नमस्तस्यै नमस्तस्यै का रहस्य*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै का रहस्य*
पंडित कौशल दत्त शर्मा
नीमकाथाना राजस्थान
गुप्त नवरात्र में मां भगवती की आराधना के लिए दुर्गा सप्तशती के पाठ का तो महत्व है ही उत्तम चरित्र के पाठ का और भी विशेष महत्व है। यह चरित्र परमात्मा के रुद्र स्वरूप, विद्या बुद्धिदायिनी मां सरस्वती के महास्वरूप, दुर्गा के सूर्य तत्व, भीमा शक्ति और सामवेद को समर्पित है।
*दुर्गा सप्तशती के पंचम अध्याय के 14 वें मन्त्र से 80 वें तक के 66 त्रिपात् मन्त्रों का वास्तविक स्वरूप ये भी है जो पूर्णतया प्रामाणिक और शास्त्रीय है।*
मूल मंत्र यथा-
*या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै।। नमस्तस्यै।। नमस्तस्यै नमो नमः।।*
उदाहरण के रूप में इसे सम्पुटित रुप में देखते हैं-
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो..*
*1. या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमो नमः।।*
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो....*
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो...*
*2. या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमो नमः।।*
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो...*
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो...*
*3. या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमो नमः।।*
*सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो...*
अन्वय में पूर्वभाग *या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता* के आगे तीनों नमस्तस्यै - नमस्तस्यै - नमस्तस्यै के साथ नमो-नम: उपपद को तीन बार जोड़ने पर 24-24 वर्णों से त्रिपात् मंत्र बनेंगे।
इस विषय को "आचार्य भास्कर राय" ने दुर्गा सप्तशती की अपनी टीका में स्पष्ट किया है-
*तेन या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमो नमः।। इति चतुर्विंशत्यक्षरोऽष्टाक्षरै: त्रिभि: पादै: एको गायत्री गायत्री छंदस्को मन्त्र: सिद्ध:। अयमेव च त्रि: पठनीय:।*
अर्थात् उक्त प्रकार से ही तीन चरणों वाला 24 वर्णों वाला गायत्री मंत्र सिद्ध होगा। और इसी प्रकार से पाठ करना चाहिए।
लोक में प्रचलित परम्परा 20+4+8= 32 वर्णों के इन त्रिपात् मन्त्रों के विभाजन पर प्रश्न स्वाभाविक है कि यह किस न्याय से त्रिपात् गायत्री का स्वरूप है।-
बीस अक्षरों का प्रथम भाग -
*या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै।१।*
चार अक्षरों का द्वितीय भाग -
*नमस्तस्यै।२।*
और आठ अक्षरों का तृतीय भाग -
*नमस्तस्यै नमो नमः।३।*
इस विषय में *महर्षि काण्व* ने प्रश्नों की झड़ी लगाकर विद्वज्जनों से पूछा है -
*प्रथमो विंशत्यक्षरो द्वितीयश्चतुरक्षर: तृतीयोऽष्टाक्षर इति विभजनं केन न्यायेन केन वा वचनेन सिध्यतीति।।*
पंचम अध्याय में तीन बार नमस्कार है या पांच बार। ऐसी शंकाओं से तो यह प्रश्न भी प्रतिपादित होता ही है। तीन बार नमस्कार करने वाले पांच बार नमः नमः का प्रयोग जो हुआ है उस पर दृष्टिपात क्यों नहीं करते हैं।
तीन बार नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै के विषय में तो प्रसिद्ध है कि मां दुर्गा के सात्विक राजसिक तामसिक स्वरूप को नमस्कार है। दूसरा पक्ष मां भगवती के कायिक वाचिक मानसिक स्वरूपों को तीन बार नमस्कार कहा है । तीसरा पक्ष ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद की तीन शक्तियों को नमन है। चौथा पक्ष गायत्र्यादि तीन छंदों को नमस्कार है। पांचवां पक्ष महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपिणी त्रिगुणात्मक जगज्जननी मां दुर्गा को बारम्बार प्रणाम है आदि।
जो भी हो जब तीन महाशक्तियों की स्तुति आराधना का आर्त स्वर में प्रसंग चल रहा हो पाठ चल रहो हो वहां एक स्वरुप को बीस अक्षरों से प्रार्थना करेंगे और रिझाएंगे और दूसरे स्वरुप को केवल चार अक्षरों से अपेक्षित भाव से निवेदन करेंगे और तीसरे स्वरूप को फिर आठ अक्षरों से नमन किस न्याय से कर रहे हैं।
इस पर चिन्तन मनन करना ही चाहिए।
*ॐ नमः चण्डिकायै*
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