दो दिवसीय मीरां महोत्सव का हुआ समापन विद्यापीठ में लगेगी मीरा की आदमकद प्रतिमा सहजता और समर्पण का असाधारण सममिश्रण मीरां -प्रो. सारंगदेवोत

 दो दिवसीय मीरां महोत्सव का हुआ समापन

विद्यापीठ में लगेगी मीरा की आदमकद प्रतिमा

सहजता और समर्पण का असाधारण सममिश्रण मीरां -प्रो. सारंगदेवोत



मीरा के संवाद से शास्त्र का प्राकट्य- प्रो. बलवंत राय जानी



उदयपुर जनतंत्र की आवाज। मीरां की कृतियों ने आध्यात्मिक साहित्य के रूप में अनुभूति को ऐसा स्वरूप प्रदान किया जिसका गहरा प्रभाव न केवल साहित्यिक गलियारा में विद्यमान है बल्कि आज भी जनमानस में समाया हुआ है। मीरां ने संवाद के सशक्त माध्यम से आध्यात्मिकता और साहित्य के साथ सामाजिक ताने बाने में चेतना जागृति का कार्य अपने भगवत प्रेम के माध्यम से किया। भक्ति और जागृति के इस प्रयास में मीरां के जीवन के कई पहलुओं को विद्वानों की जिज्ञासा का भी क्षेत्र बनाया। आज उन सभी क्षेत्रों में साक्ष्यपूर्ण कार्य और शोधों में माध्यम से मीरां के उस स्वरूप को उद्घाटित करने की आवश्यकता है जो आज भी अनछुआ रह गया है। उक्त विचार शनिवार को जनार्दन राय नागर विद्यापीठ विश्वविद्यालय, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय मीरां महोत्सव के समापन सत्र में कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने बतौर अध्यक्षीय उद्बोधन में कही। प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि मीरां सच्चे अर्थों में सहजता का वो स्वरूप रही जिसमें निश्छलता और समर्पण का असाधारण सममिश्रण था।

 प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि प्रतापनगर परिसर में भव्य मीरा भवन एवं मीरा की आदमकद प्रतिमा लगाई जायेगी । भवन में मीरा से जुड़े तथ्यों को दर्शाया जायेगा जिससे युवा पीढ़ी नवीन शोध एवं प्रेरणा ले सके। मुर्ति के लिए कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने एक लाख रूपये देने की घोषणा की। 

मुख्य अतिथि पूर्व कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय जानी ने मीरां के संवाद शैली का प्रभाव बताते हुए उनके संवाद से शास्त्र प्राकट्य की बात कही। उन्हांेने मीरां के पदांे के द्वारा उनके बहुआयामी-बहु सांस्कृतिक और बहु भाषिक व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए उन्हें नारी शक्ति का उदाहरण बताया। प्रो जानी ने इस प्रकार के आयोजन को नई शिक्षा नीति के अनुरूप शैक्षिक एवं सांस्कृति वातारण तैयार करने की नीवं माना।

कार्यक्रम समन्वयक प्रो. प्रदीप त्रिखा ने बताया कि इस महोत्सव में देश भर के विद्वान, लेखक, समीक्षकों ने भाग लिया। महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को तृतीय सत्र का आयोजन अध्यक्षता ब्रज रतन जोशी ने की । इस सत्र में जिसमें प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने पुरातात्विक दृष्टिकोण से मीरां बाई की भारत यात्रा के संभावित पदमार्ग की स्थिति और संभावनाओं पर शोधपत्र प्रस्तुत किया। इनके साथ ही कशमीर से आए रउफ अहमद आदिल ने मीरां और भक्त कवियत्री लल्लेश्वरी पर तुलनात्मक अध्ययन विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किए।



विभिन्न तकनीकी सत्रों में मीरा के जीवन यात्रा के साथ उनकी रचनाओं,पदों साहित्यिक विरासत पर गहन विमर्श किया। मीरां की आध्यात्मिकता और व्यक्तिव के ऐसे बिन्दुओं पर प्रमुखता से चर्चा हुई जिन पर नवीन शोध की काफी संभावनाएं है। 

समापन सत्र में अतिथियों द्वारा दो दिवसीय मीरा महोत्सव में भाग लेने प्रतिभागियों का उपरणा, स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। 


समापन सत्र में हिन्दी के जानेमाने आलोचक एवं विद्वान विजय बहादुर सिंह , मीरां अध्ययन एवं शोध पीठ के अध्यक्ष प्रो.कल्याणसिंह शेखावत, साहित्य अकादमी दिल्ली के उपसचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश , साहित्य अकादमी उदयपुर के सचिव बसन्ती लाल सोलंकी, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल , प्रो मंजू चतुर्वेदी, डा.ॅ रचना राठौड़, डॉ. अमी राठौड़ , डॉ. संतोष लांबा, डॉ. अमीया गोस्वाती, डॉ. किर्ति चूण्डावत, डॉ. हिम्मत सिंह चुण्डावत, सहित शोधार्थी एवं विषय विशेषज्ञ सहित गणमान्य लोग उपस्थित थे।

संचालन डॉ. हरीश चौबीसा धन्यवाद साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद के सदस्य प्रो. माधव हाड़ा ने ज्ञापित किया।

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