इस बार 25 मई रविवार को प्रारम्भ हो रहा है नवतपा।
. नौतपा - नवतपा
सूर्य जिस दिन रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है उस दिन से प्रारम्भ होता है नवतपा।
सूर्य वृष राशि के दस अंश पर जिस दिन सङ्क्रमण करता है उस दिन से प्रारम्भ होता है नवतपा।
इस बार 25 मई रविवार को प्रारम्भ हो रहा है नवतपा।
सूर्य रोहिणी नक्षत्र के नौ अंशों को भोगेगा दस दिन तक इसलिए दस दिन तक प्रभावी रहेगा नवतपा।
वर्ष प्रतिपदा का आरम्भ भी रविवार को, मेष सङ्क्रमण भी रविवार को, रोहिणी नक्षत्र प्रवेश भी रविवार को और रोहिणी नक्षत्र पारगमन भी रविवार को भीषण गर्मी और न्यायप्रिय निरंकुश प्रशासन के संकेत दे रहा है यह वर्ष।
नवतपा का ज्योतिषीय पक्ष-
आकाश मण्डल के भचक्र में अश्विनी आदि सत्ताइस नक्षत्र मेषादि राशियों के रूप में परिभ्रमण करते रहते हैं। सूर्य सहित सभी ग्रह अपनी अपनी गति के अनुसार नक्षत्र और राशियों का पारगमन करते हुए चराचर जगत को प्रभावित करते रहते हैं।
एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं।एक राशि में 03.20 - 03.20 अंश के नौ चरण होते हैं जो सवा दो - सवा दो नक्षत्र समूहों से राशि निर्माण करते हैं। एक राशि में तीस अंश होते हैं। 360 अंशों का बारह राशियों एक भचक्र होता है। कोई भी ग्रह एक नक्षत्र भोगने में 13.20 अंश पार करता है।
सामान्यत: सूर्य एक नक्षत्र पर 13.5277 दिन रहता है। और सत्ताइस नक्षत्रों का भोग 13.5277 × 27 = 365.25 दिन में पूरा कर लेता है। आदि काल से ज्योतिष शास्त्र में न्यूनाधिक रूप से सूर्य की यही वार्षिक गति मानी गयी है। और यही 365 सही एक बटा चार दिन सौर वर्ष का मान भी है जो हमारे भारतीय ज्योतिष की देन है। सूर्य की वार्षिक गति को आधुनिक वैज्ञानिक पृथ्वी की गति मानते हैं।
ग्रहों का राजा सूर्य जिस दिन रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है उस दिन से नवतपा प्रारम्भ होता है। सूर्य द्वारा रोहिणी नक्षत्र के नौ अंशों को भोगना ही नवतपा है। सूर्य वृष राशि में रोहिणी नक्षत्र का भोग 13.20 डिग्री स्थूल रूप से 15 दिन में पूरी करता है। इस बार सूर्य का रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश और निर्गमन दोनों ही रविवार को हो रहे हैं जो भीषण गर्मी और न्यायप्रिय निरंकुश प्रशासन के बहुत बड़े संकेत हैं। इस बार वर्ष का राजा भी सूर्य है तो मन्त्री भी सूर्य है। रोहिणी नक्षत्र प्रवेश निर्गमन भी रविवार को। वर्षों बाद सूर्य अद्भुत संयोग बना रहे हैं इस वर्ष।
रोहिणी नक्षत्र के दो तिहाई दिन अर्थात् दश दिन सूर्य की किरणें विशेष तीक्ष्ण होने से हमारे यहां गर्मी का प्रकोप बढ़ जाता है। सच्चाई ये है कि ये नवतपा प्रतिवर्ष दश दिन में ही पूरा होता है। रूढ़ परम्परा में नौ अंशों को नौ दिन मान बैठे हम लोग।
मई-जून में सूर्य की गति अत्यन्त धीमी होने से एक नक्षत्र पर 15 दिन और दिसम्बर-जनवरी में सूर्य की गति अत्यन्त तीव्र होने से एक नक्षत्र पर 13 दिन से भी कम रहते हैं।
भगवान भुवन भास्कर जब रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तो भीषण गर्मी प्रारम्भ हो जाती है। प्रत्येक वर्ष सूर्य 25 या 24 मई को रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं। प्रायः ज्येष्ठ मास में नौतपा (दश दिन = नौ अंश) लगता है जिससे गर्मी अपने प्रचंड यौवन पर रहती है। इसे ही ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से नौतपा कहते हैं। सूर्य देव अपने उग्र रूप में रहते हैं। उत्तरायण सूर्य की किरणें उत्तर भारतीय क्षेत्रों पर सीधी पड़ती हैं।
कृतिका नक्षत्र सूर्य भगवान का अपना नक्षत्र है। कृतिका से गर्मी बढ़ने लगती है और कृतिका से रोहिणी में प्रवेश करते ही सूर्य पृथ्वी एकदम सन्निकट आ जाते हैं तो प्रचंड गर्मी पड़ती है.
इस बार नवतपा 25 मई से लेकर 3 जून तक रहेगा। ज्योति-स्वरूप आदिदेव भगवान भुवन भास्कर 25 मई को सुबह संगवकाल में रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे और रोहिणी के नौ अंशों के रूप में दो तिहाई भोग 03 जून को पूरा करेंगे।
संहिता ग्रन्थों की मान्यता है कि जिस वर्ष नवतपा के नौ अंशों में जिस क्षेत्र में दश दिन प्रचंड भीषण गर्मी पड़ती है तो उस वर्ष अच्छी बरसात होती है और सर्दी की फसल भी अच्छी होती है। और यदि नवतपा के दस दिनों में बरसात होती है तो आने वाला समय आमजन के लिए शुभ नहीं रहता है। आंधी तूफान आते हैं तो प्राकृतिक विपदाओं के अम्बार लग जाते हैं। इस समय ग्रहों का अस्त होना प्रधान राजा के लिए बहुत ही शुभ संकेत हैं। उनका प्रताप स्वत: ही बढ़ जाता है। शत्रु पक्ष कान्तिहीन क्रान्ति करते रहते हैं।
नवतपा: की भांति बृहत्तपा: भी होता है जो पूरे ग्रीष्म काल को इंगित करता है। शर्दी के चीला के समान गर्मी का भी चीला होता है। सूर्य कृतिका रोहिणी मृगशिरा नक्षत्र पर होते हैं तो बृहत्तपा: रहता है। जो प्रायः 11 मई से 21 जून तक रहता है और यही ग्रीष्म ऋतु का मुख्य काल है।
इन नवतपा के दिनों में जलीय खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना चाहिए। और दूध दही शीतल पेय जल और रसदार फलों का दान करना पुण्य की वृद्धि करने वाला होता है। सूर्य की आराधना विशेष फलदाई होती है। शत्रु पक्ष के पराभव के लिए अभिचारादि प्रयोग भी इस समय सफल सिद्ध होते हैं।
लोक संस्कृतिविद् देवीसिंह भाटी के शब्दों में भी नवतपा में भयंकर लू चलना आवश्यक है। भाटी ने सूर्य के रोहिणी नक्षत्र पर पारगमन के 14 -15 दिन मानते हुए इन दिनों लू नहीं चलने के दुष्परिणाम इस पद में लिखें हैं-
दो मूसा दो कातरा दो तीड़ी दो ताप।
दो की बादी जल हरे, दो विश्वर दो बाय।।
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