हनुमान जयंती 6 अप्रैल गुरुवार को*

 *हनुमान जयंती 6 अप्रैल को*


   

      *हमारे आराध्य देवों के योगविशेष में आने वाले जन्मदिन को जन्मोत्सव की अपेक्षा "जयन्ती" शब्द से अभिहित करना अधिक गुरुतर विलक्षण रहस्यमयी और श्रेयस्कर है।"*

हनुमत् ध्यानम्-

*दूरीकृत सीतार्तिः,प्रकटीकृत राम वैभव स्फूर्तिः।*

*दारितदशमुखकीर्तिः,पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः।*


      हमारे आराध्य आञ्जनेय विद्यावान् वज्रांगबली के प्राकट्योत्सव "हनुमज्जयन्ती" पर सभी अपनों को मंगलमयी सुमंगली मंगलकामनाएँ..


      किसी भी देवी-देवता के प्रामाणिक एवं प्रसिद्ध जन्मदिन को "जयन्ती" कहें तो विशेष फलदायी होता है। जयन्ती निमित्त किये गये व्रतादि से अनन्त पुण्यों का अभ्युदय होता है। प्रामाणिक का अर्थ मास तिथि नक्षत्र वारादि के विशेष संयोग से युक्त जयन्ती दिवस है। 

      ऐसे ही सनातन धर्म संस्कृति में मत्स्य जयन्ती, परशुराम जयन्ती, नृसिंह जयन्ती, वामन जयन्ती, राधा जयन्ती आदि प्रसिद्ध हैं।


स्कन्द पुराण में कहा है-

*महाजयार्थं कुरुतां जयन्ती मुक्तयेऽथवा।*

*धर्ममर्थं च कामं च मोक्षं च मुनिपुंगव।*

*ददाति वाञ्छितानर्थान् ये चान्येऽप्यतिदुर्लभा:।।*

      *जैसे कृष्णजन्माष्टमी के दिन अर्धरात्रि में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग हो तो वह कृष्ण *जयन्ती* कहलाती है। अन्यथा केवल जन्माष्टमी ही कही जाएगी।* 

      अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र बुधवार या सोमवार आ रहा हो, सूर्योदय से पूर्व नवमी तिथि स्पर्श कर रही हो और पूर्णिमान्त भाद्रपद कृष्ण पक्ष का महिना हो (अमान्त श्रावण कृष्ण पक्ष मास हो) तो कोटि-कोटि पापों का नाश करने वाला, प्रेतत्व से मुक्ति देने वाला और अगणित पुण्यों की अभिवृद्धि करने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत "जयन्ती" व्रत कहलाता है। ऐसा पद्मपुराण में कहा गया है। 

      कतिपय विद्वान् सोमवार के स्थान पर सोम अर्थात् अर्धरात्रि में चन्द्रोदय की उपस्थिति को ग्रहण करते हैं।

       चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को माता अंजना के गर्भ से रामभक्त हनुमान जी का प्राकट्य हुआ था। अतः इसी दिन भगवान के जन्मदिन महोत्सव को "हनुमान जयन्ती" रूप में मनाया जाना चाहिए। व्रतरत्नाकर उत्सवसिन्धु आदि ग्रंथों में भी हनुमान जयंती अभिहित है। कुछ क्षेत्रों में बैशाख शुक्ला पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती को मारुति जन्मोत्सव के रुप में मनाते हैं।


आचार्य श्री नीलकण्ठ ने अपने भगवन्तभास्कर में स्कन्दपुराण से जयन्ती शब्द का अर्थ कहा है-

*जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीं तां विदुर्बुधा:।*

पाठान्तर-

*जयं पुण्यं च कुरुते जयन्तीमिति तां विदुः।*

      विशेष योगादि से युक्त भगवान के जन्मदिन को विद्वज्जनों ने "जयन्ती" कहा है। "जयन्ती" जय और पुण्य को प्रदान करती हैं।


      शास्त्रों में कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी को भी हनुमान जी की जयन्ती मनाने के प्रसंग हैं --

*आश्विनस्यासिते पक्षे भूतायां च महानिशि।*

*भौमवारेऽञ्जनादेवी हनूमन्तमजीजनत्।।*

      अमान्त आश्विनस्यासिते का अर्थ कार्तिक कृष्ण पक्ष है। भूततिथि अर्थात् चतुर्दशी की मध्यरात्रि मंगलवार को माता अंजना के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ।

       और कहते हैं कि कार्तिक कृष्णा 14 को सीताजी ने अपना सौभाग्य द्रव्य सिन्दूर हनुमान जी को प्रदान किया था तब से ही हनुमान जयंती मनाई जाने लगी है। 

और भी कहा है कि-

*स्वात्यां कुजे शैवतिथौ तु कार्तिके कृष्णेSञ्जनागर्भत एव मेषके।*

*श्रीमान् कपीट्प्रादुरभूत् परन्तपो व्रतादिना तत्र तदुत्सवं चरेत्॥*


     आजकल जन सामान्य में भ्रान्ति है कि जयन्ती शब्द भगवान के जन्मोत्सव के लिए प्रयुक्त करना शुभ नहीं है। लोगों की मान्यता है कि जयन्ती शब्द तो मृत व्यक्ति के जन्मदिन के लिए या पुण्यतिथि के लिए प्रयुक्त होता है। जैसा कि आजकल शासकीय आदेशों में महापुरुषों के जन्म दिवस को गांधी जयंती सुभाष जयंती आदि कहा जाता है।


       एकादश रुद्ररूप देवों के देव महादेव ही हनुमान् जी महाराज के रूप में भगवान् विष्णु के अवतार श्रीराम की सहायता के लिए चैत्र मास की चित्रा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा को अवतरित हुए हैं-


*यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान् स महाकपिः।*

*अवतीर्ण: सहायार्थं विष्णोरमिततेजस:॥*

और भी-

*पूर्णिमाख्ये तिथौ पुण्ये चित्रानक्षत्रसंयुगे।।*

विशेष विधान -

*जयंती नाम पूर्वोक्ता हनूमज्जन्मवासरः।*

*तस्यां भक्त्या कपिवरं नरा नियत मानसाः।।*

*जपंतश्चार्चयन्तश्च पुष्पपाद्यार्घ्यचंदनैः।*

*धूपैर्दीपैश्च नैवेद्यैः फलैर्ब्राह्मणभोजनैः।।*

*समंत्रार्घ्यप्रदानैश्च नृत्यगीतैस्तथैव च।*

*तस्मान्मनोरथान्सर्वान् लभन्ते नात्र संशयः॥*

      हनुमान जयन्ती के दिन हम सभी को भक्तिपूर्वक मन को वश में रखते हुए पुष्प, अर्घ्य, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, मंत्रपूर्वक अर्घ्य नृत्य गीत आदि से कपिश्रेष्ठ का जपार्चना करना चाहिए। इस दिन ज़रूरतमन्द को भोजन एवं चित्र विचित्र वस्त्रों का दान भी करना चाहिए। जिससे मनुष्यमात्र सभी मनोरथों को प्राप्त करने में सफल होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।


प्रार्थयाम्यहम्-

बेगी हरो हनुमान महाप्रभु

जो कछु संकट होय हमारो

को नहीं जानत है जग में कपि

संकट मोचन नाम तिहारो.

           पं. कौशल दत्त शर्मा

           नीमकाथाना राजस्थान

           ९४१४४६७९८८

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