पथरी उपचार में उपयोगी है पत्थरचट्टा।
पथरी उपचार में उपयोगी है पत्थरचट्टा।
पत्थरचट्टा एक अद्भुत औषधीय पौधा है जिसका पारंपरिक रूप से औषधी में उपयोग किया जाता है। यह पौधा मेडागास्कर का मूल निवासी है लेकिन अब विभिन्न उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला, एक रसीला पौधा अपने विविध स्वास्थ्य-लाभ गुणों के कारण लोकप्रिय है। इसकी पत्तियों से लेकर तने तक पौधे के हर हिस्से में औषधीय गुण होते है इसे "हज़ारों की माँ" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस रसीले पौधे को इसके अपरिहार्य चिकित्सीय और औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेद में पत्थरचट्टा को एक शक्तिशाली औषधीय जड़ी-बूटी माना जाता है जो कई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में उपयोगी है। पत्थरचट्टा में मूत्रवर्धक, उपचारात्मक, रोगाणुरोधी, सूजनरोधी और एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं जो पाचन समस्याओं, अल्सर, गठिया और मासिक धर्म संबंधी रोगों में लाभदायक माने जाते हैं।
पथरचट्टा एक कठोर पौधा है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपता है। यह अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और मध्यम धूप वाले क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। हालाँकि पथरचट्टा ने विभिन्न वातावरणों के प्रति अपने आप को अनुकूलित कर लिया है और अब यह एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के कुछ हिस्सों में सामान्य तौर पर पाया जाता है। यह संपूर्ण स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेदिक सप्लीमेंट्स के रूप में उपयोगी है। पत्थरचट्टा को कई अन्य सामान्य नामों से जाना जाता है जैसे कि कलंचो पिनाटा, पर्ण बीज, हेमसागर, अस्थिभक्ष, पर्णबीज, पर्णबीज, एयर प्लांट, गुड लक लीफ, हवाईयन एयर प्लांट, लाइफ प्लांट, अमेरिकन लाइफ प्लांट, फ्लॉपर्स, पत्थरचट्टम, पत्थरचूर, पाथेर चाट, पान-फुट्टी आदि। पत्थरचट्टा एल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड, ग्लाइकोसाइड, ट्राइटरपीन, कार्डियोनॉलाइड, बफैडीनोलाइड, लिपिड और स्टेरॉयड जैसे जैवसक्रिय यौगिकों का एक प्रभावशाली स्रोत है । इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और आयरन, कॉपर, जिंक, पोटैशियम, निकल, कैल्शियम, सोडियम, लेड और कैडमियम जैसे खनिज सहित कई अन्य स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाए जाते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में उपयोगी हैं।
श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि पत्थरचट्टा कैंसररोधी, मधुमेह, ऐंटिफंगल, रोगाणुरोधी, सूजनरोधी, प्रतिरक्षा बढ़ाने, घाव भरने, यकृत और गुर्दे रोग में उपयोगी होता है। इसे वैज्ञानिक रूप से ब्रायोफिलम पिनैटम के नाम से जाना जाता है, जो क्रासुलेसी कुल का सदस्य है।पत्थरचट्टा के विभिन्न पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। इसकी पत्तियों का उपयोग अक्सर अनेक बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है, जिनमें श्वसन संबंधी समस्याएं, पाचन संबंधी समस्याएं और त्वचा संबंधी समस्याएं शामिल हैं।पत्थरचट्टा का पौधा घाव भरने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। इसके पत्तों को कुचलकर या उनसे बनी पुल्टिस को घाव, कट या चोट पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं। इस पौधे में कफ निस्सारक गुण होते हैं, जिससे यह खांसी और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन संबंधी समस्याओं के इलाज में बेहद उपयोगी होता है। इसमें सूजनरोधी गुणों का पाया जाना इसे गठिया जैसी बीमारियों में फायदेमंद बनाता है। यदि इसे त्वचा पर लगाया जाए या हर्बल नुस्खों के रूप में उपयोग किया जाए, तो यह सूजन कम करने और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने में उपयोगी सिद्ध होता है। पत्थरचट्टा में विभिन्न जैवसक्रिय यौगिक पाए जाते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने में योगदान देता हैं। इस पौधे का नियमित सेवन कर शरीर को संक्रमणों और बीमारियों से बचाया जा सकता है। इसके पत्तों में शक्तिशाली सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुण होते हैं जो इन्हें अनेक त्वचा संबंधी रोगों को ठीक करने में प्रभावी बनाते हैं। पौधे की पत्तियों को कुचलकर या जेल लगाने से जलन, कटने, कीड़े के काटने और चकत्ते से राहत मिलती है। इसके अलावा, यह पौधा घाव भरने, ऊतक पुनर्जनन और कोशिका वृद्धि को बढ़ावा देने आदि में फायदेमंद होता है जिससे घाव जल्दी भर जाते हैं। पत्थरचट्टा में हाइपोग्लाइसेमिक गुण पाए जाते हैं, जिससे यह मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी होता है। पत्थरचट्टा में उपस्थित एक जैवसक्रिय यौगिक फेनिल एल्काइल ईथर इंसुलिन स्राव को सक्रिय करता है जिससे रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि नियंत्रित रहती है। यह सूजन को कम करता है इसलिए इसे शक्तिशाली सूजनरोधी और दर्दनाशक गुणों के लिए जाना जाता है। इसके तने का अर्क जैवसक्रिय यौगिकों से भरपूर होता है जो दर्द और सूजन को कम करने उपयोगी होता हैं । इस हर्बल अर्क के सेवन से शरीर के दर्द और गठिया के दर्द से राहत मिलती है। यह गुर्दे की पथरी के उपचार में उपयोगी होता हैं। जब गुर्दे की पथरी का जमाव होता हैं जो खनिजों और लवणों के क्रिस्टलीकृत होकर कठोर जमाव का रूप ले लेते हैं। पथरचट्टा में उपस्थित मूत्रवर्धक गुण पाए जाते हैं और यह फेनोलिक्स, फ्लेवोनोइड्स और सैपोनिन का भरपूर स्रोत है जो गुर्दे की पथरी से निपटने और पथरी से छुटकारा दिलाने में उपयोगी होता है। संस्कृत में, पथरचट्टा को पाषाणभेद कहा जाता है, "पाषाण" का अर्थ है पत्थर और "भेद" का अर्थ है तोड़ना। इस प्रकार, इसके मूत्रवर्धक और लिथोट्रिप्टिक गुण गुर्दे में उपस्थित पथरी को तोड़ने में मदद करते हैं। पथरचट्टा में दर्द निवारक गुण होने के कारण मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द को कम करने में उपयोगी होता हैं। इसका अर्क मोच और अन्य चोटों से होने वाले दर्द को भी कम करने में उपयोगी होता है।पत्थरचट्टा के पत्तों का रस निकालकर एक ताज़ा और स्वास्थ्यवर्धक पेय बनाया जा सकता है। इस रस का सेवन सामान्यतः औषधीय गुणों के लिए किया जाता है और इसे पानी में मिलाकर या अन्य फलों के रस में मिलाकर पिया जा सकता है। पत्थरचट्टा के अर्क से बने सिरप को उपयोग किया जाता है। इसके सूजन-रोधी और रोगाणुरोधी गुण इसे चकत्ते, फोड़े और छोटे-मोटे कटने जैसी विभिन्न त्वचा संबंधी बीमारियों के इलाज में प्रभावी बनाते हैं।पत्थरचट्टा अपच, एसिडिटी और अन्य पाचन समस्याओं में लाभदायक होता है। यह यकृत के कार्य और विषहरण में भी सहायक होता है और फैटी लीवर और हल्के यकृत विषाक्तता जैसी स्थितियों में उपयोगी होता है। यह कफ निस्सारक के रूप में कार्य करके बलगम को साफ करके श्वसन संबंधी समस्याओं में मदद करता है। पत्थरचट्टा रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में उपयोगी होता है। यह अपने एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों के कारण प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। तथा कवक व सूक्ष्मजीवों के विकास को रोकता है और सूक्ष्मजीव संक्रमण को रोकने में भी उपयोगी होता है।
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