थायराइड उपचार में उपयोगी है कचनार।

 थायराइड उपचार में उपयोगी है कचनार।




 कचनार एक पर्णपाती वृक्ष है, जो भारत, श्रीलंका और चीन जैसे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का मूल निवासी पादप है। यह आम तौर पर मध्यम आकार का पौधा होता है जो 10 से 12 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है इसकी छाल मोटी और तने लंबे होते हैं। इसकी शाखाओं पर 10 से 20 सेंटीमीटर तक लंबे आकार के पत्ते लगे होते हैं जो काफी चौड़े होते है जिनके आधार और सिरे पर दो-दो गोल लोब होते हैं। कचनार के फूल शुरू में भरी हुई कलियों के रूप में होते हैं और खिलने पर, चटक गुलाबी और चमकदार सफेद रंग के आकर्षक फूल बन जाते हैं इनके फूलों में पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं। ये फूल, विकसित होने पर फलों में बदल जाते हैं जो मूल रूप से बीजकोष युक्त होते हैं जिनमें असंख्य बीज उपस्थित होते हैं। कचनार के पेड़ के सभी भाग अर्थात् जड़ें, छाल, तना, पत्तियाँ, फूल और बीज सभी लाभकारी पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए आश्चर्यजनक गुण प्रदान करते हैं।

श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय, लक्ष्मणगढ़ के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि कचनार का वैज्ञानिक नाम बौहिनिया वेरिएगाटा है। जो सिसलपिनिएसी कुल का सदस्य है इसे हिंदी और बंगाली जैसी क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं में कचनार ओर अंग्रेज़ी में माउंटेन एबोनी, बटरफ्लाई ऐश, कैमल्स फ़ुट आदि नामो से जाना जाता है। आयुर्वेद में कचनार को संस्कृत में "रक्त कंचन" कहा जाता है और इसे "कांचनार", "गंडारी", "युगपत्रक" सहित कई अन्य प्राचीन नामों से जाना जाता है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे समय-परीक्षित ग्रंथों में इस चमत्कारी पौधे को "वामनोपग" कहा गया है, जिसका अर्थ है उल्टी या शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में प्रयुक्त, इसके अलावा इसे "कषायवर्ग" भी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि इसका स्वाद कसैला होता है।

प्रकृति में कड़वी होने के कारण, कचनार में कषाय रस यानी कसैला स्वाद होता है। यह अत्यंत उपयोगी जड़ी-बूटी अपने लघु गुण के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह शरीर में आसानी से अवशोषित हो जाती है और इसमें रूक्ष गुण भी होता है। अपने आंतरिक शीतल वीर्य यानी शीतलता प्रदान करने वाले गुण के कारण, कचनार "गंडमाला नाशन" के रूप में एक प्रभाव या विशेष उपचारात्मक गुण भी दर्शाता है, जिसका अर्थ है कि यह थायरॉइड की सभी समस्याओं को प्रभावी ढंग से ठीक करता है। कचनार बढ़े हुए कफ और पित्त दोषों को संतुलित करने, गंभीर लक्षणों को शांत करने और मानव शरीर में वात, पित्त और कफ के त्रिदोषिक संतुलन को स्थापित करने में भी लाभकारी है।

डॉ. कांटिया ने बताया कि कचनार पारंपरिक रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता हैं। यह लगभग सभी स्वास्थ्य समस्याओं के प्राकृतिक समाधान के लिए आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पादों के रूप में उपयोग किया जाता है। यह थायराइड की समस्याओं, पीसीओएस, जोड़ों के दर्द, हार्मोनल असंतुलन और रक्त की अशुद्धियों को ठीक करने के लिए प्रसिद्ध है। यह विटामिन सी और आवश्यक सूक्ष्म खनिजों से भरपूर, शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट के अलावा, कचनार बवासीर, अपच, खांसी से लेकर कैंसर की प्रगति को धीमा करने और मधुमेह में रक्त शर्करा को नियंत्रित करने जैसी अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण के लिए रामबाण औषधि है। कचनार विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम , फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन, ज़िंक जैसे ज़रूरी खनिजों के साथ-साथ शुगर कम करने वाले कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशे, प्रोटीन और स्वास्थ्यवर्धक असंतृप्त वसा जैसे ज़रूरी पोषक तत्वों से भरपूर होता है। भारत के कई इलाकों में, कचनार की कलियों को पकाकर, भूनकर, प्याज़ और मसालों के साथ परोसे जाने वाले पारंपरिक भोजन के रूप में, करी और अचार बनाए जाते हैं, जिन्हें बाद में नियमित आहार के हिस्से के रूप में सब्ज़ी या साइड डिश के रूप में खाया जाता है यह अनेक महत्वपूर्ण विटामिन, खनिज, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा से भरपूर होने के साथ साथ इसमें बायोएक्टिव फाइटोन्यूट्रिएंट्स की एक प्रभावशाली मात्रा भी पायी जाती है, जिसमें सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, गठियारोधी, एंटीहाइपरग्लाइसेमिक और साइटोटॉक्सिक यानी कैंसर कम करने वाले गुण होते हैं। ये गुणकारी तत्व जैसे हाइपोथायरायडिज्म, अनियमित मासिक धर्म और एमेनोरिया, मधुमेह में उच्च रक्त शर्करा स्तर को कम करने, मुँह के छाले  और पाचन संबंधी जटिलताओं सहित कई विकारों की रोकथाम और उपचार में बहुत उपयोगी हैं। यह हाइपोथायरायडिज्म में उपयोगी होता है हाइपोथायरायडिज्म तब होता है जब थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में थायरॉयड हार्मोन का संश्लेषण नहीं कर पाती है थायरॉयड हार्मोनl शरीर में चयापचय और प्रतिरक्षा को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। वात, पित्त और कफ, इन तीनों दोषों में असंतुलन के कारण अधिक वजन, मोटापे की समस्या और पाचन तंत्र में रुकावट आदि के कारण थायरॉयड की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं इसलिए कचनार का काढ़ा और चूर्ण लेने से हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में सहायता मिलती है। कचनार के मिश्रण शरीर में खाद्य पदार्थों के अवशोषण को काफी आसान बनाते हैं साथ ही तीनों दोषों को नियंत्रित करते हैं, चयापचय में सुधार करते हैं और वजन घटाने में सहायक होते हैं। कचनार में प्रचुर मात्रा में एंटी-डायबिटिक और एंटीहाइपरग्लाइसेमिक पादप यौगिक उपस्थित होते हैं। जो शरीर में इंसुलिन तंत्र को नियंत्रित करते हैं और बढ़ते रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं। इसी कारण कचनार मधुमेह के  लक्षणों को कम करने और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने में उपयोगी होता है। कचनार अग्नि-सक्रिय करने वाले पदार्थों युक्त है यानी इसमें ऐसे यौगिक होते है जो पाचक रसों को उत्तेजित करते हैं। चूँकि अत्यधिक अपच और कब्ज मलाशय की नसों में सूजन पैदा करते हैं जिसके कारण मल त्याग के दौरान खुजली, दर्द और रक्तस्राव होता है अतः कचनार मलाशय में दर्द और सूजन से राहत देकर बवासीर या अर्श की समस्या को रोकता है। महिलाओं में मासिक धर्म का अनियमित होना या मासिक धर्म का पूरी तरह से न आना रजोरोध कहलाता है जो पित्त दोष के असंतुलन और शरीर के अत्यधिक गर्म होने के कारण होता है अतः कचनार के काढ़े के सेवन से इसे कम किया जा सकता है। क्योंकि कचनार में शीतलता या ठंडक के गुण होते हैं, साथ ही इसमें पित्त दोष को नियंत्रित करने की अदभुत क्षमता भी पाई जाती है जिससे मासिक धर्म चक्र समय पर और सामान्य रहता है। वात दोष के बिगड़ने के कारण बार-बार ढीले मल त्याग के साथ-साथ थकान और निर्जलीकरण जैसे असुविधाजनक लक्षण उत्पन होते हैं। अतः वात-संतुलन गुणों से भरपूर, कचनार दस्त को सफलतापूर्वक ठीक करता है और पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है साथ ही आंत्र एवं मूत्राशय के सामान्य कार्यों को बनाए रखता है।

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