फिल्मी गानों से सुरों की शाम में गूंजा मुकेश का जादू, सीनियर सिटीज़न्स ने बांधा समा

 फिल्मी गानों से सुरों की शाम में गूंजा मुकेश का जादू, सीनियर सिटीज़न्स ने बांधा समा 




सुनील कुमार मिश्रा ( बद्री ) राजस्थान उदयपुर सुरों की मंडली के संस्थापक मुकेश माधवानी ने बताया की सुरों की गूंज, दिल को छू जाने वाले बोल, और स्क्रीन पर चलते वही नग़मे — ऐसा लगा मानो वक्त थम गया हो और स्व. मुकेश फिर से ज़िंदा हो उठे हों। 


मौका था वरिष्ठ सुरों की मंडली उदयपुर द्वारा आयोजित “एक शाम मुकेश के नाम” कार्यक्रम का, जिसमें शहर के वरिष्ठ सुर साधकों ने पार्श्वगायक मुकेश चंद्र माथुर को याद करते हुए उनके कालजयी गीतों को सुरों की भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी।


कार्यक्रम की सबसे खास बात यह रही कि जैसे ही कोई गायक मंच पर आता, उसी गीत की फिल्मी क्लिपिंग बड़ी स्क्रीन पर चलती — जिससे दर्शकों को न सिर्फ सुनने का आनंद मिला, बल्कि देखने का भी। गायकों को तो मानो खुद मुकेश जी जैसा पार्श्वगायक होने का अहसास हो गया।

इस संगीतमय संध्या का आयोजन मधुश्री ऑडिटोरियम अशोका पैलेसके बैंक्वेट हॉल में किया गया, जिसकी अगुवाई संस्थापक मुकेश माधवानी ने की। उन्होंने क्वीना मेरी, हेमा जोशी, एच काज़ी, प्रो. विमल शर्मा समेत आयोजन से जुड़े सभी वरिष्ठ सदस्यों को बधाई दी और कहा, “यह आयोजन न केवल एक सच्ची श्रद्धांजलि है, बल्कि एक मिसाल है कि सुर और भावना उम्र की मोहताज नहीं होती।”

मुख्य अतिथि रहीं माधुरी शर्मा ,जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में अनिता गुप्ता उपस्थित रहीं। मंच संचालन क्वीना मेरी और हेमा जोशी ने पूरी गरिमा और गर्मजोशी से किया। दोनों ने अतिथियों का पारंपरिक ऊपरण पहनाकर स्वागत किया और स्मृति चिन्ह भेंट किए।


माधुरी शर्मा ने अपनी भावुक उपस्थिति में कहा, “मुकेश जी हमारे जैसे कलाकारों के लिए प्रेरणा हैं। आज इस मंच पर आकर मैं खुद को सम्मानित महसूस कर रही हूँ।” उन्होंने ‘कसम की कसम है’ गीत गाकर खूब तालियां बटोरीं।

28 सुरमयी प्रस्तुतियाँ, हर गीत बना यादगार


प्रो. विमल शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती की तस्वीर पर दीप प्रज्वलन, माल्यार्पण व वंदना से हुई, इसके बाद मंच पर एक के बाद एक गीतों की सुरमयी बौछार हुई।


कुछ प्रमुख प्रस्तुतियाँ:

अनिता गुप्ता: “आंसू भरी है ये जीवन की राहें”

लक्ष्मी आसवानी: “चांद की दीवार न तोड़ी”

राजकुमार बापना: “कभी-कभी मेरे दिल में”

 • एच. क़ाज़ी "ज़ुबां पे दर्द भरी  दास्तां चली आई"

हरीश बी भाटिया: “मेरे टूटे हुए दिल से”

अरुण चौबीसा: “वफ़ा जिनसे की बेवफ़ा हो गए”

ललित कुमार जैन: “क्या खूब लगती हो”

प्रहलाद बालचंदानी: “मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी”

क्वीना मेरी: “चांद आहें भरेगा”

हेमा जोशी: “दीवानों से ये मत पूछो”

प्रो. विमल शर्मा: “चंदन सा बदन, चंचल चितवन"

अम्बालाल साहू: “सुहानी चांदनी रातें”

हिम्मत सिंह सिसोदिया: "मैं तो दीवाना दीवाना दीवाना"

हर्षविंदा दीक्षित - "सारंगा तेरी याद में"

 दयाराम सुथार :  "जाने कहां गए वो दिन"

के के त्रिपाठी : "जिक्र होता है जब कयामत का और कई अन्य गायक-गायिकाओं ने मंच पर अपनी मधुर आवाज़ों से समां बांधा।

मुकेश के गीतों में बसती है आत्मा

कार्यक्रम इस बात का प्रतीक बन गया कि संगीत सीमाओं से परे है — उम्र, समय और पीढ़ियों की भी। वरिष्ठ कलाकारों की भावनात्मक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया और कहीं न कहीं हर श्रोता ने मुकेश जी की आत्मा को महसूस किया।

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