आत्मा के जागरण के बिना भीतर की शक्तियों का सदुपयोग संभव नहीं : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी*

 *आत्मा के जागरण के बिना भीतर की शक्तियों का सदुपयोग संभव नहीं : साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी* 



विवेक अग्रवाल

उदयपुर संवाददाता (जनतंत्र की आवाज) 27 दिसंबर। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के अंर्तगत चतुर्थ दिवस की सभा में सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने प्रभु के अवतारवाद के विषय में बताया गया। प्रभु धर्म की रक्षा हेतु प्रत्येक युग में आते हैं। भक्तों का कल्याण करने तथा दुष्टों को तारने वे हर युग में अवतार लेते हैं। द्वापर में कंस के अत्याचार को समाप्त करने के लिए प्रभु धरती पर आए। उन्होंने गोकुल वासियों के जीवन को उत्सव बना दिया। कथा के माध्यम से नंद महोत्सव की धूम देखने वाली थी। साध्वी और स्वामी जनों ने मिलकर प्रभु के आने की प्रसन्नता में बधावा गाया। आज गोकुल के उत्सव को देखने का अवसर सभी को प्राप्त हो गया।   

सोचने की बात है जब नंद बाबा भगवान को टोकरी में ड़ाल कर गोकुल लेकर गये तो उस समय प्रभु हमें संदेश देते हैं, जिस प्रकार नंद बाबा ने मुझे सिर पर धारण किया। तभी उनकी हाथों पैरों की बेडियां टूट गयीं। इसी प्रकार *जो मुझे जीवन में प्रथम स्थान पर रखता है, मैं उसके लिए आत्मजाग्रति के द्वार खोल देता हूं।*

 मैं युगों-युगों से आत्मज्ञान के लिए प्रेरित करता आया हूं। परंतु आत्मा के जागरण के बिना मानव नरसंहार करता आया है। अपने मन के बिखराव को समेट नहीं पाया। भीतर की शक्ति का सदुपयोग नहीं करना आया। मन के भटकन के कारण समाज को अपने अनुचित व्यवहार के कारण दूषित कर रहा है। भगवान श्री कृष्ण जी ने विभिन्न प्रकार की लीलायें की। वो माखन चोरी करते तो भक्तों ने माखन चोर कह दिया। माखन चोरी की लीला से उन्होने भक्तों के भावों को ग्रहण किया। उनके भीतर उपजी हीनता की भावना का अंत किया। प्रेम की प्रगाढ़ता स्थापित की। इस लीला का भावार्थ यही कि प्रभु हमारे भीतर विराजमान हैं। समस्त शास्त्र इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। शंख संहिता में स्पष्ट वर्णन आता है कि हमारे हृदय गुफा में परम प्रकाशवान ईश्वर निवास करते हैं। सभी देवताओं का निवास वही है। जीवात्मा का आश्रय स्थल वही है। नादबिंदोपनिषद में कहा गया है कि परमेश्वर ज्योति रूप में भीतर हैं। अतएव हमें वहीं ध्यान करना चाहिए। योगवशिष्ठ में विवरण मिलता है- जिसने अंदर स्थित प्रभु को बाहर ढूंढ़ा तो उसने कौस्तुभमणि को छोड़ कर कांच बीनने का कार्य ही किया। इसलिये परमात्मा हमारे भीतर प्रकाशरुप में विद्यमान हैं। आवश्यकता तो दिव्य गुरु की है। जो मानव शरीर में ही प्रभु दर्शन संभावित कर सके।

कथा में उपस्थित अतिरिक्त जिला कलेक्टर राजीव द्विवेदी, सहायक आयुक्त देवस्थान विभाग जतिन गांधी, चंद्रगुप्त सिंह चौहान, अध्यक्ष विप्र फाउंडेशन के.के. शर्मा जी, दिनेश श्रीमाली द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया।

सैंकड़ों उपस्थित श्रद्धालुओं ने कथा का रसपान किया और सुमधुर भजनों पर झूम उठे।

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