औषधीय गुणों का भंडार है पीपल का वृक्ष।
औषधीय गुणों का भंडार है पीपल का वृक्ष।
पीपल के पेड़ को भारतीय उपमहाद्वीप में पौराणिक 'जीवन का पेड़' या 'विश्व वृक्ष' माना जाता है। यह बोधि वृक्ष के रूप में जाने जाने वाला अंजीर कुल का पेड़ है। लैटिन में 'फाइकस' शब्द का अर्थ है 'अंजीर', पेड़ का फल, और 'रिलिजियोसा' शब्द का अर्थ है 'धर्म', से है क्योंकि यह बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दोनों में पवित्र है । इसी कारण से इसे 'पवित्र वृक्ष के रूप मे जाना जाता है। यह एक विशाल पेड़ होता है जिसे अक्सर पवित्र स्थानों और मंदिरों के पास लगाया जाता है।
श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि इसका वैज्ञानिक नाम फाइकस रिलिजियोसा है, जो मोरेसी कुल से संबंधित है। परंपरागत रूप से पीपल के पेड़ के पत्तों का रस खांसी, अस्थमा, दस्त, कान दर्द, दांत दर्द, हेमट्यूरिया (मूत्र में रक्त), माइग्रेन, खुजली, आंखों की परेशानी और गैस्ट्रिक समस्याओं के निवारण के लिए सहायक होता है। पीपल के पेड़ की छाल लकवा, सूजाक, हड्डियों के फ्रैक्चर, दस्त और मधुमेह जैसे रोगों के उपचार में उपयोगी है। इसका उपयोग स्व-चिकित्सा के लिए बिना एक्सपर्ट की सलाह के नहीं किया जाना चाहिए। गुड़ और नमक के साथ पीपल की छाल का काढ़ा पीने से गंभीर असहनीय पेट दर्द से राहत मिलती है। इस पेड़ के अंकुरों से तैयार किया गया एनीमा (पेट को साफ करने या खाली करने के लिए उपयोग किया जाने वाला द्रव), दूध में पकाया और फ़िल्टर किया जाता है जो पेचिश (गंभीर दस्त) में मदद करता है। बार-बार होने वाली और तेज़ उल्टी से राहत पाने के लिए इस पेड़ की भीतरी छाल का उपयोग किया जाता है। इसकी छाल को छाया में सुखाकर बारीक पीस लिया जाता है। इसके बाद इसे शहद के साथ मिलाकर पीने से कफ के कारण होने वाली उल्टी में आराम मिलता है। पीपल की जली हुई छाल को ठंडक के लिए पानी में डुबोया जाता है और पारंपरिक रूप से अनियंत्रित प्यास को शांत करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। पीपल के पत्तों में रेचक गुण होते हैं (मल त्याग को आसान बनाते हैं)। इसके पत्तों का कच्चा रस या सूखे पत्तों का चूर्ण पानी में मिलाकर लिया जाता है। पीपल के पेड़ की पत्तियाँ हृदय रोगों के लिए उपयोगी होती हैं। पत्तियों को पानी में भिगोकर आसुत जल में गर्म करके शुद्ध किया जाता है और संग्रहीत किया जाता है। यह हृदय की कमज़ोरी और घबराहट (ऐसा महसूस होना कि दिल तेज़ी से धड़क रहा है) को दूर करने में मदद करता है। पीपल का पेड़ अपनी शीतलता के कारण बुखार में कारगर होता है। यह गठिया रोग (जोड़ों की सूजन और दर्द) में भी मददगार होता है। पीपल के पेड़ की छाल को पानी में पकाकर, छानकर, शहद के साथ आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह पर उनकी देखरेख में लिया जाता है। पीपल के सूखे फल का पाउडर पानी के साथ लेने से अस्थमा में लाभ मिलता है। यह चूर्ण शहद के साथ लेने से खांसी से राहत मिलती है। ऐसा माना जाता है कि इससे आवाज़ भी सुरीली और मधुर हो जाती है। मक्खन के साथ इसका पाउडर बच्चों में काली खांसी से निपटने में मदद करता है । पीपल की छाल का काढ़ा (उबालने या गर्म करने के बाद प्राप्त गाढ़ा घोल) खुजली या एक्जिमा (एक ऐसी स्थिति जिसमें त्वचा के पैच सूज जाते हैं और खुरदुरे हो जाते हैं) से निपटने में उपयोगी होता है । यह पेस्ट (छाल और पानी) त्वचा पर होने वाले फुंसियों से निपटने में मदद करता है।
घावों के लिए तिल के तेल के साथ छाल के पाउडर का भी उपयोग किया जा सकता है। मुंह की समस्या के लिए छाल का ठंडा अर्क या काढ़ा मसूड़ों को मजबूत करने में सहायक होता है और दांत दर्द में भी आराम पहुंचाता है। इसकी छाल और कोमल पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर बनाया गया पेस्ट बढ़ते बच्चों के मुंह के छालों के लिए उपयोगी होता है। पीपल के कोमल पत्ते कान से संबंधी समस्याओं को दूर में उपयोगी होता हैं। पीपल के कुछ कोमल पत्ते लेंकर उन्हें पीसकर तिल के तेल में धीमी आंच पर पकाएँ। अब इस तेल की थोड़ी सी मात्रा कान में डालने पर दर्द दूर होता है।
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