वर्तमान में गौ संरक्षण के लिए द्वापर के भगवान श्री कृष्ण जैसे गौ अनुराग की आवश्यकता : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी*
*वर्तमान में गौ संरक्षण के लिए द्वापर के भगवान श्री कृष्ण जैसे गौ अनुराग की आवश्यकता : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी*
विवेक अग्रवाल
उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 29 दिसंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद् भागवत महापुराण साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ का भव्य आयोजन किया गया है। कथा के षष्ठम् दिवस में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने भगवान श्रीकृष्ण जी की मथुरागमन लीलाओं का वर्णन किया। उन्होेने बताया कि कंस के आज्ञानुसार अक्रूर जी, कन्हैया और दाऊ को मथुरा लिवा लाने के लिए वृंदावन की ओर बढ़ जाते हैं। सारे गांव के अंदर यह समाचार जंगल के आग की तरह फैल गया कि कन्हैया हम सब को छोड़ कर जा रहा है। सभी उनसे मिलने केे लिए नंद जी के आंगन में एकत्रित हो गए। सभी ग्वाल और गोपियां कन्हैया को बहुत भावभीनी विदाई देते हैं। एक अजीब और निपट उदासी से पटा हुआ था सारा गांव! प्राण से विहीन देह की क्या दशा हो सकती है? जिसकी आत्मा ही निकल जाए वो कैसे जीवंत दिखेगी? वहां के प्राण श्रीकृष्ण थे, आत्मा थे। जब वे मथुरा गए तो सारा गांव शव बन गया। जब अक्रूर जी उनको रथ पर बिठाकर मथुरा की ओर ले गए। प्रभु श्री कृष्ण धर्म की स्थापना हेतु मथुरा नगरी की ओर प्रस्थान कर गये। धर्म की स्थापना के लिये कान्हा गोपाल भी बनें। गो सेवा, गो पूजन कर हमें गाय का माहात्म्य समझाया।
महाभारत में दर्ज अनेकानेक उदाहरण हमें गो माता के सम्मान एवं रक्षण की प्रेरणा देते हैं।
विष्णुधर्मोत्तर पुराणों में कहा गया कि गाय की सेवा से आप तैंतीस कोटि देवी-देवताओं को प्रसन्न कर सकते हैं। गो माता के पंचगव्य की बात करें तो उसमें गोमूत्र वैदिक काल से हमारे लिये लाभप्रद माना गया है। 400 से अधिक रोगों का उपचार इसी से संभव है। प्राचीन भारत में किसान बीज भूमि में रोपित करने से पूर्व धरती पर गो मूत्र छिडक कर उसे स्वच्छ बनाते। इसे गोमूत्र संस्कार कहा जाता था। गाय के दुग्ध को सात्त्विक, मेधाशक्ति बढ़ाने वाला, अनेक रोगों को समाप्त करने वाला कहा गया। गाय को मां उसकी आध्यात्मिकता एवं वैज्ञानिकता कारण कहा गया। परंतु अवध्या कही जाने वाली मां को काटा क्यूं जा रहा है? मंगलपांडे जैसे अनेकों वीरों ने जिस गाय की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी। हमें उसके संरक्षण, संवर्धन के लिये कदम उठाने होगें। उन्होने आशुतोष महाराज जी द्वारा चलाये जा रहे कामधेनु प्रकल्प के विषय में बताया। जिस के अंर्तगत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान भारतीय देसी नस्ल की गो प्रजातियों के संर्वधन हेतु संकल्पित है। गो के नस्ल सुधार पर कार्य किया जा रहा है। जो दुर्लभ प्रजातियां हो रहीं है उन को संरक्षित किया जा रहा है। क्योंकि गो बचेगी तो देश प्रगति कर सकेगा।
कथा में, चुन्नीलाल गरासिया, दिनेश जी भट्ट, वासुदेव मालावत आदि द्वारा दीप प्रज्वलित किया गया।
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