चर्म रोगों में लाभदायक हैं शिरीष।
चर्म रोगों में लाभदायक हैं शिरीष।
शिरीष मध्यम आकार का सघन छायादार पेड़ है। इसकी छाल, फूल, बीज, जड़, पत्ते आदि हर अंग का उपयोग औषधि के लिए किया जाता है। शिरीष का वृक्ष बहुत तेजी से बढ़ता है। इसके पत्ते पतझड़ में गिर जाते हैं। इसके कुछ पेड़ छोटे तो कुछ काफी बड़े होते हैं। प्रकृति में इसकी कई प्रजातियां पाई जाती है। उदाहरण: लाल शिरीष, काला शिरीष, सफेद शिरीष। सफेद शिरीष का वृक्ष 16 से 20 मीटर तक ऊंचा होता है। यह वृक्ष बहुत ही घना होता है। इसके फूल सफेद व पीला रंग के और काफी सुंगधित होते हैं। इसका फल 10 से 30 सेंटीमीटर लंबा, 2 से 4। 5 सेंटमीटर तक चौड़ा होता है। यह फल नुकीला और पतला होता है। कच्ची अवस्था में यह फल हरे रंग का होता है। पकने पर भूरे रंग का हो जाता है। यह फल चिकना और चमकीला होता है।
श्री भगवानदास तोदी महाविद्यालय के वनस्पति विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र कांटिया ने बताया कि सफेद शिरीष माइमोसेसी (Mimosaceae) कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम ऐल्बिजिया लैबैक (Albizia lebbeck (Linn.) Benth) है।
हिंदी में इसे सिरस, सिरिस, अंग्रेजी में लैबैक ट्री, ईस्ट इण्डियन वालनट तथा संस्कृत में शिरीष, मण्डिल, शुकपुष्प, शुकतरु, मृदुपुष्प, विषहन्ता, शुकप्रिय आदि नामो से जाना जाता है। माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए शिरीष रामवाण औषधि है। इस रोग के मरीजों को शिरीष की जड़ और फल के रस के 1 से 2 बूंद को नाक में डालने से दर्द कम हो जाता है। यह आंखों के लिए फायदेमंद होता है यदि शिरीष के पत्तों के रस को काजल की तरह आंखों में लगाने से आंख संबंधी परेशानियों ठीक हो जाती है। शिरीष के पत्तों का काढ़ा पिलाने से और इसके रस को आँखों पर लगाने से रतौंधी नामक रोग में बहुत लाभ मिलता है। इसके लिए शिरीष के पत्तों के रस में कपड़ा भिगोकर सुखा लें। कपडे को तीन बार भिगोएं और सुखाएं। इस कपड़े की बत्ती बनाकर चमेली के तेल में जलाकर काजल बना लें। अब इस काजल के उपयोग से आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके अलावा, शिरीष के पत्तों को आंख में लगाने से आंखों की सूजन में भी लाभ होता है।
कानों के दर्द में भी शिरीष का उपयोग लाभदायक होता है। यदि शिरीष के पत्ते और आम के पत्तों के रस को मिलाकर गुनगुना करके इसकी 1 से 2 बूंद कान में टपकाने से कान दर्द में राहत मिलती हैं। दांतों के रोग में भी शिरीष फायदेमंद होता है। यदि शिरीष की जड़ से बने काढ़ा से कुल्ला किया जाय तो दांत के रोग दूर होते हैं इसकी जड़ के चूर्ण से मंजन करने से भी दांत दर्द में फायदा मिलता है। इसके काढ़े या मंजन से दांतों में मजबूती भी आती हैं।
शिरीष के गोंद और काली मिर्च को मिलाकर पीसकर मंजन बनाकर उसका उपयोग करने से भी दांतों के दर्द में राहत मिलती हैं। खांसी की बीमारी में भी शिरीष लाभदायक होता है। पीले शिरीष के पत्तों को घी में भूनकर दिन में तीन बार 1-1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खांसी में राहत मिलती है। इसका सांसों के रोग में भी उपयोग लाभदायक होता है। यदि श्वास रोग कफ और पित्त के असंतुलन के कारण हो तो शिरीष के फूल का प्रयोग लाभदायक होता है। ऐसे रोगी को शिरीष के फूल के पांच मिलीलीटर रस में पांच सौ मिलीग्राम पिप्पली चूर्ण और शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता हैं। शिरीष, केला तथा कुन्द के फूल और पिप्पली के चूर्ण को मिलाकर चावल को धोने से बचे पानी के साथ चूर्ण को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर पीने से सांस संबधी परेशानियां जल्द ही दूर हो जाती हैं। यह पेचिश में भी उपयोगी होता है। इसके बीज के चूर्ण दिन में तीन बार लेने से पेचिश में लाभ मिलता है। पेट के रोग को ठीक करने के लिए भी शिरीष का सेवन फायदेमंद होता है शिरीष के पांच मिलीलीटर रस में इतनी ही मात्रा में कट्भी का रस मिला लें। इसके बाद इस मिश्रण में शहद मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े खत्तम होते हैं। शिरीष की छाल का काढ़ा बनाकर दस से बीस मिलीलीटर मात्रा में मिलकर पीने से जलोदर रोग में लाभ होता है। शिरीष के प्रयोग से बवासीर का इलाज भी संभव है। छः ग्राम शिरीष के बीज और तीन ग्राम कलिहारी की जड़ को पानी के साथ पीसकर लेप करने से बवासीर में लाभ होता है। इसके तेल का लेप करने से भी बवासीर में लाभ मिलता है। शिरीष के बीज, कूठ, आक का दूध, पीपल को समान मात्रा में लेंकर सबको पीस लें। उसके बाद बवासीर पर लेप किया जाय तो वह तुरंत ठीक होती है। कलिहारी की जड़, शिरीष के बीज, दंती मूल और चीता (चित्रक) को समान मात्रा में लेकर पीसकर लेप तैयार कर ले। यह लेप बवासीर में अत्यन्त लाभप्रद होता है। इसी प्रकार मुर्गे की बीट, गुंजा (चौंटली), हल्दी, पीपल और शिरीष के बीजो को समान भाग में लेकर इसे पानी के साथ पीसकर लेप बनाकर बवासीर पर उपयोग किया जाए तो यह ठीक होता है। इसका उपयोग सिफलिस उपचार में भी उपयोगी होता है। सिफलिस यौन संक्रमण से जुडी एक बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को शिरीष के पत्तों की राख में घी या तेल मिलाकर लगाने से लाभ मिलता है। मूत्र रोग (पेशाब में दर्द और जलन) में भी यह लाभदायक होता है। शिरीष के दस ग्राम पत्तों को पानी के साथ पीस कर छानकर इसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में दर्द और जलन में लाभ मिलता है। शिरीष की बीजो के तेल को पांच से दस बूंद लेकर सौ मिलीलीटर लस्सी में डालकर पीने से पेशाब के दौरान होने वाले दर्द और जलन में लाभ मिलता है। यह अंडकोष सूजन को भी दूर करता है। अंडकोषों में सूजन आने पर शिरीष की छाल को पीसकर अंडकोषों पर लेप करने से सूजन शीघ्र मिटती है।वीर्य विकार में भी शिरीष का प्रयोग लाभदायक होता है। शिरीष बीजो के दो ग्राम चूर्ण में चार ग्राम शक्कर मिलाकर इसे रोजाना गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वीर्य विकार दूर होते है और वीर्य गाढ़ा होता है।
डॉ. कांटिया ने बताया कि शिरीष चर्म रोग में भी फायदेमंद होता है इसका तेल लगाने से कुष्ठ आदि चर्म रोगों का उपचार संभव होता है। इससे घाव व फोड़े-फुंसी शीघ्र ठीक होते हैं। सफेद शिरीष के छाल के ठंडे गोंद को घाव, खुजली और अन्य चर्म रोगों में त्वचा पर लोशन की तरह लगाने से लाभ मिलता है। शिरीष के पत्तों को पीसकर फोड़े-फुंसियों और सूजन के ऊपर लगाने से लाभ होता है। शिरीष, मुलेठी, कदम्ब, चंदन, इलायची, जटामांसी, हल्दी, दारुहल्दी, कूठ तथा सुंगधबाला को पीसकर इनमें घी मिलाकर लेप करने से खुजली, कुष्ठ, आदि रोग का शीघ्र निवारण होता है। सूजन को ठीक करने के लिए शिरीष फायदेमंद होता है। पित्त असंतुलन के कारण आई किसी भी तरह की सूजन की स्थिति में शिरीष के फूलों को पीसकर सूजन पर लगाने से पित्त नियंत्रित होने लगता है और सूजन दूर होती है।
ट्यूमर के इलाज में कारगर है शिरीष का प्रयोग क्यूंकि किसी भी तरह के ट्यूमर और गांठ में सिरस के बीज को पीसकर इसका लेप लगाने से लाभ होता है। चाहे जैसी गाठें हो, शिरीष के पत्तों को पीसकर उन पर आधा-आधा घंटे बाद बदल कर बांधने से यह फूट जाती है।
शिरीष तथा करंज को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है। अल्सर में भी शिरीष इसका उपयोग अल्सर होने की स्थिति में घावों से खून आने लगता है। ऐसे में शिरीष (Shireesh)की छाल से बने काढ़े के प्रयोग से फायदा मिलता है। इस काढ़े से घाव को धोने से घाव शुद्ध होकर भर जाता है। शिरीष के पत्तों की राख का लेप लगाने से भी घाव जल्द ही भर जाता है। शिरीष की छाल, रसांजन और हरड़ के चूर्ण को मिलाकर इसे घाव पर छिड़कने से या शहद मिलाकर घाव पर लगाने से तुरंत लाभ मिलता है। शिरीष (Shireesh) की छाल, तगर, जटामांसी, हल्दी और कमल को समान मात्रा में लेकर इसे ठंडे पानी में महीन पीसकर लेप करने से हर तरह के फफोले (विस्फोट) नष्ट हो जाते हैं।
शिरीष, गूलर तथा जामुन को पीसकर लेप करने से फफोले में लाभ होता है। शिरीष की जड़, मंजिष्ठा, चव्य, आंवला, मुलेठी और चमेली की पत्ती को बराबर मात्रा में पीसकर इसमें शहद मिला कर फफोले पर लेप करने से राहत मिलती है।इसके अलावा, शिरीष, खस, नागकेशर और हिंस्रा बराबर मात्रा में मिला लें। इसको पीसकर खुजली और फफोले पर लेप करने से तेज गति से लाभ होता है। शिरीष की छाल के महीन चूर्ण को सौ बार भिगोए हुए घी (शातधौत घृत) में मिलाकर लेप करने से दाद-खाज इत्यादि चर्म रोगों में लाभ होता है। कफ असंतुलन के कारण होने वाली दाद-खाज-खुजली में त्रिफला, मुलेठी, विदारीकंद और शिरीष के फूल को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर इसे पीसकर लेप करने से लाभ होता है। आरग्वध की पत्ती, श्लेष्मातक की छाल, शिरीष का फूल और मकोय का चूर्ण या पेस्ट बनाकर इसे प्रभावित स्थान पर लेप करने से भी सभी प्रकार की खुजली में लाभ होता है। शिरीष के पांच ग्राम पत्ते और दो ग्राम काली मिर्च लेकर इन दोनों को मिलाकर पीसकर इस मिश्रित चूर्ण का 40 दिन तक सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है। शिरीष की छाल को पीसकर कुष्ठ प्रभावित अंग पर लेप करने से कुष्ठ रोग दूर होता है। शिरीष शारीरिक कमजोरी दूर करने में लाभदायक है जैसे शिरीष की छाल से बने चूर्ण की एक से तीन ग्राम मात्रा देसी घी के साथ मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से लगातार ताकत बढ़ती है। इसके प्रयोग से खून साफ होता है। शिरीष के बीज और काली मिर्च को समान मात्रा में लेकर इसे बकरी के मूत्र के साथ पीसकर आंख में लगाने से बेहोशी की स्थिति में लाभ होता है। बेहोशी शीघ्र दूर होती है। शिरीष की बीज, मुलेठी, हींग, लहसुन, सोंठ, वच और कूठ को समान भाग में लेकर इन सबको बकरी के मूत्र में घोंटकर काजल की तरह लगााने से उन्माद (मैनिया) रोग में लाभ होता है। शिरीष के बीज और करंज के बीजों को पीसकर इसे माथे में लेप करने से, उन्माद, मिरगी और नेत्र रोगों में आराम मिलता है।
जहर (विष) के असर को दूर करने में शिरीष की छाल, इसकी जड़ की छाल, बीज तथा फूलों से बने चूर्ण की दो से चार ग्राम मात्रा को गोमूत्र के साथ दिन में तीन बार पिलाने से सब प्रकार के विष में लाभ होता है। शिरीष की जड़, छाल, पत्ती, फूल और बीजों को गोमूत्र में पीसकर लेप करने से विष के कारण होने वाली जलन आदि प्रभावों का खात्मा होते है। इसके अलावा, शिरीष के फूलों को पीसकर इसे विषैले जीवों द्वारा काटे गए स्थान पर लेप करने से लाभ मिलता है। जैसे मेढ़क का विष उतारने के लिए शिरीष के बीजों को थूहर के साथ दूध में पीसकर इसे लेप करने से मेढ़क के काटने का विष उतर जाता है।
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