राम काल्पनिक नहीं थे और मैं कल्पना नहीं कर सकता था — विश्वकर्मा

 राम काल्पनिक नहीं थे और मैं कल्पना नहीं कर सकता था — विश्वकर्मा 



—अयोध्या में बिराजित रामलला की प्रतिमा से पहले चित्र बनाने वाले डॉ. सुनील विश्वकर्मा हुए उदयपुर के कला विद्यार्थियों से रूबरू 


—प्रताप गौरव केन्द्र में चल रही कार्यशाला में साझा किए अपने अनुभव 


उदयपुर। अयोध्या में बिराजित रामलला की प्रतिमा से पहले उसका चित्र बनाने वाले डॉ. सुनील विश्वकर्मा का कहना है कि भगवान राम काल्पनिक नहीं थे और उनके चित्र की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। चित्र बनाना शुरू करने और चित्र पूरा होने के क्षण का भान उन्हें है, इस दरमियान क्या हुआ, उन्हें नहीं पता। उन्होंने भी भगवान से तीन दिन तक यही प्रार्थना की थी कि अब आप जैसा बनवाना चाहते हैं, आपके हाथों में है और जो आज सामने है यह उनके द्वारा मुझसे करवाया गया कार्य है, वे सिर्फ इस कार्य के निमित्त बने। 


यहां प्रताप गौरव केन्द्र 'राष्ट्रीय तीर्थ' में चल रहे महाराणा प्रताप जयंती समारोह के दूसरे दिन शुक्रवार को राष्ट्रीय कला कार्यशाला में कला के साधकों व विद्यार्थियों से परिचर्चा में उन्होंने यह बात कही। रामलला का चित्र बनाने का अवसर प्राप्त होने के संदर्भ में उन्होंने बताया कि संबंधित कमेटी के पास देश भर से 82 चित्र पहुंचे थे। इस बीच, कमेटी से जुड़े एक सदस्य ने नृपेन्द्र मिश्रा को विश्वकर्मा के बारे में जानकारी दी और विश्वकर्मा से भी चित्र मंगवाया गया। तीन चित्रकारों के चित्र चयनित हुए और अंत में विश्वकर्मा का चित्र सभी को पसंद आया। 


डॉ. विश्वकर्मा बताते हैं कि वैसे वे बचपन से देवी—देवताओं के चित्र—पोस्टर बनाते आए हैं, लेकिन रामलला की 5—6 वर्ष की आयु की संकल्पना मुश्किल थी, भगवान कृष्ण की बालपन की छवि बनती रही है, किन्तु रामलला के चित्र में बालसुलभ प्रकृति, आदर्श जीवन के संस्कारों की झलक और ईश्वरत्व, इन सभी के दर्शन होने जरूरी हैं। इसलिए यह एक चुनौती थी। और जब यह छवि प्रतिमा के रूप में उभर कर आई तो पूरा देश भावविभोर हो गया। न तो उन्हें लगता है कि यह उन्होंने बनाई और प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार भी यही कहते हैं कि उन्हें भी नहीं लगता कि प्रतिमा उन्होंने बनाई। यह तो रामजी को उनसे बनवानी थी, उन्होंने ही उनके हाथों से बनवाई। 


विद्यार्थी दिविष्ठा राठौड़ के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि अयोध्या में प्रतिमा प्रतिष्ठापित होने तक सभी के मन में अलग—अलग छवियां थीं, लेकिन अब हर देशवासी और विश्व में रहने वाले भारतवासियों के मन में रामलला की यही छवि विद्यमान हो चुकी है। यह सब प्रभु की कृपा है। 


विद्यार्थी कृष्णा मेहता के सवाल पर उन्होंने कहा कि कला अपने आप में ध्यान है। इसे उत्कृष्ट बनाने के लिए अलग से ध्यान की जरूरत नहीं है, बस निरंतर अभ्यास करते रहिये। उन्होंने कहा कि कला को मोक्ष का साधन माना गया है। इसके लिए मेहनत नहीं, बल्कि लगन और दिल से काम करने की जरूरत है। जब भी मन प्रसन्न हो और दिल करे कि कुछ बनाना चाहिए, तभी आप काम कीजिये। दूसरो की कृतियों में अच्छाइयां तलाशिये और अपनी कृतियों में कमियां तलाशिये, आपकी रचना में स्वत: निखार आ जाएगा। 


उन्होंने यह भी कहा कि एआई से भी डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि एआई का अपने क्षेत्र में प्रयोग करने की जरूरत है। 


इससे पूर्व, कार्यशाला संयोजक प्रो. मदन सिंह राठौड़ ने उनका स्वागत किया। दूसरे दिन की कार्यशाला में नई दिल्ली के डॉ लक्ष्मण प्रसाद, अजमेर की डॉ निहारिका राठौड़, उदयपुर से डॉ अनुराग शर्मा, डॉ रामसिंह भाटी, डॉ शंकर शर्मा, पुष्कर लोहार, डॉ निर्मल यादव, मनदीप शर्मा, हर्षित भास्कर एवं ओमप्रकाश सोनी का सान्निध्य प्रतिभागियों को मिला।

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