गंगा दशहरा - गंगा दशमी 05 जून गुरुवार को श्रेयस्कर है। पंडित कौशल दत्त शर्मा

 .      गंगा दशहरा -  गंगा दशमी

05 जून गुरुवार को श्रेयस्कर है।

               पंडित कौशल दत्त शर्मा 


               नीमकाथाना राजस्थान 

धरती पर गंगा अवतरण की तिथि है गंगा दशमी।

दश प्रकार के पापों का हरण होता है गंगा दशमी के दिन तीर्थजल से स्नान करने पर। 

इसीलिए कहते हैं गंगा दशमी को दश-हरा।

भगवान श्री राम इसी दिन ने सेतुबंध पर ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम् की स्थापना की थी। 

गंगा दशहरा के दिन स्नान दान पुण्य का विशेष महत्व है।

गंगा मैया की पूजा या अन्य तीर्थ स्थलों पर पूजा करने का है विशेष महत्व।

शिव पूजा और पितरों के तर्पण आदि विशेष फलदाई होते हैं।

शुभकार्यों के लिए स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त भी है।

इस बार 05 जून गुरुवार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को है गंगा दशहरा।-

*ज्येष्ठशुक्लदशम्यां गङ्गावतार:। इयं दशहरासंज्ञिका।*

ज्येष्ठ शुक्ला दशमी मां गंगा के अवतरण और सेतुबंध रामेश्वरम् महादेव की स्थापना के लिए प्रसिद्ध है। गंगा दशहरा इस वर्ष 05 जून 2025 गुरुवार को हस्त नक्षत्र में आ रहा है। 


हम सबको इस महान पावन पर्व पर प्रातःकाल स्नान करते समय गंगा मैया का ध्यान कर प्रार्थना करनी चाहिए कि मैया!!  मेरे द्वारा नित्य प्रति किए जा रहे दश प्रकार के ज्ञात अज्ञात विशेष पापों का हरण करो। ऐसी आर्त प्रार्थना स्नान करते हुए कलिकाल कल्मष हारिणी पतित पावनी मां गंगा से करनी चाहिए।

मां गंगा इसी दिन मंगलवार हस्त नक्षत्र में ही स्वर्गलोक से मृत्युलोक में पधारी थीं पापियों के पाप हरने के लिए।

*ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्याम्।*

*हस्ते शैलान्निरगमदियं जाह्नवी मर्त्यलोकम्।।*


इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन करने से मनुष्य के दश प्रकार के पापों का नाश होता है और अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इसे दशहरा कहते है।-

*पापान्यस्यां हरति च तिथौ सा दशेत्याहुरार्या:।*

*पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधायुतस्य।।*


और भी कहा है कि गंगा दशमी के दिन हस्त नक्षत्र हो तो स्नान दान का विशेष महत्व है। जैसा कि ज्ञात है इस बार गंगा दशमी के दिन हस्त नक्षत्र ही है...

*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्त संयुता।*

*हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता:।।*


प्रश्न पैदा होता है गंगा-स्नान, दर्शन, स्पर्श, पूजन और स्मरण मात्र से कौनसे दश पापों से मुक्ति मिलती है। कुछ आचार्य दश जन्मों के दशविध पाप हरने से इस गंगा दशहरा को जोड़ते हैं।

अब हम दश प्रकार के पापों को जानते हैं। चार वाचिक, तीन कायिक और तीन मानसिक पाप कहे हैं-


चतुर्विध वाचिक पाप-

*पारुष्यमनृतञ्चैव पैशुन्यं चापि सर्वत:।*

*असम्बद्धप्रलापञ्च वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्।।*


त्रिविध कायिक पाप-

*अदत्तानामुपादानं हिंसा चैवाविधानत:।*

*परदारोपसेवा च कायिकं त्रिविधम्मतम्।।* 


त्रिविध मानसिक पाप-

*परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम्।*

*वितथाभिनिवेशश्च मानसं त्रिविधं स्मृतम्।।*

शास्त्रों में इस प्रकार दश पाप कहे गये हैं।


इस दिन किसी भी नदी में स्नान कर पित्रीश्वरों के निमित्त श्रद्धाभाव से किया तर्पण आदि कर्म महापातकों का नाश करता है।-

*यां काञ्चित् सरितं प्राप्य दद्यादर्घ्यतिलोदकम्।*

*मुच्यते दशभि: पापै: स महापातकोपमै:।।*


संयोग से जब कभी ज्येष्ठ का महिना मलमास-अधिकमास आ जावे तो उसमें गंगादशमी को स्नानादि का और भी अधिक महत्त्व हो जाता है। ऐसी स्थिति में मलमास के शुक्ल पक्ष में ही दशहरा मनाना चाहिए। क्योंकि मलमास में ही हस्तनक्षत्रादि दश प्रकार के योग सम्भव है शुद्धमास में नहीं। यह पर्व कलियुग में ही नहीं चारों युगों में शुभोत्कर्षी कहा गया है। साथ ही यह दशमी "संवत्सरमुखी" भी कही गयी है।

*ज्येष्ठे मलमासे सति  तत्रैव  दशहरा कार्या न तु शुद्धे।।*

*दशहरा: शुभोत्कर्षाश्चतुर्ष्वपि युगादिषु।।* 

और भी-

*ज्येष्ठस्य शुक्लदशमी संवत्सरमुखी स्मृता।।*


दश प्रकार के वारादि के विशेष शुभ संयोग में इसी दिन सेतुबंध रामेश्वरम् स्थापना हुई थी। इसलिए गंगा दशमी के दिन रामेश्वरम् दर्शन का भी महद्पुण्य है। शास्त्रों में दश वारादि के विशेष संजोग में भगवान आशुतोष - देवों के देव महादेव ने लिङ्गरूप धारण किया था। जीवन के पर्याय - रोम रोम में बसने वाले राम ने सर्वोत्कृष्ट शिवलिंग "रामेश्वरम्" की स्थापना भी इसी दिन की थी।-

*दशयोगे सेतुमध्ये लिङ्गरूपधरं हरम्‌।।*

*रामो वै स्थापयामास शिवलिङ्गमनुत्तमम्।।*


प्रश्न है दश योग कौनसे हैं। गंगा दशहरा के दिन संयोग से दशों योग में से अधिकतम योग मिल जाएं तो क्या कहना। अधिकस्य अधिकं फलम्।

दशविध संयोग-

*ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशम्यां बुधहस्तयो:।*

*व्यतीपाते गरानन्दे कन्याचन्द्रे वृषेरवौ।।*

दश संयोग-

अर्थात् १. ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष २. दशमी तिथि ३. बुधवार विशेष- अत्र बुधभौमयो: कल्पभेदेन व्यवस्था। कतिपय विद्वान् मंगलवार तो कुछ विद्वान् बुधवार गंगा दशहरा शुभ मानते हैं जो कल्प भेद से है। ४. हस्त नक्षत्र ५. हस्त नक्षत्र ६. व्यतिपात योग ७. गर करण ८. आनन्द योग - बुधवार के दिन हस्त नक्षत्र हो तो आनंद योग बनता है जो आनन्दादि 27 योगों में सबसे पहला योग होता है। ये योग वार और नक्षत्र के संयोग से बनते हैं। ९. कन्या राशि का चन्द्रमा और १०. वृषभ राशि का सूर्य। 


गंगा दशमी के दिन इन दश योगों में जितने अधिक योगों का संयोग हो सके उतना ही अधिक पापों का विनाशक है गंगा दशहरा।


*इस बार 05 जून गुरुवार को ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को गंगा दशहरा के दिन हस्त नक्षत्र, दिन में व्यतिपात और गर करण, कन्या राशि का चन्द्रमा और वृष राशि का सूर्य है। दश संयोगों में से छह का संयोग बैठ रहा है इस बार। 

शास्त्रों में तिथि की प्रधानता ही ग्राह्य है नक्षत्र की नहीं। और नक्षत्र का संयोग मिल रहा हो तो क्या कहने।-

*तिथि: शरीरं देवस्य तिथौ नक्षत्रमाश्रितम्।*

*तस्मात्तिथिं प्रशंसन्ति नक्षत्रं न तिथिं बिना।।*


कहते हैं इस दिन काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान, दशाश्वमेध शिवलिंगदर्शन, गंगा पूजन, दान-पुण्य का विशेष महत्व है और रात्रि जागरण का अखण्ड पुण्य कहा है।

वैसे कहीं भी रहकर शुद्ध भाव से इस दिन गंगा मैया की प्रसन्नता के लिए स्नान ध्यान जप पूजा स्तोत्र पाठ होम दानादि करें ‌या करावें तो सभी महाकष्टों महापातकों की भयावहता दूर होती है। जप के लिए बीस या बाइस अक्षरों के ये मंत्र भी प्रभावी हैं।-

*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गङ्गायै स्वाहा।।*

या

*ॐ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै  गङ्गायै नमो नमः।।*


मां गंगे से मेरी विशेष प्रार्थना


*क्षपितकलिकलङ्का जाह्नवी न: पुनातु।।*

*पापापहारि   दुरितारि   तरङ्गधारि*

*शैलप्रचारि    गिरिराजगुहाविदारि ।*

*झङ्कारकारि हरिपादरजोऽपहारि*

*गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि।।*


शिव भी सदैव शिव करें।

!! तनोतु नः शिव: शिवम् !!

*मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम्।*

*जन्ममृत्युजरारोगै: पीडितं कर्मबन्धनै:।।*

भगवान अर्द्धचंद्रेश्वर  कल्याणकारी हो।-

*विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।*

*श्रेय:प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे।।*


ऐसे पुण्य अवसरों पर पितरों का स्मरण भी अभीष्ट पुण्यदायी फलदाई होता है। 

पितृ गायत्री -

*ॐ पितृगणाय विद्महे देवरूपाय धीमहि तन्नो दिव्य: प्रचोदयात्।।*

( पितृणां बहुत्वेऽपि गणत्वेन देवतात्वात् पूजादावेकवचनमेव )


और भी-

*वंशोद्धारधुरन्धरा: सुविपुला वंशावलीवर्धका:*

*दृप्तोदण्डदुरीहदुष्टदमना दिव्या: सुदिव्या: शिवा:।।*

*सम्पूर्णा विलसन्ति देवसदने पूजोपचारे रता:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*

और भी-

*सौम्या ज्ञानमया: सुदिव्यपितर: पापापहारापरा:*

*प्रत्यक्षा भवरोगनाशनकरा ऐश्वर्यसंरक्षका:।*

*भाग्यारोग्यबलश्रेयायुसुखदा: कारुण्यरूपा: शुभा:*

*ते सर्वे बहुपावना: सुसरला: पित्रीश्वरा: पान्तु न:।।*

और भी-

*पितृगणा गुणातीता भुक्तिसुखंकरा:।*

*दिव्या: पापहरा नित्यं महदानन्ददायका:।।*

और भी-

*दिव्या: वितन्वते वंशं दिव्या: सर्वाघसूदना:।*

*प्रसादात् यस्य कामानां प्रभवो हि विनिश्चित:।।*

 

हर हर गङ्गे           हर हर महादेव

                      

               पं. कौशल दत्त शर्मा

               सेवानिवृत्त प्राचार्य संस्कृत शिक्षा 

               नीमकाथाना राजस्थान

              9414467988

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