एक संत की लिखी अद्भुत वसीयत टूट गए बिक्री के रिकॉर्ड**
*एक संत की लिखी अद्भुत वसीयत टूट गए बिक्री के रिकॉर्ड**
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अद्भुत दिव्य संत स्वामी रामसुखदास जी महाराज का आलेख:-
दुनिया में जब कोई वसीयत लिखी जाती है। या वसीयत का जिक्र भी होता है ,तो सबसे पहले जेहन(दिमाग) में धन संपत्ति के बंटवारे की बात आती है।। मगर एक वसीयत दुनिया में ऐसी भी है । जिसको लिखने वाले के पास एक रुपए की भी संपत्ति न हो । कोई जमीन जायदाद नहीं हो । कोई बैंक बैलेंस ना हो ।कोई कोठी ,बंगला ,खेत या घर न हो ।और फिर भी अपने संपूर्ण जीवन की वसीयत लिखी हो।।
*** है न आश्चर्य की बात***।।।।
ऐसी ही अद्भुत वसीयत लिखी गई थी । कुछ समय पूर्व और उस वसीयत की 8 लाख से भी ज्यादा प्रतियां बिक जाए । जिनकी वसीयत को 40 बार पुनः मुद्रित किया गया हो ।। ऐसी अद्भुत और दिव्य वसीयत दुनिया में शायद ही किसी व्यक्ति की रही हो, जिसकी वसीयत की प्रतिलिपि (प्रतियां)को संग्रहालय में संग्रहित कर रखी हो !!! सोच कर देखिए ,,वह व्यक्ति कितना विरला और असाधारण होगा ,आखिर कौन था। वह व्यक्ति और ऐसा क्या था ।उस वसीयत में जिसके कारण वह दुनिया की सबसे दुर्लभ और अद्भुत वसीयत बन गई।।
*जी हां वह थे ।। इस कलयुग के असाधारण, अद्धित्तीय ,अद्भुत संत स्वामी राम श्री रामसुखदास जी महाराज उनकी वसीयत के लगभग 7-8 बिंदु उनकी महान सोच, निर्मल ता ,निर्विकार ,निस्वार्थ भावना ,को तथा पाखंड ,मान ,बड़ाई ,जय-जय कार ,की लालसा से दूर तथा मानव मात्र के कल्याण की भावना को स्पष्ट तौर पर दर्शाता है।।। इन बिंदुओं को पढ़ने मात्र से ही उनके पूरे व्यक्तित्व का परिचय मिल जाता है।।।☑️ **उनकी वसीयत कुछ इस तरह से थी**
1. जिस प्रकार जीवित अवस्था में मैंने दंडवत प्रणाम ,चरण स्पर्श ,जय जय कार ,माल्यार्पण को निषेध किया ।
इस शरीर को त्यागने के बाद भी इन सबका निषेध किया जाए।
2. जिस प्रकार जीवित अवस्था में मेरे नाम से ने तो कोई मठ है । ना कोई आश्रम है । ना कोई मेरे नाम पर पाठशाला, गौशाला आदि है ।और न हीं मेरे प्रवचन आदि के लिए कोई चंदा आदि इकट्ठा किया जाए। इस देह को त्यागने के पश्चात भी इसका पालन किया जाए।
3. मैं तो मेरा कोई शिष्य है ।नहीं कोई प्रचारक है ।न हीं कोई उत्तराधिकारी था । ना होगा।।
4. इस देह को त्यागने के पश्चात मेरे लिए किसी भी तरह का भोजन अथवा वार्षिक उत्सव नहीं किया जाए।
5. इस देह त्याग पश्चात अंतिम संस्कार हेतु बैकुंठी ,अर्थी आदि न हो ।।।।।एक झोली में ले जाकर इस देह को गंगा जी के समीप अंतिम क्रिया संपन्न कर दी जाए ,यदि गंगा जी ने हो तो जहां गायों का विचरण होता है, वहां अंतिम संस्कार किया जाए।
6. मेरे देह की एवं अंतिम संस्कार की कोई फोटो और तस्वीर अथवा छायाचित्र न लिया जाए ? यदि कोई ऐसा करता है ,तो उसे रोका जाए। ज्ञात हो कि स्वामी जी ने अपने पूरे जीवन काल लगभग 102 वर्ष में कभी भी अपने फोटो नहीं खींचने दी । *क्योंकि स्वामी जी का मानना था कि ,लोग भगवान के स्थान पर उनकी पूजा करने लगेंगे*।।
7. सभी सामग्री जैसे कलम ,कपड़े, खड़ाऊ, जूते ,वस्त्र आदि को चिता के समीप जला दिया जाए ,ताकि उन वस्तुओं की कोई पूजा आदि ने कर पाए ।।। जिस स्थान पर अंतिम संस्कार किया है ,वहां कोई स्मारक आदि नहीं बनाया जाए। स्वामी जी का मानना था की अब *पूजा सिर्फ भगवान की ही हो मनुष्यों की नहीं*
8. व्यावसायिक सामग्री दुकान ,कैलेंडर, आदि में जहां विज्ञापन से धनोपाजर्न किया जाता हो, वहां अपना नाम तक छापने को निषेध करता हूं।।।।।।।।।।।
श्रद्धेय स्वामी जी की हस्तलिखित वसीयत की प्रतिलिपि आनंद आश्रम रानी बाजार बीकानेर राजस्थान में संरक्षित है* ।। उनकी वसीयत को स्वामी जी के आदेश पर देहरादून के श्री राजेंद्र कुमार जी धवन ने लिखा है ।और उस पर स्वामी जी के हस्ताक्षर भी है।
स्वामी जी की वसीयत पर साक्षी के तौर पर इन पांच महानुभावों के हस्ताक्षर भी हैं।।
1. सिंहस्थ(सींथल )पीठाधीश्वर श्री क्षमा राम जी महाराज शीतल
2. श्री नवल राम जी महाराज आनंद आश्रम ,रानी बाजार बीकानेर
3. श्री बृज रतन जी डागा ,भीना सर बीकानेर
4. श्री रामनिवास जी महाराज लाडनूं नागौर
5. श्री शिव कृष्ण जी राठी बीकानेर।
*श्री राम जय राम जय जय राम*।।।।।
इलेक्ट्रिक न्यूज़ रिपोर्टर शिंभू सिंह शेखावत राजस्थान
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