सामाजिक जिम्मेदारियां का निर्वहन भी करना चाहिए क्योंकि पत्रकारिता एक ऐसा व्यवसाय है जिस पर सभी लोग भरोसा करते हैं। 


ईरान की असल अनीज़ बोडखोर ने कहा कि भारत में पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त करते हुए उसका भारत से गहरा जुडाव हो गया है। अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारत अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रहा है। ऐसे में पत्रकारिता की नई चुनौतियों से निपटने के लिए हम सबको विचार करना होगा। फिलिस्तीन की जिना अज अलदीन कहा कि विश्व पटल पर आज शांति की जरूरत है क्योंकि युद्ध मानवता का शत्रु है उसने कहा कि पत्रकार कलम के सिपाही होते हैं। शांति के दूत होते हैं। वे चाहे तो अपनी कलम के जरिए विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। बांग्लादेश के मुकेश चंद्र ढीली ने कहा कि भारत उसका दूसरा घर है। यहां उसे लगातार नया सीखने को मिलता है और वह नवाचारों के जरिए  खुद को बेहतर पत्रकार बनने की कोशिश करता है। फिजी की वंशिका कुमारी ने बेहद गर्व से बताया कि भारत और फिजी का तो वर्षों का संबंध रहा है। वहां पर हिंदी बहुतायत में बोली जाती है और समाचारों में भी हिंदी की प्रमुखता होती है उसने कहा कि भारत में उसे अपनेपन का एहसास मिलता है।


हाल ही भारतीय सेना में चयनित हुए मेजर आयुष ने संगोष्ठी में कहा कि पत्रकारिता उसका ध्येय था लेकिन प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के दौरान उसे सेना में जाने की प्रेरणा मिली। उसने कहा कि पत्रकारिता की भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए हम सबको चिंतन करना होगा। हितेश मिश्रा, स्निग्ध शेखर और राजलक्ष्मी सिंह ने डिजिटल मीडिया के खतरों और सोशल मीडिया के जरिए फैलाई जाने वाली फेक न्यूज़ पर चिंता जाहिर की।


डॉ भारत भूषण ओझा और विपिन गांधी ने डाटा चोरी और साइबर अपराधों से सचेत करते हुए डिजिटल पत्रकारिता को और सुरक्षित बनाने की बात कही वहीं तरुण कुमार, हिमांशु जैन, गौतम सुथार और कमल सिंह ने कहा कि सिटिजन जर्नलिज्म के जरिए हर नागरिक कंटेंट क्रिएटर हो गया है लेकिन इसके प्रस्तुतीकरण में संजीदगी और जिम्मेदारी का भाव होना चाहिए।


एनडीटीवी और फेसबुक जैसी मीडिया संस्थानों में काम कर चुकी दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार गरिमा दत्त ने कहा कि डिजिटल दौर में हम अखबार पढ़ना भूल गए हैं। नई पीढ़ी छपे हुए शब्दों से दूर हो रही है। उन्हें हर अपडेट इंस्टाग्राम से मिलता है। यह सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने के लिए हमें नई पीढ़ी को अखबार फ्रेंडली बनाना होगा।


आईसीएसएसआर दिल्ली के पोस्ट डॉक्टरल फेलो और वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रवीण झा ने कहा कि पत्रकारिता में भाषा का महत्व समझना आवश्यक है। नई पीढ़ी मिश्रित भाषा का इस्तेमाल करती है जो भाषा भाषाई लिहाज से अनुचित है। खबरों की प्रस्तुतीकरण में भाषा की शुद्धता आवश्यक है। संगोष्ठी की शुरुआत में विषय परिवर्तन करते हुए पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक डॉ कुंजन आचार्य ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डीप फेक सबसे बड़ी चुनौती बन के उभरे है और इसके समाधान के लिए पत्रकार जगत को बेहद सावधानी बरतनी होगी।

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