यौन रोग व महिलाओं में दुग्ध स्त्रावण में उपयोगी है शतावर।

 यौन रोग व महिलाओं में दुग्ध स्त्रावण में उपयोगी है शतावर।




 शतावरी पौधे का उपयोग भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में सदियों से किया जाता रहा है।आयुर्वेद में शतावरी को एक बहुत ही उपयोगी जड़ी-बूटी माना  है। यह अनेक बीमारियों की रोकथाम या इलाज में प्रयोग की जाती हैं। शतावरी एक बेल या झाड़ी नुमा जड़ी-बूटी है। इसकी लता फैलने वाली और झाड़ीदार होती है। प्रत्येक बेल के नीचे कम से कम 100 से अधिक जड़ें लगती हैं। ये जड़ें लगभग 30-100 सेमी लम्बी, एवं 1-2 सेमी मोटी होती हैं। जड़ों के दोनों सिरें नुकीले होते हैं। इन जड़ों के ऊपर भूरे रंग का, पतला छिलका होता है। इस छिलके को निकाल देने से अन्दर दूध के समान सफेद जड़ें निकलती हैं।

श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि शतावर जिसका वानस्पतिक नाम एस्परैगस रेसेमोसस है यह लिलिएसी कुल का सदस्य है। इसे अनेक नामो से जाना जाता है जैसे सतावर, सतावरि, सतमूली, शतावरी, सरनोई आदि। यह प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए जाना जाता है विशेष रूप से महिला प्रजनन प्रणाली में लाभदायक होता है। इस जड़ी-बूटी को एडाप्टोजेनिक माना जाता है क्योंकि यह शरीर की प्रणालियों को विनियमित करने और तनाव के प्रति प्रतिरोध को बेहतर बनाने में सहायक होता है । शतावर कई प्रकार से उपयोगी होता है जैसे जिन लोगों को नींद ना आने की परेशानी होती है। ऐसे लोग 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध में पकाकर उसमें घी मिलाकर खाने से नींद ना आने की परेशानी दूर होती है। अर्थात शतावर चूर्ण अनिद्रा की बीमारी में बहुत ही लाभदायक होती हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए शतावरी बहुत ही लाभकारी हैं। गर्भवती महिलाएं शतावरी, सोंठ, अजगंधा, मुलैठी तथा भृंगराज को समान मात्रा में लेकर उनका चूर्ण बना लें। इसे 1-2 ग्राम की मात्रा में लेकर बकरी के दूध के साथ पीने से गर्भस्थ शिशु स्वस्थ रहता है। कई महिलाओं को मां बनने के बाद स्तनों में दूध की कमी की शिकायत होती है। ऐसी स्थिति में महिलाएं 10 ग्राम शतावरी के जड़ का चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। इसलिए प्रसव के बाद भी शतावरी के बहुत उपयोग है जो महिलाओं के सेहत के लिए अच्छा होता है। इसी प्रकार 1-2 ग्राम शतावरी के जड़ से बने पेस्ट का दूध के साथ सेवन करने से स्तनों में दूध अधिक स्रावित होता है। इसी तरह शतावरी को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से दूध स्वादिष्ट और पौष्टिक हो जाता है। जो लोग शारीरिक कमजोरी, या शरीर में ताकत की कमी महसूस करते हैं। वे शतावरी को घी में पकाकर मालिश करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है कई लोग मर्दानगी ताकत की कमी या यौन शक्ति की कमी से भी परेशान होते हैं। ऐसे व्यक्तियो के लिए शतावरी बहुत लाभदायक होती हैं।  शतावर की चूर्ण को दूध के साथ खीर बनाकर खाने से यौन शक्ति में वृद्धि होती है। साथ ही वीर्य की कमी की समस्या में 5-10 ग्राम शतावरी को घी के साथ रोज सेवन करने से वीर्य की वृद्धि होती है। तथा स्वप्न दोष को ठीक करने के लिए ताजी शतावर की जड़ का 250 ग्राम चूर्ण तथा 250 ग्राम मिश्री को मिलाकर कूट-पीसकर इसके 6-11 ग्राम चूर्ण को 250 मिली दूध के साथ मिलाकर सुबह-शाम लेंने से स्वप्न दोष दूर होता है और शरीर स्वस्थ रहता है। शतावरी का सेवन सर्दी-जुकाम में भी फायदेमंद होता है। यदि शतावरी की जड़ का काढ़ा बनाकर 15-20 मिली मात्रा में रोज पीने से सर्दी जुकाम आराम मिलता है। कभी कभी अधिक जोर से बोलने या चिल्लाने पर गला बैठ जाता है ऐसी स्थिति में शतावर, खिरैटी (बला) और चीनी को शहद के साथ चाटने पर लाभ मिलता है। ऐसे ही सूखी खांसी से परेशान लोगों के लिए 10 ग्राम शतावरी, 10 ग्राम अडूसा के पत्ते तथा 10 ग्राम मिश्री को 150 मिली पानी के साथ उबालकर दिन में 3 बार सेवन करने से सूखी खांसी समाप्त हो जाती है। तथा कफ की स्थिति में शतावरी व नागबला के चूर्ण या काढ़े को घी में पकाकर सेवन करने से कफ विकार में लाभ होता है।  यदि किसी व्यक्ति के खाना ठीक से नहीं पच रहा है तो शतावरी का उपयोग करना लाभदायक होता है। जैसे 5 मिली शतावर की जड़ के रस को शहद और दूध के साथ मिलाकर पीने से अपच जैसी परेशानी से राहत मिलती है। यदि किसी के सिर दर्द होता है। तो शतावर की ताजी जड़ को कूटकर, रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल लें। अब इस तेल से सिर पर मालिश करने पर सिर दर्द और आधासीसी में आराम मिलता है। नाक की बीमारियों में भी शतावरी चूर्ण लाभदायक होता है। जैसे 5 ग्राम शतावर चूर्ण को 100 मिली दूध में पकाकर इसे छानकर पीने से नाक के सारे रोग खत्म हो जाते हैं। अतः शतावर चूर्ण नाक संबंधी रोगों के उपचार के लिए बहुत ही लाभकारी होता हैं। इसी प्रकार शतावरी के 20 ग्राम पत्तों का चूर्ण बनाकर दोगुने घी में तल कर या शतावरी चूर्ण को अच्छी तरह पीस कर घाव पर लगाने पर पुराने से पुराना घाव ठीक हो जाता है। यदि 5 ग्राम शतावरी की जड़ को 100-200 मिली दूध में पकाकर छानकर पीते है तो आंख के रोगों में लाभ मिलता है। जैसे पुराना घी, त्रिफला, शतावरी, परवल, मूंग, आंवला, तथा जौ का रोज सेवन करने से आंखों के रोगों में लाभ मिलता  है। शतावरी के इस्तेमाल से रतौंधी नामक रोग भी ठीक हो जाता है। यदि घी में शतावरी के मुलायम पत्तों को भूनकर सेवन करने से या 20-30 मिली शतावरी के जड़ से बने रस में बराबर मात्रा में गाय के दूध को मिलाकर पीने से पुरानी पथरी भी जल्दी गलकर निकल जाती है। यदि ताजी शतावर को दूध के साथ पीस छानकर दिन में 3-4 बार पीने से पेचिश (मल के साथ खून आने की बीमारी) में फायदा होता है। इसी शतावरी बवासीर में भी लाभदायक है। यदि 2-4 ग्राम शतावरी चूर्ण को दूध के साथ सेवन किया जाय तो बवासीर में लाभ होता है। शतावर व गिलोय को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर उसके 10 मिली रस में थोड़ा गुड़ मिलाकर पीने से बुखार में फायदा होता है। यदि 20-40 मिली शतावरी के काढ़ा में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से बुखार उतर जाता है।

डॉ कांटिया ने बताया कि महिलाओं में सुजाक या गोनोरिया जो यौन से संबंधित एक रोग है। यह बैक्टीरिया होने वाला रोग है। इस बीमारी से ग्रसित रोगी को 20 मिली शतावर के रस को, 80 मिली दूध के साथ मिलाकर पीने से सुजाक  रोग ठीक होता है। यदि किसी को पेशाब संबंधी परेशानी है। तो शतावर के 10-30 मिली रस को गोखरू के साथ शर्बत बनाकर पीने से लाभ होता है। कई लोग बार-बार पेशाब आने से परेशान रहते हैं, ऐसे में 10-30 मिली शतावर के जड़ का काढ़ा बनाकर मधु और चीनी के साथ मिलाकर पीने से लाभ होता है। तथा पेशाब की जलन में 20 ग्राम गोखरू पंचांग के बराबर शतावर को मिलाकर आधा लीटर पानी में उबालकर इसे छानकर 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाने से पेशाब की जलन और बार-बार पेशाब आने की समस्या से आराम मिलता है।

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