पेंशन नियमों में समानिकरण पर सरकार के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता--

 पेंशन नियमों में समानिकरण पर सरकार के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता--


कैलाश चंद्र कौशिक

जयपुर। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को पेंशन नियमों के समानिकरण और वित्त नियमों पर कार्य और समीक्षा कर समानता के लिए पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। सरकारी कर्मचारी को एक पत्नी धारक देश हित में होना चाहिए। बहु विवाह को मान्यता जनसंख्या नियंत्रण और सीमित संसाधनों, वित्त की हानि रोकने को ध्यान में रखते हुए नहीं होनी चाहिये। शरीयत के स्थान पर कॉमन सिविल कोड की आवश्यकता है। यह भी एक आर्थिक आरक्षण है स्पष्ट असमानता है। 

कोई *मुस्लिम* व्यक्ति सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो जाता है तो उसकी मृत्यु के बाद शरिया के अनुसार उसकी 4 पत्नियाँ हैं, तो उसे पेंशन देते वक्त नामांकनों को देखा जाता है और यह तय किया जाता है कि किसको कितना प्रतिशत देना है।

यदि कोई नामांकन नहीं होता है, तो चारों के बीच 25% वितरित किया जाता है।

यदि पत्नियों में से एक की मृत्यु हो जाती है, तो अन्य तीन को 33.33 प्रतिशत भुगतान करना होगा।

यदि दूसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो शेष दो का 50% हिस्सा होता है।

अगर तीसरी पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो बाद वाली को 100% पेंशन मिलती है।

यदि पहली पत्नी की आयु ६० वर्ष, दूसरी की ५० वर्ष, तीसरी की ४० वर्ष की तथा चौथी की ३० वर्ष की है, और यदि सभी की आयु लगभग ७० वर्ष है, तो उनकी कुल पेंशन वर्ष -

10 + 20 + 30 +40 =100 वर्ष। *इसका मतलब है कि मुस्लिम व्यक्ति को सरकार की ओर से 100 साल तक पेंशन मिलेगी....*

इसकी तुलना में किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की पत्नी को अधिकतम 10 या 20 वर्ष पेंशन मिलेगी । 

इसका मतलब है कि चौथी पत्नी आजीवन मुफ्त पेंशन पाने के लिए सेवानिवृत्ति से पहले एक मुस्लिम वयस्क से शादी करती है। अब यह सर्वे करना जरूरी है कि शरीयत का फायदा उठाकर कितने फीसदी मुसलमान 55 साल की उम्र के बाद शादी कर लेते हैं? 

यदि यह प्रतिशत अधिक है तो यह सरकारी खजाने से मुस्लिम महिलाओं को कानूनी सुविधा प्रदान करने की साजिश है।

कॉमन सिविल कोड की अत्यंत आवश्यकता है।

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